who was devadasi in indian history

देवता के नाम पर कुंआरी लड़कियों को बना देते थे देवदासी, मंदिरों में होता था शोषण    

Devadasi

A 1920'S photograph of two devadasis in Tamilnadu. p/c internet media

Devdasis in South India : देवदासी (who was servent of God) शब्द आज के समय में बेशक अनसुना हो गया है, लेकिन सदियों तक देश में चली इस प्रथा ने महिलाओं को धर्म के नाम पर समाज के उच्च वर्ग के शोषण का शिकार बनाए रखा। (Ancient and medieval period in india)  देवदासियों की भूमिका मंदिरों में भगवान की पूजा में सहयोग करने की बताई जाती थी, हालांकि तत्कालीन राजा, उनके मंत्री एवं अन्य प्रभावशाली व्यक्ति, मंदिरों में बैठे मठाधीश और पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। पीढ़ी दर पीढ़ी यह प्रथा चलती रहती थी। एक देवदासी से उत्पन्न हुई बेटी भी आगे वही बन जाती थी। समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लिए यह हमेशा से चिंतित करने वाली बात रही कि महिलाओं को देवदासी बनने के नाम पर शोषित किया जा रहा है। उनकी पीड़ा और अनकही कहानियां कहीं सामने नहीं आ पाती थी। 

 

प्राचीन इतिहास में दर्ज है कि छठी और तेरहवीं शताब्दियों के बीच, देवदासियों को समाज में उच्च पद और सम्मान हासिल था और वे असाधारण रूप से समृद्ध थीं। सबसे बड़ी बात यह कि उन्हें कला के रक्षक के रूप में देखा जाता था। देवदासी बनने के बाद महिलाएं धार्मिक संस्कार, अनुष्ठान और नृत्य सीखने में तल्लीन हो जाती थीं। उस समय देवदासियों से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ईश्वर की सेवा करते हुए जीने की उम्मीद की जाती थी, हालांकि, अपवादों के उदाहरण भी रहे हैं।

 

राजाओं के समय देवदासियों को जो सम्मान हासिल था, वह अंग्रेजों के वक्त में आकर बहुत हद तक कम हो गया। इसकी एक वजह मंदिरों के संरक्षक राजाओं का अपनी शक्ति खो देना था। इसके साथ ही मंदिर के कलाकार समुदायों ने भी अपना महत्व खो दिया। इन परिस्थितियों में देवदासियों कोसमर्थन और संरक्षण के बिना छोड़ दिया गया और अब वे आमतौर पर वेश्यावृत्ति से जुड़ी हुई थीं।

 

इतिहासकार मानते हैं कि सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते इन महिलाएं को देवदासी की धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर किया गया। देवदासी प्रथा के तहत कोई भी महिला धार्मिक स्थल में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं। देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ धर्म स्थल के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी हासिल हो गई।  

 

मुगलकाल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गईं। अंग्रेजों ने तथा समाज सुधारकों ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की तो लोगों ने इसका विरोध किया। हालांकि  1947 में आजादी हासिल होने के दो माह के अंदर मद्रास प्रेसिडेंसी ने मद्रास देवदासी (प्रिवेंशन ऑफ डेडिकेशन) एक्ट पारित किया, जिसे देवदासी उन्मूलन अधिनियम 1947 के नाम से जाना जाता है। तत्कालीन सरकार का मुख्य मकसद युवा लड़कियों को मंदिरों में धर्म के नाम पर शोषित होने से रोकना था, वहीं पहले से देवदासी बनी महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में लाना था। हालांकि अंग्रेजों के समय जो विरोध हुआ था, वह आजादी के बाद भी देवदासी प्रथा को खत्म करते समय देखा गया। विरोध करने वालों ने कहा कि देवदासी प्रशिक्षित कलाकार हैं और यह कानून उन्हें इस काम से दूर कर देगा। 

 

देवदासी प्रथा को समाप्त करने के लिए मद्रास प्रेसिडेंसी की ओर से बनाए गए कानून के बाद आंध्र प्रदेश ने भी 1947 में देवदासी (प्रिवेंशन आफ डेडिकेशन एक्ट) बनाया वहीं कनार्टक ने वर्ष 1982 में आकर इस प्रकार का कानून तैयार किया। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी वर्ष 2005 में देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून बनाया। हालांकि सबसे चिंता की बात यह है कि कानून बनने के बावजूद जैसा कि राष्ट्रीय महिला आयोग एवं विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में इसका उल्लेख है कि देवदासी प्रथा आज भी जीवित है और महिलाओं को इस प्रथा के नाम पर शोषित किया जा रहा है। सवाल यही है कि आखिर समाज ऐसी प्रथा को आज भी स्वीकार कैसे कर रहा है। हालांकि देश में रेडलाइट एरिया की संख्या कम नहीं है, तब इस प्रथा के समाप्त होने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। 

कालीदास ने अपनी रचना में किया था जिक्र

संस्कृत भाषा के महान कवि कालिदास ने अपनी रचना मेघदूतम में देवदासी प्रथा का जिक्र किया है। इसमें बताया गया है कि कुंआरी कन्याओं को मंदिरों में दान कर दिया जाता था और आजीवन में मंदिरों में रहते हुए भगवान की सेवा करती थीं। गौरतलब है कि इस विषय पर देश और विदेश के अनेक इतिहासकारों ने पुस्तकें लिखी हैं। एनके बसु की किताब हिस्ट्री आफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया, एफए मार्गलीन की पुस्तक वाइव्स आफ द किंग गॉड, रिचुअल्स आफ देवदासी, मोतीचंद्रा की स्टडीज इन द कल्ट आफ मदर गॉडेस इन एनशिएंट इंडिया आदि ने देवदासी प्रथा पर लिखा है।