नोटबंदी : सोच विचार का लिया जाना चाहिए था निर्णय
- By Vinod --
- Thursday, 17 Nov, 2022
Demonetisation: The decision should have been taken after careful thought
Demonetisation: The decision should have been taken after careful thought- सात साल बाद (Supreme Court) सर्वोच्च न्यायालय ने (Demonetisation) नोटबंदी के खिलाफ हो रही सुनवाई के दौरान (Central Government) केंद्र सरकार ने पुन: इसी सही ठहराते हुए अपना बचाव किया है लेकिन आठ नवंबर 2016 को देश उस समय स्तब्ध रह गया था, (PM Narender Modi) जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में पुराने नोटों की जगह नए नोट जारी करने की घोषणा करते हुए (Demonetisation) नोटबंदी का ऐलान किया था। यह ऐसा ऐलान था, जिसने पूरे देश में (Emergency) आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी थी। यह वह समय था, जब (Online Payment) ऑनलाइन पेमेंट अभी तक ख्वाब भर थी। इक्का-दुक्का कोई ऑनलाइन पेमेंट एप सक्रिय था। अब करीब सात साल बाद जब (Supreme Court) सर्वोच्च न्यायालय में नोटबंदी के खिलाफ सुनवाई हो रही है, तब केंद्र सरकार ने इसे सही ठहराते हुए अपना बचाव किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि उस समय जिस प्रकार से एकाएक (Demonetisation) नोटबंदी का ऐलान करके देश को सांसत में डाल दिया गया था, बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी लाइनें लगी थी। इन लाइनों में लगे कई बुजुर्गों की मौत भी हुई। क्या केंद्र सरकार उन मौतों की जिम्मेदारी भी लेगी?
केंद्र की दलील है कि नोटबंदी आर्थिक नीति का हिस्सा थी, वहीं इसके जरिए (Fake Currency) नकली करंसी, आतंकी फंडिंग, कालाधन और कर चोरी पर नियंत्रण करने के लिए रणनीति बनाई गई। यह भी कहा गया है कि संसद में बने आरबीआई कानून 1934 के प्रावधानों के अनुसार (Demonetisation) नोटबंदी का फैसला लिया गया था। हालांकि सच्चाई यह भी है कि देश में नोटबंदी के बावजूद न (Curruption) भ्रष्टाचार खत्म हुआ है और न ही कालाधन पूरी तरह समाप्त किया जा सका है। इसके अलावा नकली करंसी और आतंकी फंडिंग को रोके जाने के भी सबूत नहीं हैं। देश में हालिया समय में ही अनेक ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जब कारोबारियों, भ्रष्ट नौकरशाहों और दूसरे काले धंधों में लगे लोगों के पास से पांच सौ और दो हजार रुपये के नोटों के भारी जखीरे मिले हैं। इसके अलावा देश में (Terrorist) आतंकी वारदातों का सिलसिला भी जारी रहा है, साल 2016 के बाद से (Jaamu-Kashmir) जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने अनेक वारदातों को अंजाम दिया था। केंद्र सरकार के इस कथन कि नोटबंदी का फैसला सोच-समझ कर लिया गया था, पर पर्याप्त संशय होता है।
नोटबंदी की वजह से आम नागरिक से लेकर संपन्न लोग तक प्रभावित हुए थे। उस समय छोटे, मध्यम कारोबारी के लिए अपना रोजगार चलाना मुश्किल हो गया था, क्योंकि नकदी नहीं थी। लोगों को बैंकों, पोस्ट आफिस आदि जगह पर अपने पुराने नोटों को बदलवा कर नए नोट लेने पड़ रहे थे। अनेक परिजनों को अपने बच्चों की शादी में भारी दिक्कत उठानी पड़ी थी। हालांकि (Central Government) केंद्र सरकार अपने प्रयोग में जुटी हुई थी, लग रहा था जैसे उसे इसकी कोई फ्रिक नहीं है कि अस्पतालों में इलाज करवा रहे लोगों को किस प्रकार नकदी का संकट खड़ा हो गया था और कैसे राशन खरीदना, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में फीस अदा करने की समस्या पैदा हो गई थी। समय के साथ सब भुला दिया जाता है, लेकिन उस समय देश के लोग भारी दिक्कतों से गुजर रहे थे और केंद्र सरकार के नेता, मंत्री (Demonetisation) नोटबंदी को सही ठहराने में लगे हुए थे। उस समय देश की जीडीपी को भारी झटका लगा था और यह घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई थी।
नोटबंदी को सही ठहराते हुए (Central Government) केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि आखिर इससे देश को किस प्रकार फायदा हुआ। नोटबंदी के बावजूद लोगों के घरों में (Fake Currency) अवैध नकदी पड़ी रही और यह भी सामने आया कि जितने नोट आरबीआई की ओर से जारी किए गए थे, उनमें से बड़ी संख्या में नोट वापस आए ही नहीं। केंद्र ने आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड की उस सिफारिश को भी (Court) न्यायालय में बतौर सबूत पेश किया है, जिसमें पांच सौ और हजार रुपये के नोटों को बंद करने की संस्तुति की गई थी। बेशक, इन नोटों को बंद किया जा सकता था, लेकिन यह कार्य एकाएक करने की बजाय उन्हें निश्चित अवधि में पर्याप्त समय देते हुए किया जा सकता था जोकि बाद में किया भी गया। बेशक केंद्र सरकार देश की आर्थिक योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी निर्णय लेने को सक्षम है, लेकिन नोटबंदी जैसा निर्णय जल्दबाजी में लिया गया निर्णय ही माना जाएगा। इस निर्णय से फायदा कम लेकिन नुकसान ज्यादा हुआ और देश को भारी परेशानी का सामना भी करना पड़ा। किसी सरकार के लिए जनता को प्रयोगशाला बनाने की बजाय सोच-विचार कर फैसला लेना ही ज्यादा सही माना जाएगा।