Chandigarh : दिल्ली हाईकोर्ट ने आईसीएआई को दिया जोर का झटका, चंडीगढ़ के हजारों और देश के लाखों सीए को फायदा, कोविड-19 दौरान समय पर फीस न भर पाने वाले सीए को राहत
Delhi High Court gave a blow to ICAI
Delhi High Court gave a blow to ICAI : चंडीगढ़। दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले ने सीए की रजिस्ट्रेशन व इंपेनलमेंट देने वाली संस्था आईसीएआई को जोर का झटका दिया है। कोर्ट ने इंस्टीच्यूट को आदेश दिया है कि कोविड 19 पीरियड के दौरान जो सीए किसी भी वजह से अपनी मेंबरशिप फीस जमा नहीं करा पाए उनकी मेंबरशिप रद्द न की जाए बल्कि इसे महामारी का पीक पीरियड मानते हुए उन्हें राहत प्रदान की जाए। याचिकाकर्ता सीए अनिल गुप्ता और उनकी फर्म मैसर्ज एएसपीएन एंड कंपनी के मामले को लेकर यह फैसला दिया गया। चंडीगढ़ के हजारों व देश के लाखों चार्ट्ड अकाऊंटेंस (सीए) को हाईकोर्ट के इस फैसले से राहत मिलेगी। हाईकोर्ट की ओर से फैसले में कहा गया कि इंस्टीच्यूट ऑफ चार्ट्ड अकाऊंटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) फीस में देरी को लेकर किसी की मेंबरशिप रद्द नहीं कर सकता, और वह भी तब जब इसके सदस्य ने फीस कुछ समय बाद ही जमा करा दी हो। कोर्ट ने कहा कि भले ही मेंबर की तरफ से फीस जमा कराने में कुछ देरी हुई हो लेकिन यह जानबूझ कर उठाया कदम नहीं था बल्कि इसकी अन्य वजह रही। हाईकोर्ट के इस फैसले से आईसीएआई के उन सभी सदस्यों को राहत मिलने की उम्मीद बंध गई है जिन्हें कोरोना के समय के दौरान अपनी फीस जमा कराने में देरी हुई।
इंस्टीच्यूट ऑफ चाटर््ड अकाऊंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई)ने अनिल गुप्ता नाम के एक चार्ट्ड अकाऊंटेंट की मेंबरशिप इस बिनाह पर रद्द कर दी कि उन्होंने अपनी सालाना मेंबरशिप फीस समय पर जमा नहीं कराई। उनकी फर्म मैसर्ज एएसपीएन एंड कंपनी का रजिस्ट्रेशन भी समाप्त कर दिया गया। साथ ही अनिल गुप्ता को कहा गया कि वह नये सिरे से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इससे अनिल गुप्ता की बीते 32 साल की सीनियोरटी जा रही थी लिहाजा उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करते हुए आईसीएआई के फैसले को चुनौती दी। याचिका दायर करने के लिए उन्होंने एडवोकेट अनूप कुमार व एडवोकेट व सीए सुमित कंसल की सेवाएं ली।
32 साल पहले हुई थी रजिस्ट्रेशन
अनिल कुमार जुलाई 1988 से यानि 32 साल से बतौर सीए आईसीएआई के पास रजिस्टर्ड हुए थे। एडवोकेट व सीए सुमित कंसल के मुताबिक इंस्टीच्यूट के पास रजिस्टर्ड हर सीए को 30 सितंबर तक अपनी मेंबरशिप फीस जमा करानी पड़ती है। कोविड 19 के दौरान भी यही तारीख निश्चित थी। महामारी की वजह से फीस जमा कराने की तारीख को पहले 31 मार्च 2020 तक और इसके बाद 31 मई 2020 तक एक्सटेंड कर दिया गया। आईसीएआई की ओर से इसका कोई सर्कुलर या कम्यूनिकेशन रजिस्ट्र्ड कई सीए मेंबरों को नहीं मिल पाया। 9 जुलाई को अनिल गुप्ता जैसे ही किसी क्लाइंट के केस का ऑडिट करने लगे तो उन्हें पता लगा कि उनकी मेंबरशिप आईसीएआई ने रद्द कर दी है। इसकी वजह बताई गई कि उन्होंने 31 मई 2020 तक तय समयसीमा के भीतर अपनी फीस जमा नहीं कराई। अनिल गुप्ता ने उसी वक्त यानि 9 जुलाई को ही अपनी मेंबरशिप फीस जमा कर दी और इंस्टीच्यूट को सूचित किया और कहा गया कि पहले कभी इतने वर्षों के दौरान उनकी फीस लेट नहीं हुई है। आईसीएआई की ओर से कहा गया कि उनका पुराना इंपेनलमेंट और रजिस्ट्रेशन तो रद्द हो गया है लिहाजा वह नये सिरे से उनका रजिस्ट्रेशन माना जाएगा। नये सिरे से रजिस्ट्रेशन में अनिल गुप्ता को अपनी 32 साल पुरानी वरिष्ठता खोनी पड़ रही थी लिहाजा उन्होंने इसको लेकर इंस्टीच्यूट को ईमेल व लैटर इत्यादि लिखकर संपर्क किया लेकिन उन्हें हमेशा नये सिरे से रजिस्ट्रेशन की सलाह दी गई। विवश होकर 3 दिसंबर 2021 को अनिल गुप्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली और अपने वकीलों अनूप गुप्ता और सुमित कंसल की मार्फ्त राहत की याचिका डाली।
सवा साल केस के बाद राहत
सुमित कंसल ने बताया कि करीब सवा साल तक चले केस के बाद 20 मार्च 2023 में हाईकोर्ट ने सीए अनिल गुप्ता के हक में फैसला देते हुए कहा कि कोरोना महामारी की वजह से अचानक भारत सरकार ने 22 मार्च 2020 से पूरे देश में लॉकडाऊन लगा दिया था। इस दौरान न केवल घूमने फिरने पर पाबंदी थी बल्कि कम्यूनिकेशन मोड भी प्रभावित हुए। इस वजह से आईसीएआई के बहुत से मेंबर अपनी 2019-20 की मेंबरशिप फीस 31 मार्च 2020 के एक्सटेंडिड समय पर जमा नहीं करा पाये। इसके बाद भी फीस जमा कराने की तारीख आगे 31 मई 2020 तक बढ़ा दी गई। याचिकाकर्ता अनिल गुप्ता ने फीस 9 जुलाई 2020 को जमा की और इसके पीछे उन्होंने जो तर्क दिया वह बिलकुल सही लग रहा है। यह गलती जानबूझ कर नहीं की गई बल्कि अनजाने में की गई भूल थी। इस बिनाह पर अगर कोरोना पीरियड के दौरान किसी भी सीए की मेंबरशिप आईसीएआई रद्द करता है तो यह उस सीए के प्रोफेशनल करियर बल्कि उसके क्लाइंट्स के ऊपर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा जिनकी रिटर्न व ऑडिट सीए ने जमा करानी है। कोर्ट ने यह भी पाया कि जिस दौरान फीस नहीं दी गई वह पीरियड कोविड 19 महामारी का पीक पीरियड था। ऐसे प्रतिकूल समय में अगर किसी मेंबर को फीस देने में देरी हुई है तो उसे बाकायदा राहत दी जाए। याचिकाकर्ता अनिल गुप्ता की कुछ देर तक फीस जमा न करा पाने की ऐवज में रद्द की गई मेंबरशिप का कोई औचित्य नहीं बनता। कोर्ट ने कहा कि अनिल गुप्ता की बतौर सीए प्रोफेशनल स्टैंडिंग में कोई रुकावट नहीं होगी और उनकी सीनियोरटी बरकरार रहेगी।
ये भी पढ़ें ...
आदित्य बिड़ला ने हेल्थ इंश्योरेंस किया लॉन्च, अपना नया ब्रांड कैम्पेन ‘क्या पीछे छोड़ा है’
ये भी पढ़ें ...
पंचकूला: पारस हेल्थ का गैस्ट्रो साइंसेज विभाग व्यापक देखभाल में सक्षम