दिल्ली फिर प्रदूषण से हलकान
Delhi again light of pollution
Delhi again light of pollution : सर्दियों की आहट अभी होने ही वाली है, उससे पहले दिल्ली एनसीआर की हवा खराब हो चली है। दिवाली (Diwali) का पर्व भी अभी कुछ दिन बाद है, लेकिन जिस प्रकार से प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, उसने बाकी वर्षों की भांति दिल्ली वासियों और एनसीआर की चिंता बढ़ा दी है। यह तब है, जब सर्वोच्च न्यायालय तक केंद्र एवं राज्य सरकारों से दिल्ली की आबोहवा को सही करने का मसौदा मांग चुका है। हर बार दिल्ली सरकार एवं अन्य राज्य सरकारों के बीच जुबानी जंग होती है और यह जंग अगले वर्ष मार्च-अप्रैल तक जारी रहती है, उसके बाद सभी भूल जाते हैं। दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार दिनों से दिल्ली में प्रदूषण खराब स्तर पर बना हुआ है। दिवाली से पहले ही आशंका जताई जा रही है कि अगले दो दिन में दिल्ली की हवा और जहरीली हो सकती है। प्रदूषण का लेवल 22 अक्तूबर तक बेहद खराब स्तर पर पहुंच सकता है। इससे लोगों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं खासकर ऐसे लोग जिनको सांस संबंधी कोई बीमारी है।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण (pollution) के बढ़ते लेवल को देखते हुए ग्रैप के दूसरे फेज को लागू कर दिया गया है। निर्माण कार्य के अलावा कई दूसरी गतिविधियों को लेकर पाबंदियां लग गई हंै। दिल्ली में ठंड के महीनों में अक्सर प्रदूषण (pollution) की दिक्कत बढ़ जाती है। इसके पीछे पराली, हवा की गति कम होना, गाडिय़ों के धुएं और दिवाली की आतिशबाजी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इस बार दिवाली से पहले ही प्रदूषण का लेवल बढ़ गया है। पटाखे जलाने पर रोक है और यह पिछले साल भी थी बावजूद इसके पटाखे जले इस बार यदि ऐसी स्थिति आई तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि सरकार की ओर से भी इसको लेकर सख्ती के संकेत दिए गए हैं। गौरतलब है कि पिछले वर्षों की तुलना में पंजाब, हरियाणा में इस बार पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। हालांकि 19 अक्तूबर को पंजाब में 436, हरियाणा में 122, यूपी में 36 मामले पराली जलाने के सामने आए हैं। इस बीच पंजाब सरकार ने भी अब पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया है। सरकार ने पराली के इस्तेमाल से खाद आदि बनाने का कारखाना संचालित कराया है। वहीं किसानों को उपकरण मुहैया करवा कर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सीपीसीबी के एयर बुलेटिन के अनुसार, राजधानी का एक्यूआई बुधवार को 228 रहा। एनसीआर में कुछ जगहों पर यह बेहद खराब स्तर पर पहुंच गया। फरीदाबाद का एक्यूआई 304, गाजियाबाद का 276, ग्रेटर नोएडा का 237, गुरुग्राम का 186 और नोएडा में 269 रहा। आज और कल भी प्रदूषण खराब स्थिति में रहेगा और 22 अक्टूबर को यह बेहद खराब स्तर पर पहुंच सकता है। इसके बाद अगले छह दिनों तक यह बेहद खराब स्थिति में ही रह सकता है। गौरतलब है कि दिल्ली में दिवाली पर पटाखे चलाने पर छह महीने तक की जेल और 200 रुपये का जुर्माना हो सकता है। राजधानी में पटाखों के प्रोडक्शन और बिक्री पर विस्फोटक अधिनियम की धारा 9बी के तहत 5,000 रुपये तक का जुर्माना और तीन वर्ष की जेल होगी। सितंबर में एक आदेश जारी करके अगले साल एक जनवरी तक सभी प्रकार के पटाखों के उत्पादन, बिक्री और इस्तेमाल पर फिर से पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। पिछले दो साल से इस तरह का प्रतिबंध जारी है।
दरअसल, कम तापमान और हवा की गति जैसे प्रतिकूल मौसम संबंधी कारकों के कारण दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता अक्तूबर महीने में खराब होने लगती है। प्रदूषण (pollution) का स्तर हर साल दिवाली के आसपास बढ़ता है। पिछले दिनों बारिश होने से शहर की हवा इतनी साफ हो गई थी कि पीएम-10 और पीएम-2.5 गायब हो गया था। प्रदूषण के बढ़ते लेवल को देखते हुए जीआरएपी का दूसरा चरण लागू हो गया है और आज से कई पाबंदियां लागू हो गई हैं। इस चरण के लागू होते ही अब कई तरह की नई पाबंदियां दिल्ली-एनसीआर में लग गई हैं। दिवाली से पहले बारबेक्यू पार्टियों को इन पाबंदियों से पहले झटका लगा है। डीजल जनरेटर सिर्फ इमरजेंसी में चल सकेंगे।
दिल्ली की हवा यदि और खराब हुई तो इस वजह से लोगों को न केवल सांस लेने में दिक्कत हो सकती है बल्कि आंखों में जलन और खांसी हो सकती है। आंखों में जलन और खांसी की दिक्कत शुरू हो गई है। किसी व्यक्ति को अस्थमा की दिक्कत है तो उसकी वजह से उनका अस्थमा बढ़ सकता है या इसकी वजह से उनकी स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को अगले कुछ दिनों कुछ खास उपाय अपनाने होंगे। ताकि वह स्वस्थ रह सकें। बढ़ते प्रदूषण की वजह से फेफड़ों को नुकसान हो सकता है। प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए बुजुर्ग सुबह बाहर न निकलें। अभी तक दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जो भी उपाय किए जाते रहे, वे तात्कालिक ही ज्यादा थे। इसलिए मुद्दा आज भी वहीं का वहीं है। बिना स्थायी और दीर्घकालिक उपायों के इस समस्या का समाधान किया ही नहीं जा सकता।
वास्तव में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीक्यूएम) ने नई नीति में साफ ईंधन की बात की है। इसके तहत एनसीआर के उद्योगों को कोयले का इस्तेमाल बंद करना ही होगा। जहां प्राकृतिक गैस नहीं है, वहां बायोगैस का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके अलावा नई नीति में छोटे छोटे बायलरों की जगह एक कॉमन बॉयलर लगाने के लिए सिफारिश की गई है। इससे धुआं कम होगा। परिवहन सेक्टर में बस बढ़ाने की नहीं बल्कि सारे सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में सुधार की बात की गई है। वहीं छोटे शहरों को भी नई नीति में जगह दी गई है। कचरा अलग करने से लेकर डी कंपोस्ट प्लांट लगाने तक का जिक्र है। कहने का मतलब, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सुझाव लेकर तैयार की गई इस नीति में बहुत कुछ दिया है, जरूरत अब केवल इस बात की है कि राज्य सरकारें भी इन सब व्यवस्थाओं को गंभीरता एवं ईमानदारी से अमल में लाएं। प्रदूषण की रोकथाम समय की सबसे बड़ी जरूरत है और इसे ढंग से अंजाम देना ही होगा।