Editorial:वायु की गिरती गुणवत्ता चिंताजनक, समाधान के हों प्रभावी प्रयास
- By Habib --
- Saturday, 04 Nov, 2023
Decreasing air quality is worrying
Decreasing air quality is worrying: यह बेहद चिंताजनक है कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ की हवा में प्रदूषण का जहर लगातार बढ़ता जा रहा है। दिल्ली का एक्यूआई अगर 500 के पार हो चुका है तो चंडीगढ़ का एक्यूआई भी बढक़र 250 पहुंच चुका है। दिल्ली में हालात ऐसे हैं कि लोगों को मास्क लगाने पड़ रहे हैं। वहीं पंजाब से ऐसी रिपोर्ट है कि यहां पर अभी भी 27 फीसदी क्षेत्र में कटाई बाकी है, इससे संभव है कि पराली जलाने की घटनाएं बढ़ें। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसमान में स्माग ने भी डेरा डाला हुआ है, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है। हरियाणा में वायु प्रदूषण की स्थिति यह है कि यहां सात शहरों में एक्यूआई 400 के पार हो चुका है।
यह सुनने में अनोखी बात लग रही है कि गांव और खुले शहरों के प्रदेश हरियाणा और पंजाब में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई का स्तर इतना गिर चुका है कि अब यह सुर्खियां बन गया है। ऐसी रिपोर्ट हैं कि राज्य के 19 शहरों में वायु प्रदूषण की वजह से हालात बेहद खराब हैं। यह समझने की बात है कि 401 से लेकर 500 तक एक्यूआई का होना बेहद ज्यादा खराब होता है। यानी दिल्ली समेत इन राज्यों में वायु का स्वास्थ्य ही बेहद खराब हो चुका है। यह अलार्मिंग स्थिति है और यह मानकर नहीं चला जा सकता कि इसमें जल्द कुछ सुधार हो जाएगा। यह भी हैरत की बात है कि एक्यूआई का स्तर गिरते जाना केवल एक बौद्धिक विषय होकर रह गया है।
दिल्ली में आजकल प्रदूषण के विरुद्ध युद्ध जारी है, जोकि उचित है। दिल्ली इन दिनों में प्रदूषण की सर्वाधिक मार झेलती है। दिल्ली में इस समय कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। इसके बाद केजरीवाल सरकार ने एक नवंबर से राज्य में सिर्फ इलेक्ट्रिक, सीएनजी एवं बीएस-6 बसों को ही प्रवेश की अनुमति देने का फैसला किया है। वास्तव में यह वक्त की मांग है, लेकिन इस तरह के फैसले अल्पकालीन ही कहे जाएंगे, जरूरत दीर्घकालिक उपायों की है।
विशेषज्ञों के अनुसार जब तक स्रोतों की पहचान कर उन पर स्टीक कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक स्थिति को थामना मुश्किल होगा। एनसीआर में वायु प्रदूषण के खिलाफ चल रही पूरी मुहिम ही हवा-हवाई है, क्योंकि पर्याप्त निगरानी न होने से फिर स्थिति वैसी ही हो जाती है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रदूषण किस क्षेत्र में और कहां किस स्त्रोत से पैदा हो रहा है, इसका भी स्टीक अध्ययन नहीं हो रहा। गौरतलब है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए हरियाणा में जेनरेटर चलाने पर रोक लगाई गई है, लेकिन महज जेनरेटर से वायु प्रदूषण होता है, यह धारणा रखना बेमानी है। वायु प्रदूषण की वजह तमाम ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में सभी जानते हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई ठीक से नहीं हो पाती।
पिछले दिनों पंजाब में पराली जलने के मामलों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने पंजाब के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार की ओर से पराली के प्रबंधन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन किसानों की मनमर्जी बंद नहीं हो रही।
एनजीटी की ओर से कहा गया है कि अमृतसर, तरनतारन आदि जिलों में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले इस बार 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वास्तव में यह कहना उचित है कि प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली का जलना ही जिम्मेदार नहीं है। यह भी सच है कि मानसून के बाद खनन कार्य में तेजी आई है, वहीं निर्माण के सेक्टर में भी तेजी देखने को मिलती है। इससे हवा में धूल के कणों की संख्या बढ़ जाती है, साथ ही हवा की गति इन दिनों धीमी हो जाती है। इससे आसमान में धूल, धुएं के गुब्बार बन जाते हैं, जोकि समस्या की मुख्य वजह हैं।
दो राज्यों की राजधानी चंडीगढ़ की स्थिति पर भी गौर फरमाने की जरूरत है। यहां एक्यूआई खराब की स्थिति में है। अब यहां जेनरेटर सेट और निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की चर्चा जारी है। यह त्योहारों का सीजन है और अभी दिवाली का सबसे बड़ा पर्व आना बाकी है, जिस दिन लाखों की तादाद में पटाखे फोड़े जाते हैं। यानी स्थिति अगर जल्द नहीं सुधरी तो यह आगामी समय में और ज्यादा बदहाल हो जाएगी। चंडीगढ़ में रोजाना हजारों की तादाद में वाहन आते-जाते हैं। यह भी प्रदूषण को बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर रहा है, लेकिन इसका कोई उपाय नहीं है।
यह जरूरी है कि प्रदूषण रोकने की कवायद फाइलों से बाहर आकर जन अभियान बनाई जाए। यह भी समझने की जरूरत है कि आज महज पराली ही प्रदूषण का कारक नहीं है, अपितु दूसरे तमाम कारण प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। वायु देव के स्वास्थ्य की चिंता सालभर करने की जरूरत है, यह कुछ समय का काम नहीं है। पराली का धुआं शायद ही इतना जहरीला हो, जितना की फैक्ट्रियों का धुआं। राज्य सरकारों को प्रदूषण रोकथाम के लिए प्रभावी कदम निरंतर उठाने होंगे।
यह भी पढ़ें:
Editorial: पंजाब के रचनात्मक विकास में सत्ता-विपक्ष चलें साथ-साथ
Editorial: दलों को चंदे के स्रोत को जानने का अधिकार होना चाहिए