सात दिवसीए श्रीमद् भागवत कथा में पहुंचे डी. सी. पंचकुला
Shrimad Bhagwat Katha
पंचकुला। Shrimad Bhagwat Katha: दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 19 से 25 नवंबर 2023 तक शालीमार ग्राउंड, सेक्टर-5 पंचकुला में साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। जिसका समय प्रतिदिन सायं 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक है। कथा के द्वितीय दिवस का शुभारंभ सुशील सरवन (डीसी पंचकुला) एवं पूनम राय (डिप्टी इन्कम टैक्स कमिश्नर, शिमला) ने प्रभु की ज्योति को प्रज्वलित करके किया। कथा में यजमान सुभाष जिगनानी, यजमान राज कुमार अरोड़ा (एमडी, ओ. सी. आर. ग्रुप), यजमान विजय गर्ग (डायरेक्टर रिवरडेल एवं हेज़लवुड ज़ीरकपुर), पवेल गर्ग, यजमान दीपक भसीन (मैक्स हॉस्पिटल मोहाली), यजमान आशीष अग्रवाल (सरस्वती प्लाईवुड पंचकुला), यजमान अजय जिंदल (बिजनेसमैन), यजमान कश्मीरी लाल प्रधान (बिजनेसमैन), यजमान अमित जैन (प्रधान, महामाई मनसा देवी चैरिटेबल भंडारा कमेटी पंचकूला) द्वारा विधिवत पूजन किया गया। कथा के अंतर्गत श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या सुश्री कालिंदी भारती जी ने तृृृृतीय स्कंध का बहुत ही भव्य प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने बताया कि भगवान भाव के भूखे हैं।
जो भी उन को भाव से पुकारता है तो वह पहुँच जाते हैं। समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि भगवान होते हुए भी कृष्ण ने प्रलयकारी महाभारत के युद्ध को रोका क्याें नहीं। भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के प्रलयकारी युद्ध केा रोकने का हरसंभव प्रयत्न किया। युद्ध से पूर्व वह शांतिदूत बनकर गए। दुर्योधन जैसे दुराचारी को भी विनम्रतापूर्वक समझाया, आधे राज्य की जगह मात्र पांच गांवों में समझौता करने तक को तैयार हो गए। तब भी भगवान ने उसे भय दिखाया।
धनहानि, जनहानि, यहां तक की सर्वनाश की खरी चेतावनी भी दे डाली। तब भी वह नहीं माना, तो विराट रूप दिखाया। साम-दाम-दंड-भेद सब नीतियों से उस दुर्बुद्धि को समझाने को सन्मार्ग दिखाने की भरपूर कोशिश की। यह सब युद्ध रोकने के प्रयास ही तो थे। अब परमात्मा अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा किसी की कर्म करने की स्वतंत्रता को छीनता नहीं। उसने हर निर्णय लेने व कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी है। वे तो केवल सही राह ही दिखाता है, वही श्री कृष्ण ने किया। लेकिन मद में अंधा दुर्योधन कृष्ण के पास केवल एक ही विकल्प बचा कौरवों को संहार। इस तथ्य को हम एक रोगी के उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। एक रोगी जिसकी देह का एक पूरा अंग गल-सड़ चुका है। साथ ही बाकी शरीर में से विष का प्रसार कर रहा है। अब एक कुशल चिकित्सक, वैद्य सर्वप्रथम तो इस अंग का उपचार करने का यथासंभव प्रयास करता है। पर जब किसी भी चिकित्सा पद्धति या औषधि से यह अंग स्वस्थ नहीं होता है तो अंततः हारकर उसे एक कठोर निर्णय लेना ही पड़ता है। उस विषाक्त अंग को विलग देने का। आखिर शेष शरीर की सुरक्षा व स्वास्थ्य का जो प्रश्न है।
अब आप ही बताइए कि क्या चिकित्सक द्वारा लिया गया निर्णय अनुचित है। कौरव भी तत्कालीन समाज का ऐसा ही विषाक्त अंग बन चुका था। लाक्षागृह की भीषण अग्नि में अपने भाइयाें को झोेंक देने में जिन्हें कोई संकोच नहीं, भरी सभा में माता समान भाभी को निर्वस्त्र करने का प्रयास करते हुए उनके हाथ नहीं कांपते, जुऐ की कुचाले चलकर छलपूर्वक जो अपने भाइयों को सारा राज-पाट हड़प ले, उन्हें तेरह वर्ष के घोर वनवास में धकेल दे, इतना ही नहीें वनवास पूर्ण होने के पश्चात् भी उनका साम्राज्य न लौटाएं, मात्र पांच गांवो में भी समझौता करने को तैयार न हो ऐस धन-लोलुप व दुराचारी तत्त्व समाज के असाध्य नासूर नहीं तो और क्या है। इसलिए परम चिकित्सक श्री कृष्ण को संपूर्ण समाज के कल्याण हेतु अंततः उन्हें समूल नष्ट करने के लिए बद्ध किया।
भगवद्प्रेमियों यदि आज आप का मस्तक इस अवतारी सत्ता के नमन में नत नहीं होता, दृष्टि नीलमणि से पावन इस व्यक्तित्व में खोट देखती है तो इसका मात्र एक कारण है। वह है कृष्ण तत्व के प्रति अबोधता! अर्जुन भी श्री कृष्ण की गीता स्वीकार नहीं पाया था। जब तक उसे ‘दिव्य-दृष्टि’ द्वारा कृष्ण-तत्त्व का साक्षात्कार नहीं किया था। पूर्ण गुरु से उस तत्त्वज्ञान भाव ब्रह्मज्ञान प्रपन्न कर उस ईश्वर का साक्षात्कार करें। तभी युगावतार प्रभु और इनकी लीलाओं में निहित तात्त्विक रहस्यों को जान पाएंगे। तभी इनके प्रति शाश्वत प्रेम व श्रद्धा प्रस्फुटित होगी। तभी समस्त संशय व अंतविरोध शून्य में विलीन होंगें।
कथा के द्वितीय दिवस को विराम प्रभु की पावन आरती करके दिया गया। प्रभु की पावन आरती में पवन मित्तल (प्रधान, राम मंदिर सेक्टर 2 पंचकुला), विजय अग्रवाल (उप-प्रधान राम मंदिर, सेक्टर 2 पंचकुला), रेणुका शर्मा (परिवर्तन एन. जी. ओ.) महिला मंडल (लक्ष्मी नारायण मंदिर सेक्टर 6 पंचकुला), सनातन धर्म मंदिर कमेटी (सनी एन्क्लेव खरड़) के सभी सदस्य सम्मिलित हुए। अंत में कथा में पहुंचे सभी भक्त्जनों में भंडारे का वितरण किया गया।
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