Why tension in educational institutions due to controversial documentary,
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Editorial: विवादित डॉक्यूमेंट्री से शिक्षण संस्थानों में तनाव क्यों, युवा न हों गुमराह

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Why tension in educational institutions due to controversial documentary

Why tension in educational institutions due to controversial documentary गुजरात दंगों को लेकर बनी एक समाचार संस्था की विवादित डॉक्यूमेंट्री को लेकर देश में जिस प्रकार का माहौल बन रहा है, वह चिंताजनक और अप्रत्याशित है। इस डॉक्यूमेंट्री को प्रतिबंध के बावजूद विभिन्न राज्यों और यूनिवर्सिटी में दिखाया जा रहा है। दिल्ली से केरल तक डॉक्यूमेंट्री को लेकर बवाल हो रहा है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), पंजाब यूनिवर्सिटी और जामिया यूनिवर्सिटी में भी इसको लेकर जमकर हंगामा हुआ। यह तब है, जब केंद्र सरकार विवादित डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा चुकी है।

वहीं ब्रिटेन में वहां की सरकार भी इस डॉक्यूमेंट्री से खुद को दूर कर चुकी है, हालांकि भारत में सत्ता विरोधी दलों और तबके के लिए यह हथियार बन चुकी है। बेशक, इस डॉक्यूमेंट्री के कंटेंट पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन भारत में अभिव्यक्ति की आजादी की बात कहकर इस डॉक्यूमेंट्री को देखा और दिखाया जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर इस मामले को किस तरह से लिया जाए। सरकार इसे प्रतिबंधित कर चुकी है, लेकिन देश के लोग इस डॉक्यूमेंट्री को देखना चाहते हैं। क्या इस पर प्रतिबंध लगाना उचित था।

  गौरतलब है कि जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी Jawaharlal Nehru University जोकि बहुत पहले से ऐसे मामलों को लेकर विवादित है, मेें अब यह नया विवाद सामने आया है। यहां विद्यार्थियों का एक वर्ग इस डॉक्यूमेंट्री को देख रहा है वहीं यूनिवर्सिटी प्रशासन इसका विरोध कर रहा है। जाहिर है, कानूनन ऐसा करना गुनाह ही होगा, लेकिन क्या किसी विषय पर चर्चा, चिंतन, बातचीत से भी रोका जा सकता है क्या। इसके विरोध में छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में वामपंथी छात्र संगठन वामपंथी दल स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और आइसा के सदस्य शामिल रहे।

इस दौरान जमकर बवाल हुआ। जेएनयू प्रशासन इसकी स्क्रीनिंग पर पहले ही रोक लगा चुका था।   वहीं एसएफआई ने गणतंत्र दिवस Republic day पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी में विवादित डाक्यूमेंट्री दिखाई। इसके जवाब में एबीवीपी ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म दिखाई। इसके बाद कानून व्यवस्था के मुद्दे को देखते हुए डीन-स्टूडेंट्स वेलफेयर ने छात्रों के समूहों की काउंसलिंग की है। उन्होंने कहा कि कैंपस में शांति बनाए रखने के लिए और फिल्मों की स्क्रीनिंग करने से रोका गया है।

वास्तव में यह समझा जाना चाहिए कि आखिर इस डॉक्यूमेंट्री को बनाए जाने का मकसद क्या है। अभिव्यक्ति की आजादी भी कानून के दायरे से बाहर नहीं है। विदेशी समाचार संस्था ने गुजरात दंगों को जिस प्रकार से कवर किया, वह काफी हद तक उस समय की गुजरात सरकार पर लक्षित हमला था। गुजरात दंगों के लिए भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष ने जमकर हमले बोले हैं, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय उन्हें इस मामले में क्लीन चिट दे चुका है। तब इस तरह के आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं। इस डॉक्यूमेंट्री का मकसद सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Prime Minister Narendra Modi पर हमला करने का है।

वास्तव में इस मामले को अगर भारत पर हमला माना जाए तो यह कहना अनुचित नहीं होगा। यह डॉक्यूमेंट्री प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नहीं अपितु भारत के खिलाफ नजर आती है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने जिस प्रकार की तरक्की हासिल की है, वह अनेक देशों को परेशान कर रही है। बहुत से लोग जोकि देश के अंदर और बाहर बैठे हैं, इस बात को पचा नहीं पा रहे कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। यह उनके दिमाग में एक लहर पैदा कर रहा है कि कैसे भारत कई चुनौतियों के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर रहा है। इस समय भारत की महंगाई भी तुलनात्मक रूप से नियंत्रण में है और वह विकास दर को बेहतर बनाए रख रहा है।

 यह भी समझने वाली बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश नित नई ऊंचाइयों को हासिल कर रहा है। देश ने अनेक ऐसी उपलब्धियों को हासिल किया है, जोकि आजादी के बाद से ही देश का सपना होती थी। यह सर्वमान्य है कि जब कोई बेहतर कर रहा होता है तो उसका पुरजोर विरोध भी होता है। वे लोग जोकि भारत की तरक्की पसंद नहीं करते और उसके विकास की राह में अड़चनें डालना जिनका एकमात्र एजेंडा हो गया है, वे इस प्रकार की डॉक्यूमेंट्री और बयानों के जरिए देश और उसके नेतृत्व की छवि खराब कर रहे हैं। यह समय देश को एकजुट होकर ऐसी ताकतों के विरोध करने का है।

देश में डॉक्यूमेंट्री को हथियार बनाकर विरोध-प्रदर्शन होना स्वाभाविक है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि यह विरोध तार्किक हो। युवाओं के गुमराह होने के बजाय तथ्यों की पड़ताल करनी चाहिए और सही तस्वीर सामने आनी चाहिए।

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