Constitutional crisis on Nayab government, possibility of dissolution of assembly

नायब सरकार पर संवैधानिक संकट, विधानसभा भंग होने के आसार

Constitutional crisis on Nayab government, possibility of dissolution of assembly

Constitutional crisis on Nayab government, possibility of dissolution of assembly

Constitutional crisis on Nayab government, possibility of dissolution of assembly- चंडीगढ़। प्रदेश की नायब सरकार पर संवैधानिक संकट आया है और विधानसभा भंग होने के आसार भी बन रहे हैं। ऐसी स्थिति को टालने के लिए सरकार सत्र बुलाने पर मंथन कर रही है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नायब सैनी केंद्र से बातचीत कर रहे हैं। इस संदर्भ में सरकार ने 31 अगस्त को मंत्रिमंडल की बैठक की प्रस्तावित कर दी है। सदन में नायब सिंह सैनी को बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने के छह महीने का कार्यकाल 12 सितंबर को पूरे हो रहे हैं।

ऐसे में नियमों के तहत छह महीनों के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाया जाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। इसके लिए सरकार ने एक दिन का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी शुरू कर दी है। नायब सरकार ने 31 अगस्त को राज्य कैबिनेट की बैठक बुलाने का प्रस्ताव किया है। हालांकि, सरकार के नेताओं का कहना है कि सरकार चुनावी माहौल में विधानसभा का सत्र बुलाने का जोखिम शायद ही ले। यह भी संभावना है कि विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश करेगा और विधानसभा भंग करने का दबाव बनाएगा। माना जा रहा है कि सत्र बुलाने के संबंध में मुख्यमंत्री की केंद्र से बातचीत चल रही है।

क्या कहता है नियम

नायब सिंह सैनी ने 12 मार्च को मुख्यमंत्री बनने के बाद 13 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था। इस लिए 12 सितंबर से पहले सत्र बुलाना संवैधानिक रूप से सरकार की मजबूरी बन गयी है। संविधान के अनुच्छेद 174 1 में स्पष्ट है कि विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतराल नहीं हो सकता। इसलिए मौजूदा नायब सरकार को विधानसभा सत्र बुलाना अनिवार्य है। प्रदेश की विधानसभा के इतिहास पर गौर करें तो आज तक कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आई है जब छह महीने में सरकार द्वारा कोई सत्र न बुलाया गया हो। हालांकि, चुनावों की घोषणा से पहले नायब कैबिनेट की तीन बैठें हो चुकी हैं। आखिरी बैठक गत 17 अगस्त को यानी विधानसभा चुनावों की घोषणा के अगले ही दिन हुई थी। कानूनविद का भी यही मानना है कि राष्ट्रपति के पास याचिका भेजी गई थी। उनका कहना है कि संवैधानिक संकट टालने के लिए या तो सत्र बुलाना होगा, नहीं तो 14वीं विधानसभा को भंग करना होगा।

चुनाव आयोग से मांगी इजाजत

वहीं दूसरी तरफ, सरकार की ओर से चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने की इजाजत भी मांगी है। केंद्र और चुनाव आयोग से हां होते ही  शनिवार को सीएम मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई जा सकती है। जिसमें सत्र बुलाने पर फैसला किया जाएगा। आयोग से अनुमति मिलने के बाद सरकार अगर विधानसभा को भंग करने का फैसला लेती है तो तो फिर इस बारे में राज्यपाल को सूचित किया जाएगा।