Congress should first solve its internal issues

Editorial: कांग्रेस पहले अपने आंतरिक सवालों का समाधान करे

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Congress should first solve its internal issues

Congress should first solve its internal issues: हरियाणा कांग्रेस की ओर से संविधान बचाओ रैलियां और पदयात्राओं का कार्यक्रम जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश है कि पार्टी ने हार नहीं मानी है। निसंदेह लोकतंत्र में विपक्ष का कार्य जन सरोकारों के लिए काम करते रहने का है। हालांकि यह प्रश्न पूछा जा रहा है कि संविधान बचाओ का नारा देने वाली कांग्रेस के नेता क्या खुद अपने आंतरिक संविधान को कायम रख पा रहे हैं, दूसरे शब्दों में यह कि क्या कांग्रेस ने अपने आंतरिक सवालों का समाधान कर लिया है। हरियाणा कांग्रेस में इस समय तीन-चार गुट बन चुके हैं और प्रत्येक नेता अपने लिए ही काम करता नजर आ रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि पार्टी को आगे बढ़ाया जाए, लेकिन बगैर संगठन के आखिर किस प्रकार यह कार्य संपन्न हो पाएगा।

कांग्रेस की ओर से 26 जनवरी तक जिलों और ब्लॉक स्तर पर इन रैलियों का कार्यक्रम तो जारी कर दिया गया है, लेकिन बताया गया है कि पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता इन रैलियों में हिस्सा नहीं लेंगे। उनकी ओर से अपने कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं। जाहिर है, पार्टी की यह गुटबाजी उसकी सत्ता हासिल करने की चाहत के आड़े आ रही है। बीते दिनों प्रदेश प्रभारी की ओर से प्रदेश  नेतृत्व को विश्वास में लिए सह प्रभारियों को क्षेत्रों का आवंटन भी चर्चा में है। इन सबके बावजूद पार्टी हाईकमान की ओर से अभी तक नेता विपक्ष के नाम का भी ऐलान नहीं किया गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब प्रदेश में अच्छी-खासी सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद पार्टी नेतृत्व का मनोबल इस प्रकार डांवाडोल है।

यह सत्य अब छिपा हुआ नहीं रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी ही हार की मुख्य वजह रही है। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस के नेता और पार्टी हाईकमान भी इस बात को मानने लगा है। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस नेताओं को लेकर हाईकमान का रूख जहां सख्त हो गया है वहीं प्रदेश में पार्टी के अंदर के हालात भी हाईकमान संभव है  बदलने की जुगत में है। वास्तव में इसकी जरूरत बहुत पहले से थी लेकिन पार्टी हाईकमान के लिए यह दुविधा हो सकती है कि वह आखिर बदलाव करे भी तो क्या। यानी किसे बदल कर किसे आगे लाए। बीते दिनों लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की एकाएक चंडीगढ़ यात्रा और प्रदेश के नेताओं से दूरी भी इस तरह की बातों का आधार बन रही है कि हाईकमान को लग रहा है कि अगर प्रदेश में गुटबाजी नहीं होती तो इस बार कांग्रेस यहां सरकार बना चुकी होती। खैर, इन बातों को नया आकार उस समय भी मिल रहा है, जब प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष के बीच तकरार का सिलसिला जारी है। यह सिलसिला उस समय शुरू हुआ था जब एक पक्ष की ओर से यह कहा गया कि चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ी का संदेश उन्होंने दूसरे पक्ष को पहुंचा दिया था लेकिन तब भी कार्रवाई नहीं की गई।

प्रदेश दीपक बाबरिया की स्थिति लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान काफी चुनौतीपूर्ण रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान तो टिकट के चाहवानों की संख्या एक अनार सौ बीमार वाली रही। तब सभी की उम्मीदें बाबरिया से थी कि वे टिकट दिलवाएंगे। हालांकि खुद बाबरिया बेहद दबाव में रहे और आखिर वे अस्पताल में भर्ती हो गए। जाहिर है, कांग्रेस में ऐसी स्थिति नहीं है कि राज्य स्तर के नेता या फिर प्रभारी अपने तौर पर कुछ ऐसा निर्णय लें, इसलिए हाईकमान की तरफ देखना पड़ता है। लेकिन प्रदेश कांग्रेस में नया विवाद तब खड़ा हो गया जब प्रदेश अध्यक्ष की ओर से जिला प्रभारियों की सूची को प्रदेश प्रभारी ने रद्द कर दिया। इस पर पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं की ओर से कहा गया है कि चुनाव के दौरान कई नेता पार्टी छोड़ कर चले गए और अब उस सूची को अपडेट करना जरूरी था। बेशक, ऐसा करना जरूरी है, लेकिन यह विषय सभी के लिए उत्सुकता का है कि आखिर प्रदेश अध्यक्ष की सूची को प्रदेश प्रभारी ने रद्द कर दिया। यानी उन्हें उस सूची पर भरोसा नहीं था, या फिर यह माना जाए कि इसे उन्हें विश्वास में लिए बगैर जारी किया गया। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस के अंदर जितने नेता हैं, उतनी है बातें हैं।

बीते दिनों में पूर्व मंत्री बीरेंद्र सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान के बीच शाब्दिक बाण चलते हुए नजर आए थे। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष ने यह जरूरी समझा कि वे बीरेंद्र सिंह की बातों का जवाब दें, हालांकि बीरेंद्र सिंह ने क्या बात कही थी, उस पर अमल की जरूरत नहीं समझी गई। इस बीच कांग्रेस की ओर से यह भी दावा किया जा रहा है कि उसका वोट प्रतिशत भाजपा के बराबर है। बेशक, इस तरह के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन जिसके पास संख्या बल है, वही सरकार बनाता है। तब यह बात भी गौर करने लायक हो जाती है कि आखिर कांग्रेस जब लगभग जीत की अवस्था में थी और उसके लिए पूरे प्रदेश में माहौल बन चुका था, उसके बावजूद वह हार क्यों गई। दरअसल, सरकार से लड़ने से पहले कांग्रेस को अपने अंदर की लड़ाई को शांत करना होगा और ऐसा हुआ तो यह उसकी बड़ी जीत होगी।

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