कांग्रेस अध्यक्ष की चुनौतियां
- By Habib --
- Friday, 21 Oct, 2022
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Congress President Challenges
कांग्रेस ने अपने आंतरिक लोकतंत्र को जिंदा रखते हुए नए अध्यक्ष का चुनाव तो कर लिया लेकिन यह सवाल अहम है कि क्या वे वास्तव में कांग्रेस को उस मुकाम पर ले जा पाएंगे, जहां वह पहुंचना चाहती है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मल्लिकार्जुन खडग़े गांधी परिवार के विश्वासपात्र ही बने रह जाएं और अपना कार्यकाल इसी में समाप्त कर दें। दरअसल, उनके सामने चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है। इन चुनौतियों में पार्टी पर अपना नियंत्रण कायम करना, पार्टी में अंदरूनी कलह खत्म करना, दलितों को पार्टी के साथ जोडऩा और पार्टी को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मुकाबले के लिए तैयार करना शामिल है। इन सब चुनौतियों के बीच खडग़े के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को अध्यक्ष के तौर पर स्थापित करना है, क्योंकि, पार्टी में हाईकमान कल्चर है। पार्टी के कई नेता मानते हैं कि असल ताकत गांधी परिवार के हाथ में ही रहेगी।
ऐसे में खडग़े किस तरह अध्यक्ष के तौर पार्टी में अपनी बात मनवा पाते हैं, यह वक्त तय करेगा। बतौर अध्यक्ष खडग़े का पहला इम्तिहान गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव होंगे, पर उनके लिए असल चुनौती 2023 से शुरू होगी। अगले साल राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक सहित दस राज्यों में चुनाव हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनके सामने चुनावों में पार्टी को जीत की चुनौती है। इन चुनाव के खत्म होते ही 2024 के लोकसभा चुनाव का रण शुरू हो जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर खडग़े की यह असल परीक्षा होगी क्योंकि, इन चुनाव में कांग्रेस का मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ है। विपक्ष बंटा हुआ है और लोगों के बीच प्रधानमंत्री की छवि बरकरार है। ऐसे में पार्टी को जीत की दहलीज तक पहुंचाना आसान नहीं है।
एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में हार से पार्टी नेता और कार्यकर्ता हताश हैं। कई राज्यों में कार्यकर्ताओं ने दूसरी पार्टियों में अपनी जगह तलाश ली है। ऐसे में अध्यक्ष के तौर पर खडग़े को कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाना होगा। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह अहसास दिलाना होगा कि कांग्रेस चुनाव में भाजपा का मुकाबला कर सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर खडग़े के सामने पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है। पार्टी में एक तबका नाराज है। वह लगातार पार्टी के फैसलों पर सवाल उठा रहा है। पार्टी नेता कांग्रेस छोडक़र दूसरी पार्टियों में जगह तलाश रहे हैं। ऐसे में खडग़े के लिए अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को एकजुट रखते हुए सभी को साथ लेकर चलना होगा। राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता सचिन पायलट में घमासान जारी है। दोनों नेता एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद आलाकमान इसका समाधान करने में नाकाम रहा है। खडग़े को इस झगड़े को खत्म करना होगा। पार्टी के अंदर लंबे वक्त से यह सवाल उठता रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व का स्थानीय नेताओं के साथ संवाद खत्म हो गया है। कार्यकर्ता और नेतृत्व के बीच संवादहीनता है। पार्टी छोड़ने वाले कई नेताओं ने भी इस मुद्दे को उठाया है। इसलिए खडग़े के सामने पार्टी के अंदर संवाद की प्रक्रिया को बहाल कर नेताओं का भरोसा जीतने की चुनौती है।
मौजूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं। साल 1997 में उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली थी। साल 1998 के लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही पार्टी में बढ़ती मांगों के बीच उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। अप्रैल 1998 में वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं। अगस्त की शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव आयोजित होने की खबरें सामने आना शुरू हो गई थीं। हालांकि, लंबे समय तक यह कहा जाता रहा कि राहुल गांधी को शीर्ष पद के लिए मनाने के प्रयास जारी हैं। शुरुआत में पार्टी प्रमुख चुनने की तारीख 20 सितंबर मानी गई थी, लेकिन बाद में यह बढ़ी और 19 अक्तूबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया। गौरतलब है कि इस चुनाव में विजेता उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खरगे का कई वरिष्ठ नेताओं ने समर्थन किया जबकि बदलाव के उम्मीदवार के तौर पर अपने आप को पेश करने वाले शशि थरूर का पार्टी के ऐसे कार्यकर्ताओं ने समर्थन किया जिन्हें कम जाना जाता है। अब थरूर ने कहा है कि वे नतीजों को लेकर हताश नहीं हैं क्योंकि चुनावों ने पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरा।
दरअसल, बेशक खडग़े अध्यक्ष पद के चुनाव में विजयी हो चुके हैं, लेकिन इसे गांधी परिवार की जीत ही माना जाना चाहिए। आखिर ऐसा कहां हो सकता है कि किसी ऐसे व्यक्ति को पार्टी की जिम्मेदारी सौंप दी जाती, जोकि स्वतंत्र सोच का मालिक है और उसके रहते गांधी परिवार को अपनी राजगद्दी बचानी मुश्किल हो जाती। क्या इस देश में कोई गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस को सोच सकता है, वहीं गांधी परिवार भी इसलिए है क्योंकि कांग्रेस है। दोनों एक दूसरे के विकल्प हैं और इसी तरह रहेंगे। ऐसे में पूछा जा सकता है कि क्या यही कांग्रेस का भविष्य है? अपने प्रचार के दौरान शशि थरूर ने नई सोच और चेतना के साथ पार्टी को चलाने का वादा किया था, वहीं खडग़े भी प्रतिबद्ध नजर आए। लेकिन 80 वर्षीय खडग़े के पास अनुभव हो सकता है, लेकिन भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए क्या पार्टी को एक उच्च शिक्षित और स्वतंत्र सोच के नेता को नहीं चुनना चाहिए था।
कांग्रेस अपने अंदर बदलाव लाने की चाह पाले हुए है, इसके लिए अब अध्यक्ष का चुनाव भी करवा रही है, लेकिन इसके बावजूद संदेहपूर्ण है कि वह खुद को एक युवा की भांति दौड़ता हुआ पेश कर सकेगी। कांग्रेस को इस समय तरुणाई की जरूरत है, उसे अपने ऊपर चढ़ी केंचुली उतारने की भी आवश्यकता है। यह उसी तरह है, जैसे कि किसी पुरानी इमारत का रिनोवेशन किया जाए। कांग्रेस को अपने रिनोवेशन के बारे में सोचना होगा और उस पर काम करना होगा।