Congress must examine its own shortcomings before making allegations

Editorial: कांग्रेस को आरोप लगाने से पहले अपनी कमी को जांचना होगा

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Congress must examine its own shortcomings before making allegations

Congress must examine its own shortcomings before making allegations: हरियाणा में कांग्रेस के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव वह मृगमरीचिका है, जिसका पार्टी लगातार पीछा कर रही है, लेकिन जिसे अभी तक पकड़ नहीं सकी। निश्चित रूप से अब इसकी संभावना भी नहीं है कि मृगमरीचिका का तोड़ वह तलाश पाएगी। लेकिन जैसे दिल है कि मानता नहीं की तर्ज पर पार्टी लगातार कोशिश कर रही है।  प्रदेश में भाजपा की जीत को कांग्रेस पचा नहीं पा रही है और उसे लगता है कि जब पूरे प्रदेश में इस बार कांग्रेस की जीत के नारे लग रहे थे, तब एकाएक क्या हो गया कि वह हार गई और भाजपा जीत गई।

हालांकि इस दौरान पार्टी ईवीएम और सरकारी मशीनरी पर इसका आरोप मढ़ रही है कि उसे हरा दिया गया। यही वजह है कि चुनाव आयोग पर पार्टी ने आरोप लगाया और शिकायत दी। लेकिन आयोग की ओर से कांग्रेस के आरोपों को बेबुनियाद और लोकतांत्रिक भावना के उलट बताया गया। इसके जवाब में कांग्रेस ने चुनाव आयोग को जहां नए सिरे से शिकायत दी है, वहीं एक कमेटी का गठन किया गया है, जोकि चुनाव में कथित धांधली की अपने स्तर पर जांच करेगी। अब यह बात स्पष्ट नहीं है कि आखिर इस जांच को किस प्रकार संचालित किया जाएगा। यानी एक राजनीतिक दल किस प्रकार सरकारी मशीनरी से इसकी जांच-पड़ताल करेगा कि आखिर किस प्रकार चुनाव कराए गए। इस मामले में आरोपों पर और आरोप लगते रहेंगे और सच न जाने किस प्रकार सामने आएगा।

कांग्रेस के लिए इस चुनाव में जीत उसके बेहद नजदीक होकर गुजर गई। इस बार का चुनाव सभी दलों के लिए बेहद टफ मुकाबले वाला रहा। हालांकि प्रदेश की जनता के मन में भी यह ऊहापोह था कि किसे जीताया जाए। लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आती गई यह संशय दूर होता गया और आखिरकार जनता खुद एक दूजे से मुकाबले में उतरी और उसने खुद को जिताने के लिए वोट किया। यानी एक तरफ वे राजनीतिक दल थे जोकि अपनी पहले की सरकार के कार्यों को गिना रहे थे और एक तरफ  निवर्तमान सत्ताधारी दल था, जिसने अपने हालिया किए कामों को सामने रखा और जनता ने उसके साथ जाना पसंद किया। इसमें क्या गड़बड़ मानी जा सकती है। बेशक, अनेक सीटों पर जीत का मार्जिन बेहद कम रहा। यहां कांग्रेस का आरोप है कि उसके उम्मीदवारों को जान कर हराया गया। लेकिन क्या यह पूरी तरह से सुनिश्चित होकर कहा जा सकता है। आखिर पहले ऐसा नहीं हुआ तो अभी क्यों हो रहा है। जहां कांग्रेस जीत हासिल करती है, वहां चुनाव आयोग भी सही होता है और ईवीएम भी लेकिन जहां कांग्रेस हार जाती है वहां प्रत्येक चीज गड़बड़ हो जाती है।

अगर कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली होती तो संभव है, उसे अपनी कमजोरियां भी प्लस पाइंट लगने लगती। इन चुनावों में हार के कारणों को खोजने के लिए पार्टी ने पहले भी कमेटी बनाई थी, जिसका सार यह था कि उसकी खुद की कमजोरी और भितरघात की वजह से हार हुई है। क्या इतना भर काफी नहीं है, यह समझने के लिए कि आखिर पार्टी किस वजह से हारी। यह बात लंबे समय से कही जा रही है कि हरियाणा कांग्रेस में एक धड़ा ही सारे संसाधनों पर काबिज है और दूसरे वर्गों को उनका हक नहीं मिल रहा। यह कितना अचंभित करता है कि पार्टी में जितने भी विधायक निर्वाचित हुए हैं, उनमें सर्वाधिक संख्या हुड्डा गुट की है। निश्चित रूप से टिकटों के वितरण में पूर्व सीएम एवं उनके समर्थकों की भावनाओं का हाईकमान ने ख्याल रखा, लेकिन अब परिणाम सामने आने के बाद क्या हाईकमान भी इस पर विचार करेगा कि क्या ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था।

चुनाव में कांग्रेस ने ईवीएम के जरिये हराने के आरोप तो लगा दिए लेकिन ऐसे आरोपों की बजाय इसकी जरूरत है कि पार्टी अपनी खामियों पर ध्यान दे। यही बात पार्टी के उम्मीदवार रहे नेता भी कह रहे हैं। इस चुनाव में पार्टी के अंदर घोर अनुशासनहीनता देखने को मिली है। इसके बाद यह संभव नहीं था कि पार्टी जीत हासिल कर पाती। हरियाणा में इस बार यह देखने को मिला है कि एक सीट पर ही तीन दर्जन के करीब टिकट के लिए आवेदन आए। निश्चित रूप से हलके में किसी को एक ही टिकट मिलेगी। अब जिसे टिकट मिला तो बाकी तो उसके विरोधी ही हो गए। क्या यह बहुत स्वाभाविक होगा कि वे उस उम्मीदवार का चुनाव में समर्थन करेंगे। यही कारण है कि अब कहा जा रहा है कि पार्टी में भितरघात ने उम्मीदवारों को हराया। कांग्रेस को चाहिए कि मौजूदा चुनाव में कथित गड़बड़ का पता लगाने के साथ अपनी कमियों को भी दूर करे। चुनाव के बाद भी पार्टी का संगठन नहीं बन सका है, ऐसे में वह कैसे आगे बढ़ पाएगी। 

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