Congress lost due to its flaws

अपनी खामियों से हारी कांग्रेस

Congress lost due to its flaws

Congress lost due to its flaws

पंजाब विधानसभा चुनाव में हार का अगर किसी पार्टी को सबसे ज्यादा दुख मनाना चाहिए तो वह कांग्रेस पार्टी होनी चाहिए। पार्टी किसी भवन का नाम नहीं है, पार्टी लोगों और उसके नेताओं से बनती है। सीधा मतलब है कि जिन्हें नेतृत्व मिलता है, वे नेता कहलाते हैं और फिर पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी भी उनकी ही होती है। हालांकि पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिद्धू, पदाधिकारियों और निवर्तमान सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने कहीं भी इसका अहसास नहीं होने दिया है कि उनकी अंदरूनी गतिविधियों की वजह से पार्टी को यह शर्मनाक पराजय झेलनी पड़ी है। अभी तक कांग्रेस आलाकमान की ओर से भी कोई बयान नहीं आया है। सोशल मीडिया पर चहकने वाले आलाकमान ने पंजाब के संबंध में एक शब्द नहीं बोला है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने बेशक हार की जिम्मेदारी ली है, लेकिन न प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी हेठी छोड़ने को तैयार हैं और न ही निवर्तमान मुख्यमंत्री चन्नी आलाकमान की ओर से दी गई चौधर की पगड़ी उतार रहे हैं। प्रदेश प्रभारी ने तो कांग्रेस की खामियों पर चिंतन के बजाय यह कहना ज्यादा उचित समझा है कि इस बात का रिव्यू होगा कि आखिर प्रदेश में बदलाव की इतनी मांग क्यों उठी। बेशक, इसका रिव्यू होना चाहिए कि आखिर प्रदेश की जनता इस बार इतनी उतावली क्यों दिखी है, लेकिन कांग्रेस को यह भी पता लगाना होगा कि आखिर उसने अपने एक मुख्यमंत्री को अपमानित करके पार्टी से निर्वासित क्यों कर दिया? उसे यह भी पता लगाना चाहिए कि आखिर एक बड़बोले व्यक्ति को जोकि राजनीतिक फ्रेम में ठीक से फिट होते ही नहीं हैं, की बातों में आकर इतना बड़ा फेरबदल क्यों कर दिया? कांग्रेस को यह भी मालूम करना चाहिए कि आखिर एक सज्जन राजनेता सुनील जाखड़ को भी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से क्यों हटा दिया गया?

   कांग्रेस को इसका भी पता लगाना चाहिए कि आखिर निकाय चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के साल भर के अंदर ऐसा क्या हो गया कि पार्टी विधानसभा में महज 18 सीटों पर सिमट गई। उसके सीएम फेस जिन्हें दो हलकों से लड़ाया जा रहा था, दोनों जगह से चुनाव हार गए वहीं प्रदेश अध्यक्ष भी अपनी लुटिया को डुबो बैठे। यह कितना खोखला नजर आता है कि जब लोगों के बीच जाकर उनके दिल का हाल समझना था, जो वाकई में टिकट के हकदार थे, उन्हें टिकट दी जानी चाहिए थी। अपनी बड़बोली जुबान पर ताले लगाने थे और वर्चस्व की लड़ाई पर अंकुश लगाना था, नहीं किया गया। लेकिन अब चुनाव परिणाम आने के बाद नेता अपनी कोठियों से बाहर आकर लोगों से मिल रहे हैं और दिल को तसल्ली देने के लिए फीकी हंसी हंस रहे हैं। कभी ताली ठोकने को कहने वाले अब पार्टी के भविष्य पर कीलें ठोक चुके हैं। क्या इसे कांग्रेस की आत्ममुग्धता नहीं कहेंगे कि उसने मूल्यांकन करने के बजाय पसंदीदा चेहरों को आगे किया। क्या कांग्रेस इसका जवाब देगी कि आखिर उसने अपने हिंदू सिख नेताओं को इस चुनाव में पीछे क्यों धकेल दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनकी कुर्सी से उतारने के बाद नए मुख्यमंत्री के लिए सुनील जाखड़ का नाम भी सामने आया था, लेकिन एक महिला नेता ने उनके नाम को वीटो कर दिया। क्या कांग्रेस इस पर आकलन करेगी कि अगर वह काबिल, सक्षम और दाग रहित छवि के नेताओं को आगे रखती तो आज पार्टी का यह हाल न हुआ होता। कांग्रेस को समझना चाहिए कि अब तो चुटकुले भी लॉजिक वाले ही सुने जाते हैं, वाहियात न बात सुनी जाती है और न ही चेहरे।

   पंजाब में हारने वाली पार्टियां बेशक ऐसा कहकर अपने दिलों को तसल्ली दें कि इस बार जनता बदलाव के मूड में थी और आम आदमी पार्टी के तूफान में सभी को नुकसान हुआ है। लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि एक आठ साल पहले स्थापित की गई पार्टी अगर लगभग प्राचीन हो चुकी पार्टियों को हराने में सिर्फ इसलिए कामयाब नहीं हो गई कि जनता यह चाहती थी। हारी पार्टियों की अंदरूनी गुटबाजी, राजनीतिक कुप्रबंधन, भरोसेमंद चेहरों का अभाव, एक नवोदित पार्टी और उसके नेताओं का उपहास उड़ाना और पंजाब पर केवल अपनी विरासत का डंका पीटना भी भारी पड़ा है। आखिर दिल्ली की पार्टी पंजाब में आकर चुनाव क्यों नहीं लड़ सकती। क्यों निवर्तमान सीएम चन्नी ने बड़े हर्षोल्लास से यह कहा कि भईये यहां आकर राज नहीं कर सकते। उनके इस ऐतिहासिक बयान के वक्त कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और अध्यक्ष पद की आकांक्षी प्रियंका गांधी भी मौजूद रहीं। उन्होंने तालियां बजा कर इसका स्वागत किया था। क्या चन्नी अब इसका जवाब देंगे कि आखिर भईयों ने भी तो कांग्रेस की हार में अपना योगदान नहीं दिया है। पंजाब के नेताओं को इस चुनाव के बाद अपनी सोच को पूरी तरह बदल लेना चाहिए कि पंजाब पर किसी का कॉपीराइट है। खालिस्तानी सोच इस चुनाव के बाद खुद खत्म हो गई है। पंजाब सभी का है और इसे खुली बांहों से सभी का स्वागत करना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पंजाब बैलगाड़ी के पहिये की भांति यूं ही घिसटता रहेगा, जबकि जरूरत इसके एक्सप्रेस बनने की है। पंजाब के राजनीतिक दलों को यह विचार लेना चाहिए कि अब उन मुद्दों की यहां जगह नहीं है, जोकि शीशे में सजा कर यहां रखे गए हैं और बार-बार उन पर से धूल हटा कर उन्हें आगे लाया जाता है। यह वक्त कम बोल कर ज्यादा काम करने का है।