General election success

Editorial: आम चुनाव में सफलता से कांग्रेस को मिली संजीवनी

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Congress got a new lease of life with its success in the general elections

Congress got a new lease of life with its success in the general elections: 2024 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए संजीवनी की भांति  हैं, इन चुनावों के दौरान कांग्रेस ने जिस प्रकाश शानदार अंदाज में वापसी की है, वह पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को इसकी उम्मीद बंधाती है कि देश की जनता का कांग्रेस पर भरोसा कायम है और वह उसे विकल्प के रूप में देखती है। गौरतलब है कि बीते दस साल से देश पर शासन कर रही भाजपा ने कांग्रेस को ही हरा कर सत्ता हासिल की थी। यह भी सच है कि उसी दौर में दूसरे क्षेत्रीय दल भी बढ़त हासिल कर गए और कांग्रेस पीछे रह गई। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरी लेकिन जनता ने उस पर भरोसा नहीं जताया।

हालांकि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न केवल क्षेत्रीय दलों और सीधे अपने विरोधियों से हाथ मिलाया बल्कि 99 सीटें जीत कर यह साबित कर दिया कि कांग्रेस को अलविदा नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह तो तय है ही कि कांग्रेस ने जिस प्रकार राज्यों में अपनी बढ़त को बनाए रखा है, उसके बाद उसकी अनदेखी की ही नहीं जा सकती। कांग्रेस ने हाल में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीते थे और अब उत्तर भारत में उसने अपनी दमदार मौजूदगी का अहसास करा दिया है।

कांग्रेस के लिए यह समय वास्तव में ही चुनौतीपूर्ण है। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने दो बार राष्ट्रीय स्तर की यात्राएं निकाली हैं। एक बार कन्याकुमारी से कश्मीर तक और दूसरी पूर्वोत्तर से मुंबई तक। उनकी इन दोनों यात्राओं को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया गया और सत्ता पक्ष के नेताओं ने इनका मजाक उड़ाया। हालांकि बाद में विधानसभा चुनावों में इस यात्रा के बूते ही कांग्रेस को शानदार बहुमत मिला। हरियाणा जैसे कांग्रेस प्रभावी राज्य से गुजरते समय राहुल गांधी को जिस प्रकार का समर्थन मिला था, अब यह माना जा सकता है कि उसकी वजह से राज्य में कांग्रेस को 5 सीटें हासिल हो गई हैं।

कांग्रेस ने राज्य में अंबाला, रोहतक, हिसार, सिरसा और सोनीपत सीटें जीत कर राज्य के सबसे अहम जिलों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ा है। राहुल गांधी ने मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए आम आदमी से जुड़े मुद्दों को उठाकर कांग्रेस को मुख्यधारा में ला दिया है। राहुल गांधी सोनीपत के खेतों में धान की पंजीरी लगाने पहुंचे थे और जनता से संवाद किया था। आखिर जनता इन बातों को किस प्रकार नहीं समझेगी। यहां भावनात्मक पहलू काम करता है और जनता उस नेता के साथ खुद को जोड़ती है। यह समय कांग्रेस के अंदर बदलाव का है, लेकिन यह भी जरूरी है कि कांग्रेस इस बदलाव को और बढ़ाए और स्पष्ट एवं निर्णायक भूमिका के साथ सामने आए।

साल 2020 का वह दिन कौन भूल सकता है, जब कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर
अध्यक्ष का चुनाव कराने की मांग की थी। हालांकि इस पत्र को बागियों की आवाज करार दिया गया था। बाद में उन तथाकथित बागियों को पार्टी से बाहर कर दिया गया या फिर वे खुद चले गए। क्या कांग्रेस को यह नहीं समझना चाहिए था कि वे तथाकथित बागी सही आवाज उठा रहे हंै। बाद में पार्टी ने मल्लिकार्जुन खडग़े के रूप में अपना स्थायी अध्यक्ष भी निर्वाचित कर लिया। खडग़े की प्रधानगी में कांग्रेस का उत्साह बहुत बढ़ा है और उसकी कार्यशैली भी बदल गई है। पार्टी को यह स्वीकार करना पड़ेगा, उसके लिए इस प्रकार के साहसिक निर्णय जरूरी हैं।

वास्तव में किसी देश को अगर सशक्त सरकार की जरूरत होती है, तो उसे एक मजबूत विपक्ष भी चाहिए होता है। कांग्रेस के लिए यह आत्ममंथन का वक्त है। हालांकि यह भी जरूरी है कि कांग्रेस अपने दम पर आगे बढ़े। इस चुनाव में कांग्रेस ने उन दलों के साथ भी गठबंधन किया है, जोकि उसे हटा कर खुद को कायम करने की कोशिश में है। कांग्रेस के तमाम नेताओं ने इस गठबंधन का विरोध किया था, लेकिन उनकी सुनी नहीं गई। अब भविष्य में कांग्रेस की रणनीति क्या रहेगी, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि पार्टी को यह समझना आवश्यक है कि वह अपने बूते बढ़ेगी तो ही एक दिन देश की सत्ता के केंद्र में पहुंचेगी। क्षेत्रीय दल उसके आकार का फायदा उठाएंगे लेकिन कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं हो सकेगा। 

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