Concrete decision is necessary on cases hanging for centuries

सदियों में लटक रहे मामलों पर ठोस निर्णय जरूरी

editoriyal1

Concrete decision is necessary on cases hanging for centuries

Concrete decision is necessary on cases hanging for centuries: पंजाब हरियाणा (Punjab Haryana) के बीच सदियों से चल रहे एसवाईएल व चंडीगढ़ जैसे संवेदनशील मामलों का हल कब तक होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है, और अब हरियाणा विधानसभा के लिए चंडीगढ़ में ही जमीन मांगे जाने की हरियाणा की मांग पर पंजाब की राजनीति का गरमाना अस्वाभाविक नहीं है। पानी और राजधानी (water and capital) दो ऐसे मसले हैं, जोकि पंजाब और हरियाणा के बीच इन राज्यों के पुनर्गठन के बाद से ही अनसुलझे हैं। हरियाणा की चंडीगढ़ में ही विधानसभा बनाने की मांग (Demand for assembly) और इसके बदले पंचकूला में चंडीगढ़ को जमीन देने का प्रस्ताव (Proposal to give land to Chandigarh in Panchkula) चंडीगढ़ प्रशासन और हरियाणा सरकार  (Chandigarh Administration and Government of Haryana) के बीच का मसला है, लेकिन पंजाब अगर इसमें सियासत तलाश रहा है तो यह उसके राजनीतिक दलों की वह मजबूरी है, जिसमें वे चंडीगढ़ पर अपना वर्चस्व कम होते नहीं देखना चाहते। चंडीगढ़ की स्थापना बेशक पंजाब के गांवों की जमीन पर हुई है, लेकिन दोनों राज्यों के अलग होने के बावजूद पंजाब का चंडीगढ़ पर एकाधिकार मानना न्यायोचित नहीं लगता। यह तब है, जब विधानसभा का भी 60 और 40 के अनुपात (Ratio of 60 and 40) में दोनों राज्यों में विभाजन है, लेकिन फिर भी हरियाणा को उसका पूरा हिस्सा नहीं मिल रहा और इस 40 फीसदी के बड़े हिस्से पर भी पंजाब का ही कब्जा है।
     हरियाणा विधानसभा (Haryana Vidhansabha)  की ओर से पहले चंडीगढ़ में ही मनीमाजरा के पास नई विधानसभा (New Vidhansabha) के लिए जमीन तलाशी जा रही थी। यह जमीन लगभग फाइनल भी हो गई थी, स्वयं मुख्यमंत्री ने भी यहां का दौरा किया था, इसके बाद चंडीगढ़ प्रशासन (Chandigarh Administration) को हरियाणा की ओर से आगे की कार्रवाई का इंतजार था। लेकिन इसी बीच हरियाणा विधानसभा के स्पीकर (Speaker of haryana assembly) की ओर से पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक (Governor of Punjab and Administrator of Chandigarh) से मिलकर विधानसभा के लिए जमीन की अदला-बदली का प्रस्ताव देना यह बताता है कि हरियाणा किसी सूरत में चंडीगढ़ पर अपने दावे को कमजोर होते नहीं देखना चाहता। बेशक, हरियाणा चाहे तो वह पंचकूला के बाहरी इलाके में नैसर्गिक सौंदर्य के बीच अपनी विधानसभा बना सकता है, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो यह चंडीगढ़ पर अपने दावे से पीछे हटना होगा। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (CM Bhawant Man) नई विधानसभा के लिए जमीन मांग चुके हैं, अब उनकी इस मांग पर भी राज्य में विरोधी दल मोर्चा खोले हुए हैं। मान की अलग विधानसभा की मांग ताज्जुब करने वाली थी, क्योंकि वे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने इस प्रकार की मांग उठाई थी।
    आखिर एसवाईएल नहर और अलग राजधानी, अलग विधानसभा (Separate capital, separate assembly) का यह मामला क्या कभी हल भी हो सकेगा? क्या पंजाब और हरियाणा की आम जनता के लिए ये मुद्दे इतने गंभीर हैं कि वह इन पर दिमाग लड़ाती रहे। पिछले दिनों पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की एसवाईएल के पानी को लेकर चर्चा (Discussion about SYL water) हुई थी, इसके बाद पंजाब के मुख्यमंत्री की ओर से बिंदुवार ब्योरा देकर यह दावा किया गया था कि पंजाब के पास हरियाणा को देने को एक बूंद पानी नहीं है, वहीं हरियाणा के पास तमाम अन्य जल संसाधनों की वजह से पर्याप्त पानी है। जाहिर है, पंजाब से ऐसे जवाब की ही अपेक्षा थी। जब सर्वोच्च न्यायालय इस बात को स्वीकार कर चुका है कि एसवाईएल से हरियाणा को पानी मिलना चाहिए, उसके बाद पंजाब के राजनीतिकों की यह हठधर्मिता ही कही जाएगी कि वे पानी न देने के बहाने बना रहे हैं। ऐसे में हरियाणा से यह अपेक्षा करना कि वह एसवाईएल या फिर अलग राजधानी और विधानसभा के मामले में पंजाब को कोई एडवांटेज देगा, असंभव लगता है। हरियाणा के सत्ताधारी दलों और विपक्ष में बैठी पार्टियों को जनता को इसका जवाब देना होगा कि आखिर चंडीगढ़ पर दावे के संबंध में वे क्या कर रही हैं। बीते दिनों अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International airport) जिसके निर्माण में हरियाणा ने भी अपना योगदान दिया है, का नामकरण हरियाणा की चाह के अनुरूप होना यही दर्शाता है कि क्षेत्रीय मुद्दों को हरियाणा पूरी गंभीरता से ले रहा है और उनकी अनदेखी वह स्वीकार नहीं करेगा।
    पंजाब के राजनीतिक दलों की यह दलील विचित्र है, जब वे संघशासित प्रदेश चंडीगढ़ को पंजाब का अभिन्न अंग (Chandigarh an integral part of Punjab) बताते हैं। चंडीगढ़ के निवासी इसके संघ शासित बने रहने में ही फायदा समझते हैं, लेकिन पंजाब इसे अपना हिस्सा बताता आया है। शिअद का तो यहां तक कहना है कि हरियाणा सरकार, पंजाब की सहमति के बिना जमीन की अदला-बदली नहीं कर सकती। यह वैधानिक और तकनीकी विषय है, ऐसा संभव भी है या नहीं यह देखा जाना होगा। हालांकि चंडीगढ़ में अलग राजधानी बनाने की हरियाणा की कोशिशों को पंजाब में अराजकता फैलने की आड़ में काउंटर करने की पंजाब के राजनेताओं की कोशिश अनुचित प्रतीत होती है। बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर हरियाणा को विधानसभा के लिए बड़ी जगह आवश्यक हो गई है। पंजाब के नेताओं की यह दलील भ्रमित करने वाली है कि चंडीगढ़ में अलग विधानसभा बनाकर हरियाणा अपना पक्ष मजबूत कर लेगा। हालांकि यह समय की मांग है कि कैपिटल कॉम्प्लेक्स (Capitol Complex) में स्थित मौजूदा विधानसभा भवन को दोनों ही राज्य खाली करते हुए इसे चंडीगढ़ प्रशासन के हवाले कर दें। अगर दोनों ही राज्य अपनी अलग विधानसभा बना लें तो भी चंडीगढ़ की स्थिति यही रहेगी। चंडीगढ़ के लोग इसका मूल स्वरूप ही बनाए रखना चाहते हैं, न कि दो राज्यों में बंटवारा।  इसके साथ ही यह कहना भी उचित होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस तरह के चल रहे विवादों पर भी कोई ठोस निर्णय लेने की जरूरत (Need to make a firm decision) है, जैसे अयोध्या में राममंदिर-बाबरी मस्जिद, कश्मीर मुद्दे का हल किया गया है। सदियों से लटक रहे मामलों पर अब ठोस निर्णय लेने की जरूरत है। 

 

ये भी पढ़ें ......

ये भी पढ़ें .......

ये भी पढ़ें .......