Chief Minister Mann's request to farmers not to protest is appropriate
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Editorial: मुख्यमंत्री मान का किसानों से धरना न देने का आग्रह उचित

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Chief Minister Mann's request to farmers not to protest is appropriate

Chief Minister Mann's request to farmers not to protest is appropriate: पंंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का किसान संगठनों से यह आग्रह उचित है कि बैठक के द्वारा मसलों का समाधान हो, धरने-प्रदर्शनों से जनजीवन असामान्य होता है। निश्चित रूप से किसान संगठनों को यह बात शायद ही समझाई जा सकती है कि उनके आंदोलन से पंजाब का भला नहीं हो रहा, अपितु नुकसान ही हो रहा है। बीते दो-तीन साल से राज्य में धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी ही चल रही है, जिसकी वजह से न केवल उद्योग-धंधों पर असर पड़ रहा है, अपितु जनसामान्य भी बेहद परेशान हो चुका है।

जाहिर है, मुख्यमंत्री अगर किसान नेताओं को बैठक के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, तो समझा जाना चाहिए कि सरकार किसानों की मांगों को लेकर गंभीर है। लेकिन किसान संगठनों की हठधर्मिता है कि वे बैठक में मुख्यमंत्री को ही इसका अहसास करा रहे हैं कि उनकी एकता की वजह से सरकार ने डरते हुए उन्हें वार्ता के लिए बुलाया है। अगर ऐसा न होता तो सरकार इसकी जरूरत नहीं समझती। गौरतलब है कि संयुक्त किसान मोर्चा राजनीतिक ने चंडीगढ़ में 5 मार्च से साप्ताहिक धरने की घोषणा की है, लेकिन इसके लिए चंडीगढ़ प्रशासन ने स्वीकृति नहीं दी है, वहीं पंजाब सरकार भी इस हक में नहीं है कि किसान इस प्रकार से धरना दें, जिससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो।

मुख्यमंत्री मान इससे पहले भी अनेक बार किसान संगठनों से धरने-प्रदर्शन, चक्का जाम, रेलों को रोकने आदि का विरोध करते हुए किसान संगठनों से वार्ता के लिए दरवाजे खुले रहने की बात कह चुके हैं। यह सहज स्वीकार्य है कि किसी राज्य में निवेशक तभी आते हैं, जब वहां का माहौल उन्हें शांतिपूर्ण नजर आता है। जहां रास्ते खुले होते हैं और आंदोलन जैसे व्यवधान पैदा नहीं होते। गौरतलब है कि पंजाब पिछले लंबे समय से आंदोलनों और चक्का जाम, रेल-सडक़ रोकने जैसी अनुचित गतिविधियों का केंद्र बन गया है। तीन कृषि कानूनों को खत्म कराने के दौरान आंदोलन तो बेशक दिल्ली बॉर्डर पर चल रहा था, लेकिन उससे पंजाब समेत पूरा उत्तर भारत अव्यवस्थित हो चुका था। इसके बाद भी पंजाब में रेल रोकने जैसे घटनाक्रम होते रहे। पंजाब की स्थिति तो यह है कि जरा सी बात पर यहां हाईवे, सडक़ और रेल रोक दी जाती हैं।

इस दौरान इसका भी ख्याल नहीं रखा जाता कि जनसामान्य को इससे कितनी परेशानी होगी। हालांकि धारणा यह होती है कि आंदोलनकारियों का यह हक है कि वे अपनी बात को कहने और उसे मनवाने के लिए ऐसे उपक्रम करें, जिससे परेशानी खड़ी हो और उनकी आवाज प्रशासन और सरकार तक पहुंचे। जाहिर है, यह रवायत अनुचित है और इसकी वजह से हालात बिगड़ते जाते हैं।

बेशक, किसान संगठनों की मांगें जायज हो सकती हैं और इससे खुद मुख्यमंत्री भी इनकार नहीं कर रहे। इस बैठक में भी मुख्यमंत्री धान की रोपाई एक जून से करने और किसानों को दिए कर्ज की वन टाइम सेटलमेंट योजना पर सहमत थे, लेेकिन फिर बात तब बिगड़ी जब किसान संगठनों ने धरना देने की जिद की। यानी मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद किसान संगठन इससे संतुष्ट नहीं थे कि वार्ता को आगे बढ़ाया जाए। जाहिर है, यह पंजाब सरकार के लिए चुनौती है कि वह वार्ता के जरिये बात को आगे बढ़ाए। पंजाब में यह भी पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री ने इस बात पर स्टैंड लिया है कि किसान संगठन धरना-प्रदर्शन न करें अपितु बैठक से बात को आगे बढ़ाएं।

हालांकि एमएसपी की मांग को लेकर खनौरी बॉर्डर पर चल रहा किसानों का धरना भी पंजाब-हरियाणा के लोगों के लिए कितनी बड़ी समस्या बना हुआ है, इसका अंदाजा इस इलाके लोग ही समझ सकते हैं। खुद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने किसानों को रास्ता न रोकने को कहा था, वहीं सुप्रीम कोर्ट भी इसी की हिदायत दे चुका है। अब पंजाब के मुख्यमंत्री भी यह आग्रह कर रहे हैं। बावजूद इसके किसान संंगठनों का हठयोग जारी है। क्या वास्तव में यह पंजाब की आर्थिक सेहत के लिए सही है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के आग्रह पर किसान संगठनों ने कहा है कि वे इस बारे में बाद में सोचेंगे कि पंजाब में निवेशक आएंगे या नहीं। यह अपने आप में एकपक्षीय होकर सोचना है और इसे स्वार्थपूर्ण भी समझा जाना चाहिए। एक देश एवं राज्य में सिर्फ एक वर्ग ही कार्यरत नहीं है। सरकार को सभी पक्षों को साथ लेकर चलना पड़ता है। उसे सभी की जरूरतों को पूरा करना होता है। पंजाब के लिए यह उचित ही है कि यहां धरना-प्रदर्शनों को सीमित किया जाए और राज्य में निवेशक फ्रेंडली माहौल बने। इससे राज्य में उद्योग विकसित होंगे। बेशक, किसानों की मांगों पर भी विचार आवश्यक है, लेकिन हठधर्मिता नहीं होनी चाहिए।

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