Checkmate in ticket distribution

Editorial: टिकटों वितरण में ही शह और मात, क्या सब ठीक ठाक है

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Checkmate in ticket distribution

Checkmate in ticket distribution, is everything okay: हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस की अभी एक-एक ही उम्मीदवारों की सूची जारी हुई है, लेकिन उसे लेकर असंतोष सामने आ रहा है। भाजपा में तो लगभग हर तीसरा नेता असंतुष्ट नजर आ रहा है और उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। यह भी समझने की बात है कि राजनीति किसी एक के बूते नहीं चलती, इसमें हजारों, लाखों लोग शामिल होते हैं, तब ही एक उम्मीदवार निर्वाचित होता है और फिर उनके जैसे एक ही पार्टी से जब और ज्यादा चुने जाते हैं तो फिर सरकार बनती है। ऐसे में प्रत्येक पांच वर्ष बाद एक ही नेता को बार-बार टिकट देने का औचित्य क्या है। बेशक, यह सवाल पेचीदा है और विडम्बनापूर्ण भी। हरियाणा में भाजपा ने एक दर्जन के करीब अपने मौजूद विधायकों को टिकट नहीं दी है, इनमें अनेक बड़े नाम भी शामिल हैं। प्रश्न यह है कि आखिर इन नेताओं को टिकट की उम्मीद क्यों जगाई गई थी, जिसके लिए वे पिछले पांच साल से मेहनत कर रहे थे। सोनीपत का मामला ऐसा ही है, यहां पूर्व मंत्री और उनके राजनीतिक पति पार्टी के लिए लगातार मेहनत कर रहे थे, लेकिन चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही विरोधी पार्टी से एक युवा नेता को भाजपा ने अपने पाले में शामिल कर लिया और अब उन्हें टिकट भी दे दी।

इसी तरह से सिरसा में रानियां हलके का मामला है। यहां से पूर्व मंत्री रणजीत सिंह को पहले भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपना सदस्य बनाया, फिर उन्हें टिकट दिया लेकिन वे जीत न सके। अब विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें टिकट ही नहीं दिया जबकि वे यहां से निर्दलीय जीत चुके हंै। प्रदेशभर में तमाम जगह ऐसे ही मामले सामने आ रहे हंै। बहादुरगढ़ में तो एक भाई की टिकट काटकर दूसरे भाई को दे दी गई। आखिर इन अवसरों पर किस भीम बली की आंखों से आंसू नहीं बह निकलेंगे। राजनीति कुर्बानी लेना और देना सिखाती है। लेकिन इसका फैसला कैसे होता है कि कोई कुर्बानी के लिए उचित है। कहीं ऐसा तो नहीं होता कि बेकसूर अपनी कुर्बानी दे देता है। वास्तव में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ ऐसा हो चुका है। पार्टी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी दस सीटें जीती थी, लेकिन इस बार वह सिर्फ पांच सीटें ही जीत पाई और वे भी बहुत चुनौतीपूर्ण हालात में। कहा जाता है कि इसकी वजह पार्टी का टिकटों के आंवटन में सही फैसला न लेना और भितरघात रही। यानी एक तो पार्टी ने संबंधित सीट पर उम्मीदवार का चयन उचित तरीके से नहीं किया और इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में हुए असंतोष ने भितरघात का काम किया। यह भी कहा गया कि अगर पार्टी अपने सहयोगी दल जजपा के साथ गठबंधन बनाए रखती और उसे विश्वास में लेकर टिकट वितरण करती तो संभव है, पांच की बजाय जीती हुई सीटों का आंकड़ा और ज्यादा होता। खैर, यह सब अब अतीत हो गया है और अब विधानसभा चुनाव का समय है।

ऐसी रपट हैं कि भाजपा के राज्य नेतृत्व की ओर से सर्वे कराया गया और फिर केंद्रीय नेतृत्व ने भी सर्वे कराया। वहीं पार्टी के पितृ संगठन आरएसएस ने भी उम्मीदवारों के संबंध में सर्वे किया है, जिसके आधार पर टिकटों को वितरित किया गया है। लेकिन इसके बावजूद पार्टी में भयंकर असंतोष नजर आ रहा है और यह असंतोष चिंताजनक है। गौरतलब है कि एक पूर्व मंत्री ने तो मुख्यमंत्री से नाराजगी जाहिर करते हुए उनसे हाथ मिलाने तक से इनकार कर दिया। बेशक, यह रोष जाहिर करने का तरीका है, लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस पार्टी को सर्वाधिक अनुशासित कहा जाता है, उसमें टिकटों के आवंटन के दौरान यह हालात बन रहे हैं। इसी प्रकार कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में 32 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें 28 मौजूदा विधायकों को फिर से टिकट दिया गया है। इन टिकटों पर भी असंतोष सामने आने लगा है, कांग्रेस में इस बार एक-एक हलके में एक अनार-सौ बीमार वाली स्थिति रही है, तब क्या वे असंतुष्ट इसका सब्र करेंगे कि उनके नाम की अनदेखी करके फिर से मौजूदा विधायक को ही टिकट दे दी गई।

भाजपा-कांग्रेस की ओर से अभी और सूची जारी की जाएंगी। भाजपा में तो एक तरफ टिकट बदलने की चर्चाएं हैं, वहीं यह बयान भी सामने आ रहा है कि बदलाव नहीं होगा। हालांकि जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं, उन्हें देखते हुए क्या पार्टी के लिए इतने बड़े असंतोष को दबा पाना संभव होगा? हालांकि राजनीति संभावनाओं का खेल है। यह शतरंज की बाजी की तरह है, जो न जाने किस तरफ पड़ जाए। अगर पार्टी अपने मौजूदा विधायकों या फिर अन्य नेताओं के संबंध में ऐसी रपट पा रही है कि उनके खिलाफ सत्ता विरोधी भावनाएं हैं तो टिकट कट भी सकती है। बेशक, यह मामला एक पार्टी का अंदरूनी है, क्योंकि उसे जीत हासिल करनी है, चाहे फिर दूसरे दलों से नेताओं को गोद क्यों न लेना पड़े। मौजूदा राजनीति इसी तरह की हो गई है। अब मेहनत का मोल ज्यादा नहीं रह गया है और रातों-रात किसी की मेहनत पर पानी फेरा जा सकता है। 

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