Editorial: सामाजिक न्याय के अग्रदूत थे चौ. ओमप्रकाश चौटाला
- By Habib --
- Saturday, 21 Dec, 2024
Chaudhary Om Prakash Chautala was a pioneer of social justice
Chaudhary Om Prakash Chautala was a pioneer of social justice: हरियाणा की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत चौ. ओमप्रकाश चौटाला का नाम अविस्मरणीय रहेगा। प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला अपने जीवन के अंतिम समय तक राजनीतिक जिजीविषा के अनुपम उदाहरण बने रहे। इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में वे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते नजर आए और फिर विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने इनेलो सुप्रीमो होने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। आखिर 80 साल की उम्र में भी एक राजनेता की संचेतना इतनी है कि वह सभी को उनके नाम और पद से जानते हों तो फिर उस पार्टी के कार्यकर्ताओं का हौसला क्यों नहीं प्रबल होगा।
ओमप्रकाश चौटाला अपनी आखिरी सांस तक इनेलो और इसके राजनीतिक उत्थान के लिए संकल्पबद्ध रहे और यह प्रत्येक राजनीतिक के लिए एक सबक है। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, सजा हुई जिसे उन्होंने सहजता से स्वीकार किया लेकिन वे प्रदेश की जनता के हित में लगातार काम करते रहने का संकल्प दोहराते रहे। इनेलो का एक समय प्रदेश की सत्ता में लोहा था, लेकिन समय के साथ पार्टी का तिरोहण होता गया और फिर ऐसी भी स्थिति आई, जब पार्टी का एकमात्र विधायक निर्वाचित हुआ।
बड़ी उम्र में एक बुजुर्ग अपने परिवार के बारे में अधिक चिंतित रहता है और ओम प्रकाश चौटाला के लिए यह सबसे बड़ा दर्द था कि उनका परिवार अलग हो गया था। उन्होंने जिंदा रखने के लिए अपने परिवार को एकजुट रखने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। इस दौरान जननायक जनता पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का जन्म हुआ और यहीं से उन्होंने परिवार से नाता तोड़ लिया। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले परिवार के एकजुट होने की बात शुरू हुई, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला ने कभी इसके लिए अपनी ओर से प्रयास नहीं किया क्योंकि वह यह मानते थे कि जो व्यक्ति आज सत्ता के लिए परिवार को ठोकर मार सकता है, वह कल ये दोबारा नहीं करेगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है। वे ऐसे नेता रहे जिन पर चुनाव में हार और जीत का कभी कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक कि जेल में जाने पर भी जहां अक्सर दूसरे नेता टूट जाते हैं, वे कभी मायूस नहीं हुए और उन्हें मंच पर कभी दुखी नहीं देखा गया।
वे हमेशा हरे रंग की पगड़ी और सफेद कमीज-धोती में सजे हुए नजर आते थे। तिहाड़ जेल से रिहाई के बाद जब वे गाड़ी से लौट रहे थे तो उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। वे संघर्ष और आगे बढ़ते रहने की चाह रखने वाले अनोखे राजनेता थे। वे चुनाव प्रचार के दौरान अक्सर कहते थे कि अगर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना अपराध है तो वह यह अपराध बार-बार करते रहेंगे। चौटाला की पहचान ऐसे नेता की रही, जिनके समक्ष कार्यकर्ताओं ने या फिर आम जनता ने जो फरमाइश की, उसे उन्होंने हर हाल में पूरा किया।
चौ. देवीलाल ने अपनी राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश चौटाला को ही सौंपी। 1968 में उन्होंने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, लेकिन पहले ही विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वे वहीं नहीं ठहरे। एक साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर वे विधायक बनने में सफल रहे। 2 दिसंबर 1989 को वे हरियाणा के सातवें मुख्यमंत्री बने, लेकिन पांच महीने बाद ही महम उपचुनाव में धांधली के आरोप लगने पर उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा। 12 जुलाई 1990 को वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन महम उपचुनाव में बूथ कैप्चरिंग के आरोपों के चलते पांच दिन बाद फिर से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि 22 मार्च 1991 को वह तीसरी बार राज्य के सीएम बने। इस बार भी सरकार सिर्फ 14 दिन चली। विधानसभा में वह बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए और उनकी सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
1999 में वे चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। इस बार उन्होंने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में उन्हें स्पष्ट बहुमत मिला और वे पांचवीं बार सीएम बने। 2005 के चुनाव में उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी। जूनियर बेसिक टीचर्स घोटाले में 2013 में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को दस साल की सजा हुई। जाहिर है, ओमप्रकाश चौटाला मुकद्दर के भी सिकंदर थे। जीवनभर उनके साथ विवाद जुड़े रहे और वे उनके साथ जैसे हंसी ठिठोली करते रहे। वे राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चे का गठन करके भाजपा को टक्कर देने की योजना पर भी काम करते रहे। उनके प्रशंसक प्रत्येक राजनीतिक दल में हैं, वे निष्पक्ष सोच के सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत रहे। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में गांव और देहात की सूरत बदली और उन्होंने प्रदेश के विकास को निरंतर आगे बढ़ाया।
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