Change in weather is worrying

Editorial:मौसम में बदलाव चिंतित कर रहा, सुधार को उठें कदम

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Change in weather is worrying

Change in weather is worrying क्या इसे मौसम का जादू कहेंगे कि मई के माह में जब लू के थपेड़े चेहरे को लाल करने लगते हैं, तब बर्फीली हवाएं सहला रही हैं और दिन-रात में न पंखें चलाने की जरूरत पड़ रही है और न ही एसी। मई के महीने में फरवरी के दिनों जैसी यह ठंडक रहस्यमयी है और यही वजह है कि मौसम विज्ञानी भी अचंभित हैं। वैसे, हैरानी की बात आजकल रह नहीं गई है, क्योंकि न सर्दियां, सर्दियों जैसी रह गई हैं और न ही गर्मियां, गर्मियों जैसी। दस साल पहले के मौसम की तुलना में आजकल का मौसम पूरी तरह से परिवर्तित हो चुका है।

देश और दुनिया के वैज्ञानिक जिस खतरे की आशंका जताते थकते नहीं हैं, वह आजकल हमारे बिल्कुल करीब आ चुका है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उनकी आयु कम होती जा रही है, समुद्रों का पानी बढ़ रहा है, मालदीव जैसे छोटे देशों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा होता जा रहा है। जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं और हरियाली को घर की बालकनी में रखे पौधे तक सिमटा मान लिया गया है। यह सब बेहद चिंतित करने वाली बात है, लेकिन दुनिया है कि अपनी रफ्तार में दौड़े जा रही है। वैसे भी लोगों को घर, गाड़ी की ईएमआई भरने, नई प्रॉपर्टी बनाने जैसी चिंताएं रात-दिन सता रही हैं, वे पौधे लगाकर पर्यावरण बचाने की परवाह क्यों करने लगे। आखिर यह काम तो सार्वजनिक हो जाता है न?

बारिश का होना प्रकृति का वरदान है। बीते माह जब खेतों में गेहूं की फसल पक चुकी थी, तब एकाएक बारिश ने ऐसा कहर ढाया कि खेतों में ही फसल बिछ गई। जैसे-तैसे वह सूखी तो मंडियों में उसकी बिक्री को लेकर समस्याएं खड़ी हो गई। राजनीतिक दल सरकार पर इसका आरोप लगाते नहीं थक रहे कि किसानों को उनकी फसल क्षति का मुआवजा नहीं दिया और अब मंडियों से उपज की खरीद नहीं हो रही। यह सब ऐसा कुचक्र है, जिसमें आम आदमी से लेकर सत्ता और विपक्ष में बैठे सभी लोग फंसे हुए हैं। इसका समाधान भी नजर नहीं आता, सिवाय इसके कि सभी पर्यावरण में हो रहे भारी फेरबदल के प्रति संजीदा हों।

हालांकि घूम-फिर कर बात वही आ जाती है कि खेत में फसल उगाने की जिम्मेदारी किसान की है, उसे काटने और बेचने का काम भी उसी का है। सरकार को पैसे देने हैं, उपज की बिक्री के या फिर मुआवजे के। बेशक हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में खेती को लेकर सरकारें संजीदा हो रही हैं। हरियाणा में जमीनी पानी को बचाने के लिए गठबंधन सरकार ने मुहिम छेड़ी हुई है। गांव-देहात में पानी के संरक्षण के लिए ही तालाबों, बावडिय़ों को संवारा जा रहा है। हालांकि यह सारे प्रयास बहुत कम नजर आते हैं, स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि अब मरीज का घर में इलाज संभव नहीं है, अपितु उसे आईसीयू में रखे जाने की नौबत आ गई है।

मौसम विज्ञानियों की यह हैरानी सभी को समझने की आवश्यकता है कि मई के पहले सप्ताह में अमूमन तापमान 39 से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुंच जाता है, लेकिन इस बार यह 24 से 30 डिग्री के बीच ही चल रहा है। बताया जा रहा है कि वर्ष 1987 के बाद पहली बार मई के पहले सप्ताह में बारिश हो रही है। इसकी वजह से दिन का तापमान सामान्य से 10 से 12 डिग्री तक कम है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार मौसम में यह परिवर्तन पश्चिमी विक्षोभ की वजह से है। मई, जून के महीने ऐसे होते हैं, जब यह माना जाता है कि जितनी गर्मी पड़ेगी, उतनी ही अच्छी बारिश होगी। पहाड़ों पर भी इन दिनों जमकर बर्फ गिर रही है, क्या यह सामान्य बात है। हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में लगातार हिमपात हो रहा है, यानी इस बार सैलानियों को जून के महीने में बर्फ का संकट देखने को नहीं मिलेगा।

इस बीच उत्तराखंड में मौसम चारधाम यात्रा में अड़चन बन रहा है। रुद्रप्रयाग में मौसम अनुकूल नहीं होने की वजह से केदारनाथ यात्रा को स्थगित करना पड़ा। ऐसी रिपोर्ट है कि फिलहाल विभिन्न पड़ावों पर 14 हजार से अधिक यात्री तीर्थयात्री रूके हुए हैं। यहां हेली सेवा भी संचालित नहीं हो पा रही वहीं धाम में यात्रियों के ठहरने के लिए लगाए गए कई टेंट भी टूट गए हैं। इसके बाद कश्मीर का रूख करें तो यहां भी बारिश और बर्फबारी का दौर जारी है। हालांकि घाटी के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात और प्रदेश के सभी क्षेत्रों में वर्षा की संभावना बताई गई है।

वास्तव में मौसम का यह उतार-चढ़ाव निश्चित रूप से परेशानी का सबब ही बनने वाला है। इस बात से कोई दो राय नहीं रखेगा कि प्रकृति में असंतुलन किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं है। केंद्र एवं राज्य सरकारें बजट में पर्यावरण के लिए फंड आरक्षित कर रही हैं, लेकिन जिस पैमाने पर क्षति हो रही है, उस पैमाने पर उसकी भरपाई के प्रयास नहीं हो रहे। मौसम में असामान्य परिवर्तन सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। यह समय महज विचार का नहीं, अपितु कदम उठाने का है।

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