करीब 30 साल गुजरने के बाद भी नगर निगम के अफसरों को नहीं मालूम: बैंक व कोर्ट के पास पड़े नगर निगम के 32 करोड़
- By Vinod --
- Saturday, 15 Mar, 2025

Even after nearly 30 years, the municipal corporation officials are not aware
Even after nearly 30 years, the municipal corporation officials are not aware- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगर निगम को मालूम ही नहीं कि उसे चंडीगढ़ प्रशासन से अपनी 30 करोड़ रुपये की राशि वसूलनी है। निगम के यह पैसे फिलहाल पंजाब नेशनल बैंक और कोर्ट के बैंक खाते में पड़े हैं। चंडीगढ़ प्रशासन ने मलोया सहित कुछ गांव नगर निगम को सौंपे थे। इन्हें विकसित करने की जिम्मेदारी नगर निगम को सौंपी गई थी। जो जमीन यहां प्रशासन ने बेची उसकी ऐवज में प्रशासन के लैंड एक्वीजीशन अफसर ने जो राशि हासिल की उसे निगम को दिया जाना था लेकिन यह आज तक निगम नहीं वसूल पाया। लैंड एक्वीजीशन अफसर ने निगम को 30 करोड़ रुपये नहीं दिये लेकिन कोर्ट के बैंक खाते व पंजाब नेशनल बैंक में यह रकम जमा करा दी। इस रकम पर करोड़ों रुपये का ब्याज भी लग गया। नगर निगम अगर इस राशि को बैंक से निकलवाए तो उसकी बरसों से चली आ रही आर्थिक तंगी दूर हो सकती है।
बीते 30 सालों में एमसी के कितने अफसर आए लेकिन किसी को नहीं मालूम कि निगम की इतनी बड़ी रकम कोर्ट के बैंक में पड़ी है। नगर निगम को बीते कुछ समय से मुलाजिमों की सैलरी देने के भी लाले पड़े हुए हैं। पैंशन फंड से मोटी रकम निकालकर फरवरी की सैलरी मुलाजिमों को दी गई है। अगले महीने सैलरी कैसे दी जाएगी, इसको लेकर संशय की स्थिति है। नगर निगम को प्रशासन व उसके हैड रहे प्रशासक लगातार नसीहत देते रहे हैं कि अपने स्तर पर इनकम जुटा कर नगर निगम को अपना खर्चा चलाना चाहिए। निगम ने नसीहत पर चलना शुरू भी किया लेकिन कोई ऐसा स्थाई उपाय या जरिया अभी तक नहीं बन पा रहा है जिससे निगम को अपने आर्थिक संकट से निकलने का मौका मिले। निगम टकटकी लगाये प्रशासन की ओर ही देख रहा है। चंडीगढ़ प्रशासन के महकमों में एक सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि अफसर यहां कुछ समय के लिये आते हैं। अपना तीन साल का टेन्योर यहां काटकर मूल कैडर पंजाब में चलते बनते हैं। किसी भी अफसर ने अब तक नगर निगम की इस आर्थिक तंगी का स्थाई समाधान ढूंढऩे की कोशिश नहीं की। लगातार नगर निगम इस आर्थिक तंगी की गर्त में गिरता चला गया। नगर निगम ने प्रापर्टी टैक्स के साथ साथ कई बड़े विभागों से अन्य टैक्स वसूलने हैं। इन्हें वसूलने में निगम नाकाम साबित हो रहा है। नगर निगम के पैसे पर यह विभाग ऐश कर रहे हैं। कई नोटिस निगम की ओर से इन महकमों को डाले गये हैं लेकिन न तो इन नोटिसों का ही कोई उचित जवाब निगम को इन विभागों की ओर से मिला और न ही इन्होंने बकाया राशि में से एक भी पैसा निगम को दिया। नगर निगम के पास इन महकमों के खिलाफ कार्रवाई करने की जो पावर है उसे भी राजनीति इस्तेमाल नहीं करने दे रही। नगर निगम में ही बड़े स्तर पर राजनीतिक दलों के पार्षद रोड़ा अटकाते हैं। नगर निगम के अफसर इतने लापरवाह हैं कि उन्हें पता ही नहीं कि कहां से क्या लेन देन है। बताया जा रहा है कि नगर निगम की जो जमीन 30 साल पहले प्रशासन ने एक्वायर की थी उसकी कीमत 31 करोड़, 79 लाख, 24 हजार 443 रुपये थी। वर्ष 2023 में नगर निगम को पता चला कि उसकी जमीन के बदले यह करीब 32 करोड़ रुपये प्रशासन ने नहीं दिये। यानि यह तो प्रिंसिपल अमाउंट था। इस राशि को प्रशासन ने कोर्ट के बैंक खाते में जमा करा दिया। तब से यह पैसा वहीं पड़ा है जिस पर कई करोड़ का तो ब्याज ही लग गया है। नगर निगम से जब इसको लेकर आरटीआई के जरिये पूछा गया तो कुछ भी जानकारी देने से मना कर दिया गया। चूक किस स्तर पर हुई कि किसी अफसर को पता ही नहीं चला कि 30 साल से इतनी बड़ी रकम प्रशासन के पास फंसी पड़ी थी जिसे कोर्ट के बैंक में जमा कराया जा चुका है और इस पर करोड़ों का ब्याज लग चुका है। बताया जा रहा है कि यह इतनी बड़ी रकम है जो नगर निगम को आर्थिक संकट से निकाल सकती है। आरटीआई में एक्टीविस्ट आरके गर्ग ने जानकारी हासिल की कि नगर निगम की मलोया में जमीन प्रशासन ने एक्वायर की थी जिसकी ऐवज में उसे 32 करोड़ रुपये की रकम दी जानी थी। यह इतना पैसा है कि नगर निगम को जो अपने ऐसेट गिरवी रखकर या एफडी तुड़वाकर मुलाजिमों को सैलरी देनी पड़ रही है, वह मिलने पर न करना पड़े। आरके गर्ग के अनुसार एमसी को चाहिये कि वह अपने सारे रिकार्ड चैक करे और प्रशासन से ब्याज सहित अपने पैसे वसूले।
ये है मामला
वर्ष 1996 और 2018 के बीच चंडीगढ़ प्रशासन ने कई गांव नगर निगम चंडीगढ़ को ट्रांसफर कर दिये थे। इसके बाद इन गांवों को विकसित करने की जिम्मेदारी नगर निगम, चंडीगढ़ की थी। नगर निगम ने यहां प्रापर्टी टैक्स लगाकर, बिल्डिंग प्लान अप्रूव कर और एक्वायर की गई जमीन की ऐवज में लैंड एक्वीजीशन अफसर, कोर्ट और बैंक से कंपेनसेशन वसूले। ऑडिट ने नगर निगम के रिकार्ड चैक करने पर पाया कि जब से नगर निगम के पास यह गांव गये हैं तब से ग्राम पंचायतों से कंपेसेशन वसूलने में नाकाम रहा है। यानि बीते 28 साल से जो जमीन ग्राम पंचायतों में एक्वायर की गई है, उसकी ऐवज में कंपेसेशन का क्लेम ही नहीं किया है। नगर निगम के रिकार्ड से यह भी सामने आया कि जमीन का पजेशन निगम ने कब लिया और इसकी डीमार्केशन भी सुनिश्चित नहीं हो सकी। 1996 से 2024 तक न केवल नगर निगम अपना कंपेनसेशन वसूलने बल्कि एक्वायर की गई जमीन का पैसा लेने में भी पूरी तरह नाकाम रहा। वर्ष 2023 में एलएओ और एमसी के बीच इसको लेकर कम्यूनिकेशन शुरू हुई। इससे पता चला कि नगर निगम ने केवल मलोया की जमीन के ही 31 करोड़ 79 लाख, 24 हजार 443 हजार रुपये प्रशासन से लेने हैं। इसमें ब्याज शामिल नहीं है। दूसरे गांवों में शामिल जमीन का अभी कोई हिसाब किताब नहीं लगाया गया है। लैंड एक्वीजीशन अफसर ने इस राशि में से 7 करोड़ 5 हजार रुपये 2004 में पंजाब नेशनल बैंक में जमा करा दिये। बीते 20 साल में इस पर करोड़ों का ब्याज लग गया और यह राशि अब 20 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की बन गई। बाकि का अमाउंट लैंड एक्वीजीशन अफसर ने कोर्ट में जमा करा दिया क्योंकि ऐसा पैसा कुछ समय बाद अगर कोई दावा न करे तो कोर्ट में जमा कराना जरूरी होता है। फिलहाल कोर्ट में 31 करोड़ रुपये से ज्यादा की नगर निगम की राशि कोर्ट व बैंक के पास पड़ी है लेकिन निगम ने बीते 28 साल में इसे हासिल करने की कोई कोशिश नहीं करी। ऑडिट ने नगर निगम से प्रशासन पर की गई इस मेहरबानी का जवाब मांगा है लेकिन कोई जवाब निगम की ओर से नहीं आया है।