भगवान श्रीकृष्ण के वास्तविक जीवन का परिचायक बनेगी पुस्तक कर्मयोगी कृष्ण-आर्यवेश

The book Karmayogi Krishna-Aryavesh

The book Karmayogi Krishna-Aryavesh

चंडीगढ़, 8 सिंतबर- The book Karmayogi Krishna-Aryavesh: आर्य समाज के अंतरराष्ट्रीय संगठन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष स्वामी आर्यवेश ने आज चंडीगढ़ सेक्टर 32 डी आर्य समाज में 'कर्मयोगी कृष्ण' पुस्तक का विमोचन किया। इस पुस्तक के लेखक हरियाणा सरकार में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी कृष्ण कुमार आर्य है।

          स्वामी आर्यवेश ने लेखक को बधाई देते हुए कहा कि योगेश्वर कृष्ण एक आप्त पुरुष थे, जिन्होंने जीवन पर्यन्त कभी कोई अधर्म का कार्य नही किया। उनका जीवन सदैव समाज को मार्गदर्शन और प्रेरणा देता रहेगा। उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि लेखक द्वारा लिखी गई यह पुस्तक श्रीकृष्ण के वास्तविक जीवन का परिचायक बनेगी।

        पुस्तक के लेखक कृष्ण कुमार ‘आर्य’ ने बताया कि श्रीकृष्ण का जीवन कर्मयोग पर आधारित रहा, जिन्होंने गीता में कहा है कि 

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किश्चन।
नान वाप्तम वाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥*

श्रीकृष्ण कहते हैं कि तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नही है अर्थात् करने योग्य नही है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न ही आवश्यकता है, फिर भी निष्फल भाव से कर्म करता हूँ। इसी सूत्र के आधार पर पुस्तक की रचना की गई है। पुस्तक में श्रीकृष्ण की जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए विषय-वस्तु को 244 पृष्ठों पर ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है। इसमें लगभग 130 मंत्र, श्लोक एवं सूक्तियां तथा पुस्तक को समझने में सहायक आठ आलेख दिए हैं। 

         उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण मंत्रद्रष्टा थे, जो वेद मंत्रों के गहन भावों को जिया करते थे। वह सृष्टिद्रष्टा थे जो कर्मों और कर्मफल को विरक्त भाव से देखते थे परंतु लिप्त नही होते थे । पुस्तक में श्रीकृष्ण का उनके यौगिक बल, वैज्ञानिक उपलब्धियां, उनका तत्त्वज्ञान, जनार्दन एवं ब्रह्मवेत्ता के तौर पर परिचय करवाया गया हैं। इसके साथ ही अकल्पनीय श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक ऐसे तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है, जिनको पढक़र विशेषकर नई पीढ़ी में विशेष आभा का संचार होगा। 

      आर्य ने कहा कि पुस्तक पढ़ने से तीन विशेष कार्यों की सिद्धि होगी। इससे जहां भगवान श्रीकृष्ण के उज्ज्वल चरित्र को समझा जा सकेगा वहीँ यह युवाओं के लिए प्रेरणाप्रद होगा। इससे समाज मे एक सकारात्मक विचार का प्रसार भी होगा। पुस्तक में महाभारत, गर्ग संहिता, वैदिक साहित्य, उपनिषद्, श्रीमद्भगवत गीता तथा जैन साहित्य सहित लगभग दो दर्जन पुस्तकों के संदर्भ सम्मिलित किए गए हैं।

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