Chandigarh becomes waiting place for officers, policy decisions halted
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चंडीगढ़ बना अफसरों का इंतजारगढ़, नीतिगत फैसले रुके

Chandigarh becomes waiting place for officers, policy decisions halted

Chandigarh becomes waiting place for officers, policy decisions halted

Chandigarh becomes waiting place for officers, policy decisions halted- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I चंडीगढ़ को बीते कई महीनों से अफसर ही नहीं मिल पा रहे हैं। प्रशासन अधिकारियों को खाली ओहदों पर बैठाने को तैयार है लेकिन केंद्र और राज्य (पंजाब एवं हरियाणा) हैं कि अफसर समय पर भेजते ही नहीं। यही वजह है कि शहरवासियों ने अब इसे चंडीगढ़ की जगह इंतजारगढ़ नाम दे दिया। यानि अफसरों के इंतजार में बैठा शहर। अफसर आएंगे, तो काम आगे बढ़ेंगे, अन्यथा इंतजार करो।

अफसर न होने की वजह से सारे नीतिगत फैसले फिलहाल लटके पड़े हैं। बहुत से महकमे ऐसे हैं जहां उनकी रिकवरी नहीं हो पा रही। कुछ महकमे ऐसे हैं जहां ऑक्शन के जरिये कमाई होती है, वो काम भी रुके पड़े हैं। प्रशासन के राजस्व को इससे जबरदस्त चूना लग रहा है। ऐसे महकमे जो सदा प्रशासन के पास पैसा न होने का रोना रोते रहते हैं, वहां भी अफसर न होने की वजह से रिकवरी नहीं हो पा रही है। खुद प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित बेबस लग रहे हैं तो दूसरी ओर उनके एडवाइजर केवल इंतजार करने के कुछ कर नहीं सकते।

 अफसरशाही की देरी से नियुक्ति का सिलसिला बीते कुछ देर से काफी बिगड़ गया है। कोई न कोई महकमा ऐसा रहता ही है जहां अफसरों की नियुक्ति नहीं है। ऐसी सूरत में उनकी जगह जो मौजूदा अफसर हैं, उन्हें चार्ज सौंपने पड़ रहे हैं। विभिन्न महकमों का ज्यादा प्रभार होने की वजह से न तो वह उस ओहदे से न्याय कर पा रहे हैं, न लोगों की दिक्कतों को दूर कर पा रहे हैं। जनता परेशान होकर इधर-उधर घूम रही है।

पहले करीब तीन माह तक लोकसभा चुनावों के चलते कोड ऑफ कंडक्ट लागू रहा और लोग चुनाव होने का इंतजार करते रहे। चुनाव खत्म होते ही कई बड़े अफसर तबदील हो गये जिससे नीतिगत फैसलों पर असर पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ओहदों पर तैनात कामचलाऊ अफसर रोजमर्रा के फैसलों पर तो सहमति दे देते हैं लेकिन जो नीतिगत या विवादित मसले हैं, उन्हें लेकर टरकाऊ रवैया अपनाये रखते हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि ये चार्ज महज कुछ दिनों के लिये है और किसी विवाद में क्यों पडऩा। अपने ओरिजनल विभागों के कामकाज को भी वह सही तरीके से नहीं देख पाते।

कई अफसर हो चुके रवाना, समय पर नहीं नियुक्ति

अक्टूबर 2023 में तत्कालीन एडवाइजर धर्मपाल सेवानिवृत हुए। उनकी जगह राजीव वर्मा को लाया गया लेकिन केंद्र ने नियुक्ति देने में इतनी देर कर दी कि चंडीगढ़ इंतजार ही करता रह गया। महत्वपूर्ण ओहदों पर वैसे कभी इतनी देरी होती नहीं थी लेकिन अब लगता है कि परंपरा बदल गई। जो पोस्ट खाली होने वाली होती थी उसकी जगह पर पहले ही तलाश शुरू कर दी जाती थी और सेवानिवृत होने से पहले ही घोषणा कर दी जाती थी।

-पूर्व होम सेक्रेट्री नितिन यादव की पोस्ट खाली पड़ी है। वह केंद्र में ज्वाइंट सेक्रेट्री की पोस्ट पर चले गये। एडवाइजर के पास इसका प्रभार है लेकिन छोटी पोस्ट का काम बड़ा अफसर देख रहा है, यह भी हैरत में डालने वाली बात है।

-वित्त सचिव की पोस्ट पर रहे विजय नामदेव जाडे हाल ही में अपने मूल काडर पंजाब चले गये। उनकी जगह अभी तक कोई नियुक्ति नहीं हो पाई है। प्रशासन इंतजार कर रहा है।

-नगर निगम के चीफ इंजीनियर एनपी शर्मा की जगह भी अफसर ढूंढा जा रहा है। अब नियुक्ति पंजाब से अफसर मांग कर होगी। स्मार्ट सिटी का काम भी वह ही देखते थे।

कोई पैसा लेकर भाग गया, कहीं रिकवरी नहीं हो पाई

-चंडीगढ़ नगर निगम का एक पार्किंग ठेकेदार 7 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि लेकर दौड़ लिया था। आज तक इस ठेकेदार से न तो निगम की ओर से रिकवरी हो पाई और न ही इस ठेकेदार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई हुई। होम सेक्रेट्री लोकल बॉडी के भी सचिव होते हैं। होम सेक्रेट्री ही नहीं है तो इस विवादित मुद्दे पर अंतिम फैसला लेने वाला भी कोई नहीं है। एडवाइजर राजीव वर्मा को प्रशासन में आए ज्यादा समय नहीं गुजरा है लिहाजा अभी उन्हें ऐसे विवादित मुद्दे भी नहीं मालूम। राजीव वर्मा होम सेक्रेट्री का चार्ज देख रहे हैं। सबसे बड़ी दिक्कत है लोगों की परेशानी। पार्किंग का अभी तक टैंडर ही नहीं हो पाया जिससे नगर निगम को जबरदस्त नुकसान हो रहा है। निगम में भी इस वक्त कई अफसर नहीं है हालांकि अनिंदिता मित्रा कमिश्नर के पद पर विराजमान हैं। उच्चाधिकारियों के न होने से मसले लटके रहते हैं।

-नगर निगम के ही अंडर जो टैक्सी स्टैंड हैं उनसे आज तक निगम प्रशासन लगभग 1.12 करोड़ की वसूली नहीं कर पाया। नगर निगम अधिकारी लगातार प्रशासन के उच्चाधिकारियों व प्रशासक के समक्ष पैसा न होने का रोना रोते हैं लेकिन जो अपने पैसे बकाया हैं, उन्हें वसूलने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाते। लंबे समय तक मसले लटके रहते हैं। कहा जा रहा है कि अफसरों का टोटा इसकी एक वजह है।

-नगर निगम की कई प्रापर्टियां ऐसी हैं जो किराये पर नहीं चढ़ पा रही हैं। इन खाली पड़ी प्रॉपर्टियों को लेकर भी निगम कोई फैसला नहीं ले पा रहा है। न ही कोई प्लानिंग इसको लेकर की जा रही है। सेक्टर 17 बस स्टैंड के पास अंडरपास की दुकानों का मसला हो या सेक्टर 21 की फिश मार्केट का या सेक्टर 17 में  ही बने अंडरपास के नीचे बनी दुकानों का। जहां से नगर निगम ने रिकवरी करनी है वह नहीं हो पा रही है।

-चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड भी अपनी प्रापर्टियों को आगे बेच नहीं पा रहा। न ही किराये पर चढ़ा पा रहा है। इससे बोर्ड और प्रशासन को राजस्व का नुकसान हो रहा है। पुनर्वास कालोनियों के वासियों से ही किराये के तौर पर चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड ने अभी 67 करोड़ रुपये वसूलने हैं। बार बार नोटिस देने के बावजूद यह वसूली नहीं हो पा रही है। राजनीतिक दखल भी इस वसूली के आड़े आता रहता है। सीएचबी के सीईओ अजय चगती के आने से पहले ही यह राशि करोड़ों रुपये बकाया हो चुकी थी। लोकसभा इलेक्शन ने इस वसूली प्रक्रिया में अड़ंगा लगा दिया।

-चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस ने कैमरों के जरिये 17 लाख चालान किये। इनमें से करीब 78 प्रतिशत यानि 13 लाख ने महीनों बीत जाने के बावजूद चालान ही नहीं भरे। ये चालान ट्रैफिक तोडऩे वालों से कैसे वसूलने हैं, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई करनी है, अफसर आज तक तय नहीं कर पा रहे। कहा जा रहा है कि जिस बड़े अफसर ने ये फैसला लेना है, उसकी पोस्ट फिलहाल खाली पड़ी है।

-एक्साइज-टैक्सेशन विभाग इतना महत्वपूर्ण विभाग होता है और इसे सरकार का कमाऊ पूत कहा जाता है लेकिन इस विभाग में भी लगातार अफसरों की अदला बदली हो रही है। कोई स्थाई नियुक्ति नहीं हो पा रही जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है। वित्तिय वर्ष 2024-25 के  दौरान भी एक्साइज के सभी ठेकों की नीलामी नहीं हो पाई। बीते वित्तिय वर्ष में भी एक्साइज विभाग को ठेकों की नीलामी न होने की वजह से जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। इस विभाग में नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है जिस पर स्थाई अफसर की नियुक्ति न होने से अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा।

-रजिस्ट्रिंग एंड लाइसेंसिंग अथॉरटी यानि आरएलए ने भी बड़ी राशि वसूलनी है। इसको लेकर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है। पहले ट्रांसपोर्ट सचिव की पोस्ट पर एक अफसर हुआ करते थे, बाद में अफसर न मिलने से यह ओहदा टेंपरेरी अरेंजमेंट के तहत आ गया।

-इसी तरह स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरटी के पद पर भी नियुक्ति स्थाई नहीं रहती। रूपेश कुमार के पास फिलहाल विभाग की जिम्मेदारी है। एसटीए ने भी कई मदों मेंं मोटे पैसे की वसूली अभी करनी है।

-एडमिनिस्ट्रेटिव कौंसिल की मीटिंग अगस्त 2023 में हुई थी। 11 माह से यह मीटिंग ही नहीं हुई है। इसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस होती है। प्रशासक की ओर से बनाई अलग अलग कमेटियां रिपोर्ट देती हैं या मुद्दे सामने आते हैं लेकिन अफसर नहीं तो ये मीटिंग भी नहीं।