Centre new proposals appropriate for farmers

Editorial: किसानों को केंद्र के नए प्रस्ताव उचित, आंदोलन अब हो खत्म

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Centre new proposals appropriate for farmers

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज माफी सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच चौथे दौर की बातचीत में अगर केंद्र सरकार ने विभिन्न मांगों पर सकारात्मक संकेत दिए हैं, तो इसके बाद आंदोलनकारी किसानों को इस पर आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि उनकी ओर से पुन: दिल्ली की तरफ कूच करने की बात कही जा रही है। इस पूरे प्रकरण से किस प्रकार कारोबारियों, जनसामान्य को मुश्किल पेश आ रही हैं, उसका अंदाजा आखिर आंदोलनकारी क्यों नहीं लगा रहे। इंटरनेट न चलने से हर कोई परेशान है, वहीं उद्योग-धंधों ने बीते कुछ दिनों में ही हजारों करोड़ रुपये का घाटा उठा लिया है। मालवाहक ट्रकों को सीधा रास्ता नहीं मिल रहा और वे घूम कर न जाने कहां से कहां होकर गंतव्य तक पहुंच रहे हैं। इसी प्रकार यात्री बस सेवाएं और सामान्य परिवन पूरी तरह से ठप हो चुका है। क्या इसकी जरूरत नहीं है कि किसान आंदोलनकारी अपनी जिद पर नरम हों और हालात को सामान्य बनाने में सहयोग करें।

पंजाब-हरियाणा का यह क्षेत्र देश के सर्वाधिक कीमती समय को जीता है। यानी राजधानी दिल्ली और दो से तीन राज्यों की राजधानियों एवं यूटी चंडीगढ़ की वजह से तमाम सेवाओं, सुविधाओं का केंद्र होने की वजह से यहां से ही सुगम जीवन की तमाम संभावनाएं आकार लेती हैं, लेकिन आंदोलन की वजह से आजकल यहां समस्याओं का अंबार लग चुका है।

गौरतलब है कि चौथे दौर की बातचीत में केंद्र सरकार ने फसलों के विविधीकरण को लेकर तीन फसलों कपास, दलहन और मक्का पर पांच साल के लिए एमएसपी की गारंटी देने का प्रस्ताव रखा है। बेशक, इस समय देश की सबसे बड़ी जरूरत गेहूं और धान के अलावा अन्य फसलों की खेती भी है। ये तीनों फसलें अगर बहुतायत में उगाई जाएंगी तो इससे न केवल किसान अपितु देश की अर्थव्यवस्था को और बल मिलेगा। केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव अपने आप में अनूठा है और इन्वेस्टमेंट के लिहाज से मुच्युअल फंड की तरह है। सरकार का कहना है कि नैफेड और अन्य सरकारी संस्थाएं इन फसलों को खरीदेंगी। इसके अलावा केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों से लिए कृषि ऋण को माफ करने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन निजी बैंकों का ऋण किसानों को खुद अदा करना होगा।

इसके अलावा सरकार ने ए2प्लस एफएल फार्मूले पर भी जोर दिया है। इसके तहत बीज, खाद, सिंचाई एवं अन्य वस्तुओं की कीमतों और मजदूरी के आधार पर ही फसल की लागत तय होगी। वास्तव में इन तीनों ही प्रस्तावों में कोई बुराई नहीं है और तीनों किसान के हित में हैं। हालांकि अब यह किसानों के ऊपर है कि वे इन तीनों प्रस्तावों को किस प्रकार लेते हैं। विशेषज्ञ लगातार यह बात कह रहे हैं कि गेहूं, धान पर एमएसपी की गारंटी व्यावहारिक नहीं है।

एमएसपी का अभिप्राय किसान की लागत की भरपाई करना है, इसका मतलब उसे समर्थन देना है, लेकिन एमएसपी की गारंटी से ही उसका संपूर्ण भला हो जाएगा, ऐसा नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि एमएसपी तभी फायदेमंद है, जह यह बाजार भाव से ज्यादा हो। मौजूदा परिस्थितियों में जब भारत में बाजार का उदारीकरण जारी है और इसकी भी संभावनाएं हैं, कि निजी क्षेत्र में ज्यादा कीमत मिल सकती है, तब एमएसपी के जरिये खुद के आसपास सुरक्षा घेरा बनाकर किसान कितना फायदा अर्जित कर लेंगे। क्या दूसरे सेक्टरों को देश में काम करने और अपना कारोबार करने की स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए।

वास्तव में केंद्र सरकार की ओर से तीनों प्रस्ताव समयानुकूल हैं, यह भी उचित है कि किसान संगठनों ने सोमवार और मंगलवार को इस पर विचार का भरोसा दिया है, लेकिन यह जरूरी है कि बगैर किसी राजनीतिक सोच के इन प्रस्तावों पर विचार हो। पंजाब एवं हरियाणा में सर्वाधिक खेती गेहूं और धान की ही हो रही है, लेकिन फसल विविधीकरण को अपना कर किसान नई फसलों और उन पर एमएसपी की गारंटी के जरिए अपनी कमाई को बढ़ा सकते हैं। इसी प्रकार ए2प्लस एफएल फार्मूला भी उनके हित में ही है, क्योंकि इस फार्मूले के तहत उनकी लागत का उचित मूल्य प्राप्त हो सकता है। दरअसल, यह बेहद जरूरी है कि किसान आंदोलन के रूप में जारी इस समस्या का समाधान हो। यह समय चुनाव का है। अगर यह मामला फंस गया तो फिर से साल या उससे भी लंबे समय तक गतिरोध कायम रह सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था और जनजीवन बर्बाद होगा। इन मुश्किलों और बर्बादी को रोकना होगा। 

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