Bringing the 26/11 accused from America is a big success
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Editorial: 26/11 के आरोपी को अमेरिका से लाया जाना बड़ी कामयाबी

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Bringing the 26/11 accused from America is a big success

Bringing the 26/11 accused from America is a big success: आखिर भारत 26 नवंबर 2008 की तारीख को कैसे भूल सकता है, जब आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में कोहराम मचाते हुए 166 लोगों की जान ले ली थी। यह सब किसी सिरफिरे आतंकी की सोच का प्रतिफल नहीं था, अपितु एक दीर्घकालीन सोची-समझी साजिश के तहत इसे अंजाम दिया गया था। अब इसी साजिश के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर अगर भारत लाने में कामयाबी मिल गई है तो यह देश के उस दर्द को कुछ कम कर रहा है, जोकि बीते वर्षों में दोषियों के न पकड़े जाने की वजह से कायम था।

इस मामले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की करतूत एक बार फिर स्पष्ट हो चुकी है और अब मुख्य आरोपी राणा के पकड़े जाने से इसकी उम्मीद बंध रही है कि इस आरोपी को कठोरतम सजा मिलेगी। ऐसा दुर्लभ है कि अमेरिका किसी ऐसे बड़े आरोपी को दूसरे देश को सौंपे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मांग के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसका वादा किया था और उसे अब उन्होंने पूरा कर दिखाया है। मालूम हो, इस हमले का एक और साजिशकर्ता डेविड हेडली है। अमेरिकी अदालत ने उसे साल 2013 में 35 साल की सजा सुनाई थी। इस दौरान उसने शर्त रखी थी कि वह लश्कर व आईएसआई के बारे में अमेरिका को सूचना देगा, लेकिन बदले में उसे भारत को न सौंपा जाए। ऐसे में हेडली का प्रत्यर्पण हाल-फिलहाल संभव नहीं हो रहा।

वास्तव में 26/11 मुंबई हमले के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा को भारत लाया जाना एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन काम यही खत्म नहीं हो जाता। राणा वह शख्स है, जिसके सीने में आईएसआई और आतंकियों से संबंधित तमाम राज दफन हैं। निश्चित रूप से मुंबई हमले की साजिश रचने में उसकी और बाकी सभी आरोपियों की भूमिका को उजागर करना जरूरी है। 26/11 भारतीय इतिहास का वह काला दिन है, जब आतंकवाद का चरम देश ने देखा था। उस दिन को भूला पाना किसी भी भारतीय के लिए संभव नहीं है। देश उन आत्माओं को सदैव याद करता है जोकि उस हमले में असमय मौत का ग्रास बन गई थी और उन शहीदों को नमन करता है, जोकि इस हमले में लोगों को बचाते हुए या दुश्मनों का मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे। 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने सागर के रास्ते देश की आर्थिक राजधानी पर धावा बोला था।

इन सभी आतंकियों में से एकमात्र कसाब जिंदा पकड़ा गया था, जिस पर मुकदमा चला और आखिरकार उसे 2012 में फांसी की सजा दे दी गई। आज जब पाकिस्तान का सच पूरी दुनिया के सामने आ चुका है, तब भी उसकी ओर से भारत के खिलाफ जहर उगलना और आतंक के बीज बोना बंद नहीं हुआ है। मुंबई हमला हर भारतीय की अस्मिता और सुरक्षा पर हमला था, लेकिन इस हमले ने यह साबित किया कि भारत आजादी के बाद से जिस आरोप को लगाता आ रहा है, पाकिस्तान उसका वास्तव में दोषी है। ऐसा नहीं है कि यह अंतिम हमला था, इसके बाद से जम्मू-कश्मीर, पंजाब और दूसरे राज्यों में आतंकी वारदातें सामने आती रही हैं, लेकिन मुंबई हमले की पराकाष्ठा अभी भी कायम है। इस हमले के बाद भारत-पाक के बीच बातचीत का दौर बंद हो गया था।

पाकिस्तान दुनिया में आतंक का सबसे बड़ा पोषक बन चुका है और इस करतूत में चीन उसकी मदद कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और अमेरिका ने मिलकर जैश ए मोहम्मद के आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव रखा था, उसे चीन ने वीटो कर दिया था। अब्दुल रऊफ अजहर वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण कर उसे कंधार ले जाने, वर्ष 2001 में संसद पर हमला और वर्ष 2016 में पठानकोट के वायु सेना बेस पर हमला करने का अब्दुल रऊफ आरोपी है। दरअसल, आतंक के इन पनाहगारों के खिलाफ भारत की जंग इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है। पाकिस्तान का अस्तित्व ही इस पर टिका है कि वह भारत के साथ दुश्मनी को बरकरार रखे और अपने खूनी मंसूबों को आतंकियों को भारतीय सीमा में भेजकर पोषित करता रहे। अब यह भी सामने आ रहा है कि भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम जोकि पाकिस्तान में छिपा है, मुंबई से करोड़ों रुपये जुटाकर अलकायदा, लश्कर और जैश जैसे आतंकी समूहों को भेज रहा है।

जाहिर है, उसे भी भारत लाकर सजा देने की जरूरत है। संभव है, एक दिन यह भी हो। दरअसल, वैश्विक स्तर पर आतंक के खिलाफ एकजुटता की जरूरत है। अमेरिका भी वैश्विक आतंकवाद से पीड़ित है, उसे भारत की रक्षा जरूरतों को समझना चाहिए। दुनिया के उन सभी देशों के बीच आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति जरूरी है, जोकि चाहते हैं कि आतंकवाद का समूल नाश होना चाहिए। तहव्वुर राणा को भारत को सौंपकर अमेरिका ने इस मामले में सचेत राष्ट्र का परिचय दिया है, लेकिन क्या दूसरे देश भी इसमें आगे आएंगे। 

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