उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधानसभा चुनावों में सवा तीन सौ से अधिक सीटें पायेगी भाजपा: क्यों?
उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधानसभा चुनावों में सवा तीन सौ से अधिक सीटें पायेगी भाजपा: क्यों?
लखनऊ । वरिष्ठ पत्रकार एवं पाइनियर हिन्दी समाचार पत्र पूर्व संपादक स्नेह मधुर के साथ उत्तर प्रदेश में चल रहे वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों के परिणामों के संबंध में दैनिक अर्थप्रकाश समाचार पत्र के लखनुऊ ब्यूरो चीफ विजय कुमार निगम ने एक चर्चा की। इस चर्चा में श्री मधुर ने कहा कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधानसभा चुनावों में भाजपा लगभग सवा तीन सौ सीटों पर विजय हासिल करने जा है।
इस श्री निगम उनसे पूछा कि किस आधार पर आप उक्त प्रकार के परिणामों की घोषणा कर रहे हैं। मैं उनके विचारों को उन्हीं के शब्दों बिन्दुवार प्रस्तुत कर रहा हूं।
इस पर श्री स्नेह मधुर का कहना है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान में स्वर्णिम काल चल रहा है। यह स्वर्णिम काल तब है जब मात्र पचास प्रतिशत के लगभग मतदाता ही भाजपा के शासनकाल से बिल्कुल ही नाराज़ नहीं है औरशेष पचास प्रतिशत मतदाताओं को अन्य दलों से जुड़ा मान लिया जाए। लेकिन दूसरी तरफ भाजपा के शत प्रतिशत कार्यकर्ता और विधायक/मंत्री मुंह फुलाए बैठे हुए हैं क्योंकि उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है, वे मनमर्जी से काम नहीं कर पा रहे हैं, अपने लोगों की मदद नहीं कर पा रहे हैं और अपनी सरकार का आनंद उस तरह से नहीं उठा पा रहे हैं जिस तरह से पहले की सरकारों में लोग उठाया करते थे और जिस विशेष मकसद से ही वे राजनीति में आए हैं और इसी सत्ता लोभ के लिए वे पार्टियां तक बदलते रहे हैं। जब विधायक और मंत्री कोई लाभ देने की स्थिति में ही नहीं है तो उसके लिए जान देने से क्या फायदा? लेकिन यही योगी सरकार का प्लस प्वाइंट भी है, सबके साथ समान व्यवहार, न कोई अपना, न कोई पराया। लोग मुंह बिचकाकर जरूर घूम रहे हैं लेकिन यह विश्वास है कि किसी का काम नहीं हो रहा है: सही रूप में तो यही असली समाजवाद है। पहले की सरकारों में सत्ता के इर्दगिर्द के कुछ खास लोगों के ही काम होते थे जो दुकानें खोलकर बैठ जाते थे। इस सरकार से शिकायत भी यही है कि कहीं कोई दुकान नहीं खुली है।
यह सही हैं कि इस मौजूदा सरकार में कोई भी शक्तिशाली राजनीतिज्ञ किसी की भी वास्तविक मदद नहीं कर पाया क्योंकि नौकरशाही उनकी सुनती ही नहीं रही है। इस सरकार में नौकरशाही का भी स्वर्णिम काल रहा है, वे राजनीतिक दबाव से पूर्ण रूप से मुक्त रहे, जो पहले कभी संभव ही नहीं रहा है। जो नौकरशाह पहले नेताओं के जूतों के नीचे दबे सहमे से पड़े रहते थे, वे आज "भयमुक्त" माहौल में अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, सही या गलत, जो भी हो। भ्रष्टाचार में भी वे खूब लिप्त रहे। संभवतः भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण बनाने के लिए नई पौध की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी या फिर कुछ और रास्ते निकालने होगें जिनके बारे में मोदी जी ज्यादा बेहतर ढंग से सोच सकते हैं।
योगी जी प्रशासनिक अनुभव में उतना खरे नहीं हैं लेकिन माफिया मुक्त माहौल बनाने में उन्होंने खुद को नंबर एक साबित करने में सफलता हासिल कर ही ली है। एक अवसर उन्हें और मिलने पर उत्तर प्रदेश पूर्ण रूप से माफिया मुक्त हो जायेगा लेकिन दूसरा अवसर न मिलने पर यह प्रदेश पहले से भी बदतर नरक में समाहित हो जायेगा।
अब सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश में बेरोजगारी है, महंगाई है और विपक्ष इन मुद्दों में बढ़ते अपराध को भी जोड़कर उन्हें जमकर प्रचारित कर रहा है तो भाजपा 2022 में सत्ता पर पुनः काबिज़ कैसे हो सकती है? मेरा मानना है कि ये मुख्य मुद्दे नहीं हैं जो जनता को प्रभावित करते हैं और जो योगी सरकार को गिराने में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। ये मुद्दे उनके हैं जिन्होंने वर्ष 2012, 2017और 2019 में भी भाजपा के खिलाफ़ वोट दिया था। क्या इन लोगों में भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले भी कुछ लोग शामिल हो गए हैं जिससे भाजपा का वोट प्रतिशत गिर सकता है तो मैं विपक्ष को सम्मान देते हुए हैं यह स्वीकार कर सकता हूं कि भाजपा के ही कुछ लोग विपक्ष के पाले में चले गए हैं। तो अब भाजपा के पास बचता ही क्या है?
नंबर 1: वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी परिदृश्य में नहीं थे। लोगों ने मोदी के नाम पर वोट दिया था और वे आज भी मोदी के साथ हैं।
नंबर 2: योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी कार्यशैली ने उन्हें एक दबंग स्टार बना दिया है जिन्होंने अनगिनत लोगों के दिल में अपनी अमिट जगह बना ली है। ये संख्या उस संख्या से कहीं अधिक है जो मोदी को "फेंकू" और "वायदाफरोश" कहकर अपने को उनसे अलग दिखाते हैं क्योंकि वह विदेश से काला धन वापस नहीं ला पाए।
नम्बर 3: राहुल गांधी मोदी सरकार को सूटबूट की सरकार बताकर उसे साबित करने में सफल नहीं हो पाए। यह नहीं भूलना चाहिए मोदी और योगी दोनों अपने परिवारों को किसी भी तरह का लाभ नहीं दिलाते हैं। हालांकि यह बात लोगों को पसंद नहीं है, लोग यह अपेक्षा रखते हैं कि उनके रिश्तेदार अगर महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे तो पूरे खानदान, गांव मोहल्ले और परिचितों को भला करें, तभी उन्हें स्मृतियों में संजोया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद लोग मोदी और योगी के विरोध में नहीं हैं, उन्हें बेईमान नहीं मानते। इस प्रदेश में ईमानदार मुख्यमंत्री के रूप में शायद योगी पहले मुख्यमंत्री माने जायेंगे।
नंबर 4: योगी ने बुलडोजर के माध्यम से जो अपनी छवि बनाई है और जिसका उल्लेख अखिलेश यादव बार बार अपनी सभाओं में करते हैं, इसका लाभ योगी को ही मिल रहा है। बुलडोजर का जिक्र उन्हें क्रूर शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक माफिया विरोधी दबंग शासक बनाता है जो अपने स्वार्थ के लिए किसी से भी समझौता करने को तैयार नहीं है। योगी की इस छवि से महिलाएं काफी सुरक्षित महसूस करती है। विपक्ष भले ही बढ़ते अपराध के कितने ही आंकड़े गिना डाले, हाथरस की घटना का जिक्र कर लोगों को डराने की कोशिश करे, लेकिन योगी के प्रति महिलाओं के विश्वास को डिगा नहीं पाया है। मुझे आश्चर्य होता है कि हाथरस की घटना का जिक्र होने पर भाजपा के प्रवक्ता इलाहाबाद की राजू पाल की हत्या की लोमहर्षक घटना का जिक्र करना भूल जाते हैं जब बसपा विधायक राजू पाल को मुलायम सिंह की सरकार में दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया जाता है और अस्पताल में जिंदा भर्ती कराने पर वहां भी हत्यारे पहुंच जाते हैं और अस्पताल में राजू पाल की हत्या कर दी जाती है। राजू पाल के शव को आधी रात में ही पुलिस जला डालती है, उनके परिजनों को अंतिम संस्कार में शामिल होने से रोक दिया जाता है। उसकी सीबीआई जांच चल रही है। कैसे भाजपा ने इस घटना को भुला दिया?
नंबर 5: जिस समय 2017 में भाजपा को लोगों ने निर्णायक वोट दिए थे, तब अयोध्या के मंदिर का निर्माण अधर में था। अब बन रहा है, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बन चुका है और विंध्याचल का भी जीर्णोद्धार हो चुका है। हर कोई जानता है कि अब मथुरा की बारी है। अगर कहा जाए कि इन धार्मिक गतिविधियों से भाजपा समर्थकों की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है तो यह नासमझी होगी। कम से कम मंदिर के नाम की राजनीति करने की भाजपा पर आरोप लगाने वालों के मन का संशय तो खत्म हुआ ही होगा।
नम्बर 6: मुस्लिम मामलों को लेकर जिस तरह से खुली डिबेट टीवी चैनल्स पर महीनों चली है और मुस्लिम स्कॉलर्स ने अपनी बात रखी है, उसने लोगों के दिलो दिमाग को खोल दिया है। लोग यह समझने लगे हैं कि अन्य दलों द्वारा मुस्लिमों को कुछ देने की जगह उनके वोट बैंक वोट का इस्तेमाल कर उन्हें हाशिए पर डाल दिया जाता रहा है। डिबेट्स के माध्यम से यह पता चला कि मौलवी ही अपनी बिरादरी के दुश्मन बने बैठे हैं और लोगों को इस्लाम के नाम पर गुमराह कर रहे हैं। इससे तमाम भारतीय मुसलमानों में भी जागृति आई है और सभी को लगने लगा है कि भारतीय जनता पार्टी पर साम्प्रदायिक होने के गलत आरोप लगते हैं, असली सांप्रदायिक तो ये अल्पसंख्यकों के नेता ही हैं जिनके दुराचरण की वजह से उनके धर्म पर छींटे पड़ते हैं। न हिंदू सांप्रदायिक हैं और न ही इस्लाम गलत है, ये धर्म के ठेकेदार ही अपने सम्रदाय के दुश्मन हैं।
नम्बर 7: इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी और योगी की वजह से हिंदुत्व की भावना में वृद्धि हुई है। पहले माथे पर तिलक लगाकर सार्वजनिक रूप से जाना आमलोगों को व्यवहारिक नहीं लगता था, भय सा लगता था, प्रगतिशील या कथित सेकुलर हिन्दू ही उनका मज़ाक उड़ाते थे। सिर पर जाली टोपी लगाने पर सुरक्षित होने का अहसास होता था। लेकिन अब स्थितियों में बदलाव आ चुका है। अब मुसलमान जालीदार टोपी पहनने से बचने लगे हैं।
पहले योगी की छवि एक घनघोर हिंदूवादी और मुस्लिम विरोधी के रूप में थी और हिंदू भी उन्हें पसंद नहीं करते थे। जब मुख्यमंत्री के रूप में उनके नाम को घोषणा हुई थी तो हिंदुओं को भी सांप सूंघ गया था। मेरी खुद की भी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि ये क्या हो गया? लेकिन साल भर बाद ही उनकी निष्पक्ष कार्यशैली की वजह से उनके प्रति लोगों का नज़रिया बदलने लगा। पहले अखबार में छपी खबरों से ही उनकी छवि बनती बिगड़ती थी लेकिन जब उन्होंने साक्षात्कार देने शुरू किए और उनसे विवादित और कड़े सवाल पूछे जाने लगे तो उनके भीतर की परतें खुलकर जन मानस तक पहुंचने लगीं और वह एक निर्दोष तथा सम्पूर्ण जन समुदाय और मानवता के लिए काम करने वाले संत के रूप में उनका सम्मान बढ़ता ही गया। जो विचारधारा की वजह से उनके विरोधी हैं, वे तो विरोधी ही रहेंगे लेकिन ऐसे धुरविरोधियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की जगह कमी हो रही है।
नंबर 8: यह सही है कि कोरोना काल ने सभी को रुला दिया लेकिन तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो योगी ने विशेष रुचि दिखाकर उस संकट और लोगों की पीड़ा को कम करने की भरसक कोशिश की। गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों को पूरे विश्व ने दिखाकर योगी राज को बदनाम करने की कोशिश की जो मीडिया की मजबूरी थी। मैंने खुद तमाम पत्रकारों को बताया था कि यह झूठा प्रचार है, कोरोना से इसका कोई संबंध नहीं है, मैं दशकों से ऐसा देख रहा हूं। लेकिन मीडिया की भी अपनी प्रतिबद्धताएं होती हैं। आज उसका कोई प्रभाव नहीं दिखता है।
नंबर 9: भाजपा ने एक नया लाभार्थी वर्ग बनाया है। रसोईगैस, शौचालय के साथ घर में पहुंचने वाला अनाज और खाते में आने वाली हजार हजार रुपए की रकम, बिना जाति और धर्म देखे हुए। पहले मतदान के पूर्व शराब और साड़ियां बंटती थीं, नगद भी। उससे आगे बढ़कर हर महीने मिलने वाले गल्ले और नगद ने लाभार्थियों के मन में योगी और मोदी के लिए श्रद्धा का भाव पैदा कर दिया है। ऐसे लाभार्थी लोग हर पार्टी से जुड़े हैं। अगर ये लाभार्थी पूर्ण रूप से भाजपा को समर्थन दे देते हैं तो इस बार पहले से ज्यादा भाजपा के विधायक चुनकर आ जायेगें।
नंबर 10: वोट प्रतिशत बढ़ना यह संकेत देता है कि लोग बदलाव चाहते हैं। वोट प्रतिशत कम का अभिप्राय स्थिरता। यह पता नहीं कि किस दल के समर्थक लोग कम निकले हैं। अगर यह मान लिया जाए कि भाजपा समर्थक कम निकले तो आप कह सकते हैं कि जीत का अंतर कम हो जाएगा। कुछ सीटें गंवा सकते हैं।
नंबर 11: योगी सरकार के विरोध में जोरदार ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे लोगों को कौन लोग और क्यों वोट देगें? अखिलेश कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े और हारे। मायावती के पैर छूकर लड़े और हारे। इस बार ये दोनों बड़े दल उनके पास नहीं हैं। फिर भाजपा का वोट बैंक उनके पास किस उम्मीद से जायेगा? क्या कोई सहानुभूति की लहर है? क्या उनका कुनबा वास्तव में उनके साथ है? क्या उनकी पिछली सरकार की कोई खास उपलब्धियां हैं जिन्हें जनता ने भुला दिया है? नहीं।
अगर उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर की बात की जाय तो वह बिल्कुल नहीं है। फिर भी दिल रखने के लिए मान भी लिया जाए तो जितने वोट सत्ता विरोधी लहर में जायेगें, उससे ज्यादा तो भाजपा में आ चुके हैं!
नम्बर 12: मायावती को पहले लोग दस सीट के अंदर मान रहे थे। मायावती ने अपनी रणनीति के तहत अपनी लंबाई बढ़ाई है, 25 से ऊपर सीट पा सकती हैं जिसका नुकसान सपा को भुगतना पड़ेगा।
सड़क पर चलने वाले लोगों से मिलें तो जनता की सही नब्ज़ पता चलती है। मेरे विचारों को सुनकर एक प्रवक्ता ने माना कि इस योगी मोदी राज में आय तो कम हुई है लेकिन फिर भी लोग चैन महसूस करते हैं लेकिन जनता का मानना है कि जब आय ही नहीं होगी तो चैन लेकर क्या करेंगे? लेकिन दिहाड़ी का काम करने वालों का कहना है कि जो काली कमाई की आस लगाए बैठे हैं, वे ही मोदी योगी के खिलाफ हैं, हम लोग तो पेट काटकर हमेशा से जीवित रहे हैं। मोदी योगी हमारी परेशानी दूर करने के बारे में सोच तो रहे हैं, और पार्टियों ने कभी सोचा है।
इस तरह से कहा जा सकता है भाजपा ने समाज में हर स्तर पर अपनी आमद दर्ज कराई है और उसे पिछले चुनाव से भी अधिक यानी सवा तीन सौ से भी अधिक सीटें मिलनी चाहिए। अगर भाजपा को ढाई सौ सीटें मिलती हैं, जो निराशाजनक ही होगा, तो भाजपा को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा कि कमी कहां रह गई? क्या योगी के नोएडा बार बार जाने से, कहा जाता है कि जो नोएडा जाता है, वह दुबारा सत्ता में नहीं आता, अब तक तो यही होता रहा है। या फिर हर पांच साल पर बदलाव आवश्यक है इस प्रदेश में, इसलिए पांच साल के विश्राम के लिए पार्टियों को तैयार रहना चाहिए! ढाई सौ सीट मिलना, भाजपा की पराजय के ही सदृश्य है। उसे सवा तीन सौ से अधिक सीटें मिलनी ही चाहिए। लखनऊ में मैं सत्ता के करीबी लगभग सौ लोगों से मिला, तो सभी का कहना है कि सपा सरकार बना रहीं हैं। निचले वर्ग के पचास लोगों से मिला और सभी का मानना है, " घर घर मोदी, घर घर योगी।" करीब पचास पत्रकारों से भी मैंने बातचीत की जिनमें से अधिकतर का मानना है कि भाजपा सरकार जा रही है। इनमें से भाजपा से जुड़े भी पत्रकार शामिल हैं। मुझे याद है कि डीमोनिटाइजेशन के बाद भाजपा से जुड़े हर नेता का कहना था कि डीमोनेटाइजेशन करके मोदी ने बहुत बड़ा नुकसान किया है। तब मैंने कम कमाई वाले लोगों से बात करके दावा किया था कि भाजपा सरकार बनाएगी, तब लोगों ने मेरी खिल्ली उड़ाई थी। आजकल कुछ लोग ऐसा भी कह रहे हैं कि भाजपा के जीतने पर योगी को सीएम नहीं बनाया जायेगा। मेरा दावा है कि योगी ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री होगें।
उक्त तथ्यों को जनता के समक्ष इस लिए रख रहा हूं कि जो भाजपा के समर्थक हैं उनमें तो एक खुशी की लहर दौड़ जाएगी किन्तु विपक्ष के लोगों को अनुशासित बनना होगा और साथ ही में जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि अब उनका दंगाइयों व राष्ट्रद्रोहियों से कोई नाता नहीं रहेगा तभी वो भाजपा को हराने सक्षम