Editorial: भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह का कांग्रेस में शामिल होना बड़ा उलटफेर
- By Habib --
- Monday, 11 Mar, 2024
BJP MP Brijendra Singh joins Congress
हरियाणा में हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह का त्यागपत्र देकर कांग्रेस में शामिल होना अप्रत्याशित नहीं लेकिन अचंभित जरूर करता है। उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं, लेकिन जब वे पाला बदलकर भाजपा में आए तो उनका परिवार भी भाजपाई बन गया। वे खुद केंद्र में मंत्री रहे, पत्नी को विधायक बनवाया और बेटा सांसद। हालांकि राजनीति में महत्वाकांक्षाएं कहां किसी मुकाम पर ठहरती हैं, वे आगे से आगे बढ़ती रहती हैं। अब बृजेंद्र सिंह अगर कह रहे हैं कि वे हिसार तक सीमित नहीं रहना चाहते तो उचित ही है, लेकिन क्या यह भविष्य ही बताएगा कि उनका फैसला कितना उचित रहा है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय और हरियाणा स्तर पर यह बहुत बड़ी सफलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस से गया हरियाणा की राजनीति का एक कद्दावर परिवार फिर पार्टी में लौट रहा है। यह भी सुनिश्चित हो गया है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह भी अब कांग्रेस में ही लौटेंगे और ऐसा किसी बड़ी रैली के जरिये होगा। गौरतलब है कि बीरेंद्र सिंह जब तब अपने दिल की पीड़ा जाहिर करते रहते हैं, उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के प्रति भी नाखुशी जाहिर करते हुए पार्टी में अपने लिए उचित स्थान न होने जैसी शिकायत की थी। हालांकि यह भी सभी समझते हैं कि कांग्रेस से आने के बाद भाजपा ने उन्हें किस प्रकार सिर माथे पर बैठाया और प्रदेश की राजनीति का शक्तिशाली परिवार बनाया।
सांसद बृजेंद्र सिंह ने आईएएस की नौकरी छोडक़र साल 2019 में राजनीति में प्रवेश किया था। हालिया एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बृजेंद्र सिंह ने अपनी सांसद निधि का सारा पैसा खर्च किया है, वहीं संसद में सवाल पूछने का उनका रिकार्ड भी सही है। लेकिन क्या यह माना जाए कि केंद्र में मंत्री न बनाए जाने की कसक उनके दिल में रही है। माना यह जाता है कि अगर आईएएस जैसी बड़ी नौकरी छोड़ कर कोई राजनीति में आता है तो उसे मंत्री पद भी मिलना चाहिए। हालांकि मंत्री बनने की एकमात्र शर्त यही नहीं होती। अनेक राजनीतिक सूत्र लगाने के बाद मंत्री पद सौंपा जाता है। तब बृजेंद्र सिंह इसका जवाब क्या देंगे कि आखिर किस वजह से उनका भाजपा से मोहभंग हो गया। निश्चित रूप से परिवार इस बात से चिंतित है कि वह भाजपा में अकेला पड़ रहा है। ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि गठबंधन की राजनीति में उन्हें हासिल सीट फिर से उन्हें न मिले।
वहीं अपने परिवार के अन्य लोगों के लिए भी टिकट की मांग कर रहे बीरेंद्र सिंह को यह भी हासिल नहीं हो। हरियाणा की राजनीति में बीरेंद्र सिंह की अपनी पहचान है, लेकिन राजनीति में समीकरणों के आधार पर किसी का कद तय होता है। उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद इसलिए छोड़ दिया था, ताकि पुत्र को राजनीति में स्थापित कर सकें। उनके पुत्र सफलतापूर्वक राजनीति में आए लेकिन क्या भाजपा में वे पूरी तरह घुल मिलकर रह सके और अपने आप को आगे बढ़ा सके। जो पूरा दृश्य बन रहा है, वह कुछ ऐसा है कि जैसे उन्हें इसका रंज है कि पार्टी में उनकी सर्वोच्चता को बरकरार क्यों नहीं रखा गया।
हरियाणा में कांग्रेस अनेक धड़ों में बंटी है, अब बृजेंद्र सिंह के बाद उनके पिता बीरेंद्र सिंह भी कांग्रेस में आते हैं तो यह एक और धड़ा बनना होगा। बीरेंद्र सिंह अपना लाव लश्कर लेकर चलते हैं, यह संभव जान नहीं पड़ता कि वे पहले से किसी धड़े को अंगीकार उसमें अपनी सियासत करेंगे। हालांकि प्रश्न यह भी है कि क्या बीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र को कांग्रेस में वह स्थान हासिल हो सकेगा, जिसकी आकांक्षा में वे कांग्रेस में आए हैं या आना चाहते हैं। कांग्रेस में पहले की एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। लेकिन इतना तय है कि उनके आने से प्रदेश कांग्रेस को मजबूती प्राप्त होगी। प्रदेश की जनता इस बात को बखूबी समझती है कि बीरेंद्र सिंह किसान हितैषी नेता हैं, लेकिन बगैर सत्ता क्या वे अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहना सकते हैं।
इस समय प्रदेश कांग्रेस में युवराज संस्कृति है और एक और युवराज पार्टी में आ रहे हैं। इससे पार्टी के अंदर रस्साकशी बढ़ने से कौन इनकार कर सकता है, क्योंकि पहले से जो अपना स्थान निर्धारित करके चल रहे हैं, वे बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे के लिए कितना स्थान देंगे, यह देखने वाली बात होगी। गौरतलब है कि उचाना कलां को लेकर जजपा से विरोध के बीच बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र सिंह भाजपा से अलग हो रहे हैं, राजनीति में प्रत्येक को अपने लक्ष्य निर्धारित करके चलने होते हैं। यह पार्टी नेतृत्व का काम है कि वह दिशा का निर्धारण करे। कौन उस दिशा में आगे बढ़ेगा और कौन नहीं यह सब समय का फेर होता है। आगामी दिनों में प्रदेश की राजनीति में और बड़े उलटफेर देखने को मिल सकते हैं।
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