गुजरात चुनाव जीतने के लिए भाजपा को कांग्रेस नहीं, आप को हराना होगा
आप के प्रचार का तीखा अंदाज भाजपा को कर रहा परेशान
Gujarat assembly election : गुजरात विधानसभा का चुनाव इस बार सत्ताधारी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। दिसंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के समय मुकाबला मुख्य रूप से सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा था। उस चुनाव में कांग्रेस ने (Bjp in gujarat) भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, जिसकी वजह से भाजपा 99 सीटों पर सिमट गई थी लेकिन उसका वोट शेयर 49 प्रतिशत को पार कर गया था। इस बार राज्य में कांग्रेस की रणनीति बदली हुई है, वह कोई शोर शराबा किए अपने काम में जुटी है और यही भाजपा के लिए चिंता का विषय हो गई है। 14वीं गुजरात विधानसभा का यह कार्यकाल 18 फरवरी 2023 को पूरा हो रहा है।
देरी से चुनाव की घोषणा पर सवाल
गुजरात प्रधानमंत्री (PM modi) नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है, वहीं भाजपा का यहां मजबूत जनाधार माना जाता है। राज्य में पिछले दो कार्यकाल से भाजपा का शासन है, बीते अनेक उपचुनावों में भाजपा ने यहां से जीत हासिल की है। जिसके बाद यह माना जाता है कि राज्य का मतदाता भाजपा के अलावा किसी अन्य राजनीतिक दल के बारे में सोचेगा भी नहीं। हालांकि भाजपा को जीत का यह अतिविश्वास अब उसके ही नेतृत्वकर्ताओं को परेशान करने लगा है। चुनाव की घोषणा से पहले प्रधानमंत्री मोदी जहां गुजरात के निरंतर दौरे करते रहे, वहीं हिमाचल विधानसभा की तुलना में यहां चुनावों की तारीखों के ऐलान में हुई देरी पर भी विपक्ष सवाल उठा रहा है। तब यह सवाल जेेहन में आता है कि आखिर किस खास वजह से गुजरात में चुनावों की घोषणा में निर्वाचन आयोग ने समय लिया। इसकी असली वजह क्या गुजरात में भाजपा को मिल रहे संकेत तो नहीं है?
आप ने भाजपा की उड़ाई नींद
गुजरात में इस बार भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती आम आदमी पार्टी की ओर से दी जा रही है। पंजाब फतेह के बाद आप ने जिस प्रकार सधे कदमों से गुजरात का रूख किया है, और चुनाव से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल एवं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने दौरे शुरू किए थे, उससे राज्य की जनता के सामने एक नया विकल्प उभर कर सामने आया है। अब न्यूज चैनलों के सर्वे आप को 20 से 25 सीटें देते नजर आ रहे हैं। यह तब है, जब (Arvind kejriwal) अरविंद केजरीवाल राज्य में आप का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर चुके हैं। इसुदान गढ़वी पत्रकार एवं पूर्व टीवी एंकर हैं। वे उसी जमात का हिस्सा हैं, जहां से दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आए हैं। आप पहले भी कई पत्रकारों को अपने यहां सुशोभित कर चुकी है, हालांकि यह अलग बात है कि बाद में उनमें से ज्यादातर को पार्टी से बाहर कर दिया गया। इसुदान गढ़वी का चयन सर्वे के आधार पर किया गया है, जिसमें उन्हें बकौल केजरीवाल 73 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। पंजाब में भी केजरीवाल की ओर से सर्वे के बाद भगवंत मान को सीएम पद का चेहरा घोषित किया गया था। यह भी बताया गया है कि गुजरात में आप के सीएम पद के उम्मीदवार के सर्वे में 16 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया।
जनता को लुभाने को वादों की भरमार
प्रदेश में आम आदमी पार्टी जीत हासिल करने के लिए हर वह तरीका अपना रही है, जोकि वह दूसरे राज्यों के चुनावों में अपनाती रही है। अरविंद केजरीवाल गुजरात के हिंदू मंदिरों की यात्रा कर रहे हैं, वहीं उन्होंने नोटों पर हिंदू देवी-देवता की फोटो लगाने की अनूठी मांग भी की है। दिवाली के ठीक दूसरे दिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि करंसी पर एक तरफ महात्मा गांधी की तस्वीर बनी रहनी चाहिए लेकिन दूसरे कोने में देवी लक्ष्मी और गणेश जी की फोटो भी लगाई जानी चाहिए। राजनीतिक विश्लेषक उनकी इस मांग का सीधे हिंदू समाज को खुश करने की कवायद समझते हैं। केजरीवाल ने गुजरात में भी मुफ्त बिजली-पानी का वादा किया है, वहीं राज्य के स्कूलों को दिल्ली की तर्ज पर बनाने का अपना राजनीतिक हथियार भी आजमाया है।
कांग्रेस की खामोशी कर रही परेशान
गुजरात में बीते 27 वर्षों से काबिज भाजपा, आम आदमी पार्टी की अति सक्रियता और कांग्रेस की अति खामोशी से परेशान है। गुजरात में कांग्रेस का व्यापक जनाधार है, लेकिन नई परिस्थितियों में जब पार्टी को उसका पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल चुका है और राहुल गांधी जब भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पार्टी के पक्ष में माहौल बदलने निकले हुए हैं, तब उसका हौसला मजबूत हो रहा है। कांग्रेस की इस बदली चाल-ढाल को लेकर भाजपा ने अगर आप को अपनी प्रमुख विरोधी करार देना शुरू किया है तो इसके पीछे पार्टी की गहरी रणनीति बताई जा रही है। चुनाव विश्लेषक बताते हैं कि भाजपा को जहां अपनी जीत का अति विश्वास है, लेकिन इस अति विश्वास में पलीता लगने का भी उसे अंदेशा है, इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी भी पार्टी नेताओं को आगाह कर चुके हैं। गुजरात के मतदाता के मन में क्या चल रहा है, यह भांपना अभी मुश्किल है, लेकिन अगर मतदाता का मन भाजपा के साथ लग चुका है तब भी पार्टी आप को राज्य में आगे बढऩे नहीं देना चाहती।
कांग्रेस को महत्व नहीं दे रही भाजपा, क्यों
भाजपा नेताओं ने अपने दौरे के वक्त भाषणों में कहीं भी कांग्रेस को महत्व नहीं दिया है, उन्होंने आप की राज्य में मौजूदगी पर सवाल उठाए हैं। राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर भी भाजपा के प्रवक्ता आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बयानों, मनीष सिसोदिया के आवास पर सीबीआई के छापे, आप के मंत्रियों के भ्रष्टाचार, जेल में धन शोधन मामले में बंद व्यवसायी सुकेश चंद्रशेखर के उस पत्र जिसमें उसने मुख्यमंत्री केजरीवाल और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन पर जेल में सुरक्षा के नाम पर 50 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगाया है, हिंदुओं के संबंध में केजरीवाल के ट्वीट, दिल्ली में प्रदूषण से हुए बदहाल आदि को लेकर हमले कर रहे हैं। इस समय लग रहा है, जैसे भाजपा के पास कांग्रेस का नाम लेने तक की फुर्सत नहीं है, वह बस आप को निशाने पर लिए हुए है। आखिर इस कवायद का क्या मतलब है, इसका अर्थ कांग्रेस को पीछे धकेलने के लिए आप को आगे रखने से है। गुजरात में भाजपा ने आप को अपनी प्रमुख विरोधी पार्टी के रूप में प्रचारित किया है, लेकिन भ्रष्ट व झूठा करार देकर।
सत्ता विरोधी वोट न मिले कांग्रेस को, कोशिश यह
ऐसा करने का एक और मकसद सत्ता विरोधी वोटों को कांग्रेस नहीं आप की ओर से डाइवर्ट करने का है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थी, कांग्रेस का राज्य में बड़ा जनाधार भी है। बीते 27 वर्षों से एक राज्य में काबिज रहने के बाद बदले माहौल में भाजपा के रणनीतिकारों का चिंतित होना जरूरी है। गुजरात में अगर भाजपा के हाथों से जीत फिसलती है तो वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने की उसकी तैयारियों को झटका लग सकता है। इसकी संभावना हो सकती है कि सत्ताविरोधी लहर राज्य में तैयार हो रही हो, ऐसे में अगर यह सत्ताविरोधी वोट कांग्रेस और आप में विभाजित हुआ तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। वैसे भी इस बार गुजरात में होने वाले चुनाव अचंभित करने वाले हो सकते हैं। भाजपा फिर जीत सकती है, अगर ऐसा हुआ तो कड़ी चुनौती के बीच यह विरोधियों को अचंभित करेगा। वहीं अगर आप को जीत हासिल होती है तो पंजाब की तरह एक महा आश्चर्य वाली बात होगी। हालांकि अगर राज्य के मतदाता का मन कांग्रेस पर आया तो इसे पार्टी नेतृत्व के परिवर्तन और कांग्रेस के खुद को संवारने की कवायद पर किए गए भरोसे के रूप में देखा जाएगा।
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