Bhairav is enshrined in two forms

दो स्वरूप में विराजित हैं भैरव, इस कामना की पूर्ति के लिए आते हैं लोग

Bhairo

Bhairav is enshrined in two forms

वैसे तो हिंदू धर्म में भैरव आराधना का स्वरूप विविध और व्यापक है लेकिन राजस्थान के जोधपुर में एक ऐसे भैरव हैं जो दो रूपों में हैं। विभिन्न परिवारों के कुल देवता माने जाने वाले इन भैरव जी की प्रतिमा आमने-सामने स्थित है। इनके स्वरूप की तरह, इनके नाम भी विशेष हैं। इन्हें काले भैरव और गोरे भैरव कहा जाता है।

लोग यहां पुत्र एवं पुत्री की कामना लिए दर्शन करते आते हैं। चूंकि दशहरे के समय कई घरों में कुल देवता को धोक दी जाती है, ऐसे में यहां सुबह से शाम तक अनेक लोगों का आना-जाना लगा रहा। यह भैरव प्रतिमाएं काफी समय से यहां स्थापित हैं जो कि एक प्राचीन बावड़ी में स्थित है। यह स्थान जोधपुर में आंचलिक क्षेत्र गोठन के पास ग्राम रजलानी में है। बावड़ी के ठीक बाहर ऊपर की ओर शिव मंदिर है और पास में एक और भैरव मंदिर है। इस प्रकार यहां एक ही स्थान पर तीन भैरव प्रतिमाएं हैं।

बावड़ी में आने वाले परिवारों की कुल देवता की पूजा कराने वाले पंडित दिनेश सास्वत के मुताबिक काले और गोरे दो भैरवों की आराधना व चढ़ावे की विधि भी भिन्न है। काले भैरव को शराब चढ़ाई जाती है जबकि गोरे भैरव को मीठा चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि काले भैरव की आराधना से पुत्र एवं गोरे भैरव की आराधना से पुत्री की प्राप्ति होती है।

यह स्थान मुख्य रूप से जोधपुर की सीमा में बसे ग्राम रजलाीन में आता है। प्रदेश के नागौर जिले की डेगाना तहसील के कुचेरा कस्बे में स्थित ख्यात बुटाटी धाम मंदिर से इसकी दूरी करीब 65 किलोमीटर है। रास्ते में मेड़ता शहर और गोठन कस्बा आता है। जोधपुर में कूपावत राजपूतों का उद्गम माना जाता है। रजलानी में भैरव बावड़ी के समीप ही कूपावत राजपूतों का महल था। इसका खंड स्वरूप आज भी यहां मौजूद है।

भैरव हिंदुओं के ऐसे देवता हैं जिन्हें शिव का अंश माना जाता है। भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के पसीने से हुई थी। भारत के अलावा नेपाल में भी इनकी पूजा-आराधना की जाती है। इनकी संख्या कुल 64 बताई गई है। इन 64 भैरव को 8 भागों में बांटा गया है। इनकी आराधना मुख्य तौर पर तंत्र बाधा के निवारण के लिए की जाती है। कालभैरव की आराधना समूचे भारत में होती है। विभिन्न आंचलिक क्षेत्रों में भैरव अलग-अलग नामों से ख्यात हैं।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में अष्ट भैरव हैं। इनके नाम 56 भैरव, काल भैरव, कोतवाल, तोपतोड़ भैरव, बलवट भैरव, आताल-पाताल, दानी भैरव और विक्रांत भैरव है। उज्जैन में भैरव को महाकाल का नगर कोतवाल कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. पं विशाल शुक्ल के अनुसार भैरव की आराधना बहुधा तंत्र साधनाओं के लिए की जाती है लेकिन सात्विक पूजा भी की जाए तो इसमें कुछ त्रुटिपूर्ण नहीं है।