Badrinath the holy abode of Shri Hari

Badrinath: श्री हरि का पवित्र धाम बद्रीनाथ, यहां लिखा गया था पांचवां वेद

Badri-Nanth

Badrinath the holy abode of Shri Hari

Badrinath the holy abode of Shri Hari बद्रीनाथ धाम भगवान श्री हरी का निवास स्थल माना जाता है। यह उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के पर नर-नारायण नामक दो पर्वतों पर स्थापित है। कहते हैं कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना बद्रीनाथ धाम Badrinath Dham में ही की थी। इस क्षेत्र में एक गुफा है जिसे महाभारत का रचनास्थल माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार महाभारत को पांचवा वेद भी कहा जाता है। साथ ही महाभारत विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ भी माना जाता है। पुराणों की मानें तो बद्रीनाथ धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी और ये भगवान विष्णु की तपोभूमि भी है। भगवान विष्णु ने कई सालों तक इस जगह पर तपस्या की थी। इसीलिए कहते हैं कि पांचवे वेद की रचना विष्णु जी की तपोभूमि पर रचा गया।

इस स्थान का नाम बद्रीनाथ Badrinath Dham  कैसे पड़ा इसके पीछे एक रोचक कथा है। कहते हैं कि जब भगवान विष्णु कठोर तप में लीन थे तब देवी लक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बन कर सालों तक भगवान विष्णु को छाया दीं और उन्हें बर्फ आदि से बचाया।

देवी लक्ष्मी के इसी सर्मपण से खुश होकर भगवान विष्णु ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। श्री हरी यहां के पालनहार माने जाते हैं। बद्रीनाथ धाम के गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है जो कि शालिग्राम शिला से बनी है। यहां की मूर्ति बहुत ही छोटी है। जिसे हीरों के जड़ा हुआ मुकुट पहनाया जाता है।

यहां स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति सबसे पहले आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य को यहां के एक कुंड में मिली थी। जिसे उन्होंने एक गुफा में स्थापित कर दिया था। बाद में राजाओं द्वारा वर्तमान मंदिर का निर्माण करवा कर मूर्ति को इस मंदिर में स्थापित किया गया। यहां भगवान विष्णु के साथ भगवान कुबेर और उद्धव जी की भी मूर्तियां स्थापित हैं।
 

अलकनंदा नदी के किनारे तप्त नामक एक कुंड है। इस कुंड का पानी हर समय गर्म ही रहता है जो की किसी चमत्कार के कम नहीं। यह कुंड चमत्कारी होने के साथ-साथ बहुत पवित्र भी माना जाता है। मान्यता है इस कुंड में स्नान करने पर भक्त पापों से मुक्ति पाते हैं।
 

कैसे हुई महाभारत की रचना

महाभारत में वर्णन described in the Mahabharata आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी। इस काव्य के ज्ञान को जन साधारण तक कैसे पहुंचाया जाये क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था। कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जायें यह असंभव था। असंभव को संभव करने के लिए व्यास जी, ब्रम्हा जी के पास गए। जिन्होंने, उनको गणेश जी के पास भेजा।

श्री गणेश लिखने को तैयार हो गये, किंतु उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे। व्यासजी जानते थे कि यह शर्त बहुत कठनाईयां उत्पन्न कर सकती है। इसलिए उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका अर्थ समझना होगा। गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

इस तरह व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। सम्पूर्ण महाभारत को लिखने में तीन वर्ष का समय लगा था।

 

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