बैक्टीरिया घटा सकता है टर्शरी वॉटर से फॉस्फेट व नाइट्रेट
Tertiary Water in Sukhna Lake
पंजाब यूनिवर्सिटी के माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं का सुझाव, खतरे में नहीं पड़ेगी इसके बाद पानी के अंदर मौजूद जीव जंतुओं की जिंदगी
डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने पीयू के विभाग को सौंपा था पांच सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों की मॉनीटरिंग व टर्शरी वॉटर को लेकर काम
चंडीगढ़, 28 अक्तूबर (साजन शर्मा): चंडीगढ़ की सुखना लेक में सीवरेज का ट्रीटेड वॉटर डालने को लेकर प्रशासन अभी पशोपेश में है। प्रशासन ने इस मुद्दे के हल को लेकर जो कमेटी गठित की थी उसके कुछ सदस्य कह रहे हैं कि अगर सुखना में सीवरेज का ट्रीटेड पानी डाला जाता है तो इससे उसमें मौजूद नाइट्रेट व फॉस्फेट से जल के अंदर जीव जंतुओं को खतरा हो सकता है। इसकी वजह से झील में एल्गी (शेवाल या काई) भी पैदा होगी जो एक नई समस्या के तौर पर सामने आ सकती है। वहीं इसको लेकर शोधकर्ताओं की अलग दलील है। उन्होंने कहा है कि सीवरेज के ट्रीटेड वॉटर में नाइट्रेट और फॉस्फेट की मात्रा को घटाया जा सकता है या बिलकुल समाप्त किया जा सकता है। प्रशासन ने इस मसले को लेकर जो कमेटी गठित की थी उसमें पंजाब यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो-बायोलॉजी के प्रोफेसर नवीन गुप्ता भी शामिल थे जिनकी लैब में टर्शरी वॉटर व सीवरेज वॉटर के ट्रीटमेंट को लेकर काम हुआ। हाईकोर्ट में यह सुझाव दिया गया था कि सुखना लेक में सीवरेज का ट्रीटेड वॉटर डाला जा सकता है।
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प्रो. नवीन गुप्ता के मुताबिक ट्रीटेड वॉटर में जो फॉस्फेट या नाइट्रेट होने की समस्या रहती है, उसे या तो पूरी तरह दूर किया जा सकता है या फिर इसकी मात्रा काफी घटाई जा सकती है। इसका खुलकर इस्तेमाल हो सकता है। कुछ खास बैक्टीरिया की मदद से फॉस्फेट और नाइट्रेट हटाया जा सकता है और सुखना में सीवरेज के ट्रीटेेड वॉटर को डाला जा सकता है। डॉ. नवीन गुप्ता का कहना है कि फिलहाल बड़ी मात्रा में सीवरेज का पानी बेकार हो जाता है। इसका ट्रीटमेंट कर टर्शरी वॉटर का हालांकि चंडीगढ़ की ग्रीन बेल्ट व पार्कों इत्यादि में प्रशासन इस्तेमाल करने लगा है। सिंचाई के लिए भी इसका प्रयोग हो रहा है। डॉ. नवीन गुप्ता ने बताया कि चंडीगढ़ प्रशासन ने वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट का काम पंजाब यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो-बायोलॉजी में उनके लैब को दिया जिस पर यहां काम किया गया और अपनी रिपोर्ट प्रशासन को सौंपी। बता दें कि शहर में फिलहाल पांच सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग को इन ट्रीटमेंट प्लांटों की मॉनीटरिंग करने का जिम्मा सौंपा था। इन प्लांटों में क्या कमियां हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है, इस पर काम करना शुरू किया। यहां सीवरेज मिले पानी को ट्रीट कर टर्शरी वॉटर तैयार होता है। इसमें भी शुरू शुरू में दुर्गंध की समस्या आ रही थी।
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धीरे धीरे विभाग ने इसका भी हल निकाल दिया और अब जो टर्शरी वॉटर ग्रीन बेल्ट में सप्लाई होता है, उसमें दुर्गंध बहुत ही कम है। किशनगढ़ के पास भी एक ट्रीटमेंट प्लांट है जहां का टर्शरी वॉटर सुखना लेक में गिराने की योजना पर काम किया जा रहा था। इतना ही नहीं, प्रो. नवीन गुप्ता को डड्डूमाजरा की लैंडफिल साइट के आसपास भी दुर्गंध की समस्या व इसे घटाने को लेकर जिम्मा सौंपा गया था। इस दौरान यह जाना गया कि इस क्षेत्र में कौन कौन सी बीमारियां फैल रही हैं। प्रशासन को चार-पांच माह पहले इसको लेकर रिपोर्ट सौंपी गई उसमें बताया गया कि यहां के अंडरग्राउंड वॉटर में कोई समस्या नहीं है लेकिन यहां की हवा बहुत प्रदूषित है जिसकी वजह से कई बीमारियां फैल रही हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया कि अगर हो सके तो लैंडफिल के क्षेत्र को बढ़ा कर यहां डंप होने वाला कूड़ा फैला दिया जाए। दूसरा कोई नई साइट अगर डंप के लिए तय हो जाए तो माडर्न तरीकों से इस कूड़े का निस्तारण हो सकता है। हालांकि प्रशासन ने कूड़े के निस्तारण पर अब काम शुरू कर दिया है।