जिस हेट स्पीच केस में आजम खान की गई थी विधायकी... उसमें हो गए बरी
Hate Speech Case
Hate Speech Case: उत्तर प्रदेश में रामपुर की अदालत ने हेट स्पीच मामले में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को बरी कर दिया है. अब सवाल यह है कि आजम खान क्या करेंगे? उनकी तो विधानसभा की सदस्यता भी जा चुकी है. रामपुर में उप चुनाव भी हो गया है. उनके बदले अब बीजेपी से आकाश सक्सेना विधायक बने हैं.
सवाल है कि अब आजम खान के आगे क्या विकल्प बचता है? बरी होने के बाद आजम खान को क्या कोई कानूनी राहत मिल सकती है? अदालत के ताजा फैसले के बाद चुनाव आयोग को क्या अपने फैसले पर विचार करने की जरूरत है? क्या जन प्रतिनिधि कानून में बदलाव होना चाहिए?
क्या कहता है कानून? (What does the law say?)
कानून के मुताबिक, अगर किसी को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. चाहे वह लोकसभा के सदस्य हों या फिर विधानसभा का. वैसे भी समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को एक और मामले में सजा हो चुकी है. उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान को भी उसी केस में सजा हुई थी. ये मामला 2008 का है. जिसके बाद अब्दुल्ला की विधानसभा सदस्यता भी चली गई. स्वार विधानसभा सीट पर उप चुनाव भी हो गया.
कपिल सिब्बल से सलाह मशविरा करेंगे आजम (Azam will consult Kapil Sibal)
इसी महीने हुए इस चुनाव में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल की जीत हुई. बताया जा रहा है कि आजम खान अब इस मामले में कपिल सिब्बल से सलाह मशविरा करेंगे. वे उनके अच्छे दोस्त रहे हैं. सिब्बल की मदद से ही वे दो साल बाद जेल से बाहर आ पाए थे. बदले में अखिलेश यादव की मदद से आजम खान उन्हें राज्य सभा भेजने में कामयाब रहे थे.
हेट स्पीच मामले में मिली थी तीन सला की सजा (Was sentenced to three years in hate speech case)
समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर आजम खान इन दिनों बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन आज उनके लिए बड़ी राहत की खबर आई है. रामपुर में एमपी एमएलए कोर्ट के सत्र न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया. पिछले साल 22 अक्टूबर को निचली अदालत ने उन्हें हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा सुनाई थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आज के भाषण पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था.
फैसला ‘डूबते को तिनके के सहारे’ वाला (The verdict 'drowning with the help of a straw')
आज के फैसले से आजम को राजनीतिक रूप से डूबते को तिनके वाला सहारा मिल गया है. वैसे तो यूपी सरकार इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएगी. पर कम से कम आजम इस फैसले को अपने फायदे के लिए कैश तो करा सकते हैं. वह जनता के बीच जाकर ये तो कह सकते हैं कि उनके साथ नाइंसाफी हुई. यूपी की बीजेपी सरकार से लेकर चुनाव आयोग तक को कठघरे में खड़ा कर सकते हैं. 22 अक्टूबर को फैसला आया और 28 अक्टूबर को चुनाव कराने का फैसला भी आ गया था. सब कुछ बहुत जल्दबाजी में हुआ.
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