Avalanche in jammu kashmir

उत्तरी कश्मीर में दुश्मन की सेना से भी ज्यादा घातक है बर्फ का समंदर

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भारतीय सेना के जवानों के लिए चुनौती बना हिमस्खलन : File photo

Avalanche in jammu kashmir : उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा (kupwara) के मच्छल सेक्टर में (Indian army on loc) एलओसी पर गश्त के दौरान हिमस्खलन की चपेट में आने से शुक्रवार को तीन जवान शहादत को प्राप्त हो गए। इस दुर्गम क्षेत्र में सैनिकों की हिमस्खलन की वजह से शहादत की पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी अनेक ऐसी घटनाएं घटी हैं, जब सैनिकों को इस क्षेत्र की सुरक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने पड़े हैं। इससे पहले 14 जनवरी 2020 को इसी सेक्टर में हुए हिमस्खलन में 4 सैन्य जवान बलिदान हुए थे। आइए समझने का प्रयास करते हैं, यह क्षेत्र इतना दुर्गम क्यों है और बावजूद इसके भारतीय सेना इसे इतनी अहमियत क्यों देती है।

 

मच्छल सेक्टर में दिन-रात चलते हैं बर्फीले तूफान 
मच्छल सेक्टर में बर्फीले तूफान दिन-रात चलते रहते हैं। यहां हिमस्खलन कब हो जाए कोई नहीं बता सकता। सैनिक अपने प्राणों को हथेली पर रखे, इस सेक्टर में गश्त पर निकलते हैं। गश्त के दौरान जहां (firing by Pakistan army) पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी का लगातार अंदेशा रहता है, वहीं बर्फ भी दुश्मन बनकर सैनिकों का पीछा करती रहती है। हालांकि एलओसी और एलएसी पर भारतीय सैनिकों के लिए दुश्मन देश की सेनाओं से ज्यादा चुनौतीपूर्ण बर्फ का वह सफेद समंदर दिखता है, जिससे निपटना लगभग असंभव होता है। 

 

कारगिल युद्ध से पहले खाली होती रही हैं चौकियां
इस सेक्टर में भारतीय सेना ने अपनी चौकियां बनाई हुई हैं। सर्दी के मौसम में इन चौकियों तक पहुंच और यहां रहते हुए सीमा की रखवाली बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय सेना इन सीमांत चौकियों को सर्दियों में खाली करने का जोखिम नहीं ले सकती। हालांकि   3 मई से 26 जुलाई 1999 के बीच लड़े गए कारगिल युद्ध से पहले इन चौकियों को सर्दियों के मौसम में हर साल खाली करा लिया जाता था। लेकिन इन चौकियों से भारतीय सैनिकों के हटने के बाद क्या हुआ, यह पूरा देश जानता है। इन चोटियों पर आकर दुश्मन देश के सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। 

 

कारगिल युद्ध से पहले कभी-कभार होती थी ऐसी घटना
पाकिस्तान से सटी एलओसी पर दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन के कारण होने वाली सैनिकों की मौतों का सिलसिला साल 1999 के बाद से ही शुरू हुआ है। कारगिल युद्ध से पहले कभी कभार होने वाली ऐसी घटनाओं को मौसम की बदहाली के रूप में लिया जाता रहा था, पर अब करगिल युद्ध के बाद लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं सेना के लिए चुनौतीपूर्ण बन गई हैं।

 

सिर्फ चॉपर के जरिए ही पहुंच सकते हैं ऐसी चौकियां पर 
बर्फीले तूफानों और हिमस्खलन के कारण अधिकतर मौतें एलओसी की उन दुर्गम चौकियों पर घटती हैं, जहां सर्दियों के महीनों में केवल चॉपर के जरिए पहुंचना ही संभव होता है। सर्दियों के मौसम में इस सेक्टर में हरतरफ सफेद चमकती बर्फ का समंदर जैसा ही नजर आता है। जो चौकियां बाकी महीनों में धरातल पर दिखती हैं, वे इन दिनों में बर्फ के नीचे दब चुकी होती हैं। 

 

पहले मौखिक समझौते से खाली होती थी चौकियां
कारगिल युद्ध से पहले भारत और पाक की सेनाओं के बीच मौखिक समझौतों के तहत एलओसी की ऐसी दुर्गम चौकियां और बंकरों को सर्दियों का मौसम आने से पहले खाली कर लिया जाता था और इसके बाद अप्रैल के आखिर में जब बर्फ पिघल जाती थी तो इन चौकियों पर फिर कब्जा ले लिया जाता था। ऐसी कार्रवाई दोनों सेनाएं अपने-अपने इलाकों में अंजाम देती थीं।

 

कारगिल युद्ध मौखिक समझौता टूटने से हुआ
कारगिल का युद्ध  पाकिस्तान की सेना की ओर से मौखिक समझौते को तोडऩे की वजह से हुआ था। भारतीय सेना ने जिन चौकियों को खाली किया था, पाकिस्तानी सेना ने उन्हीं चौकियां पर कब्जा जमा लिया था। 
ऐसे में फिर से पाकिस्तान ऐसी किसी करतूत को अंजाम दे, उससे बचने के लिए भारतीय सेना का इस सेक्टर में 24 घंटे सतर्कता बरतना जरूरी हो गया है। भारतीय सेना के पास अब अनेक आधुनिक उपकरण हैं, जिनके जरिए पहले से यहां जीवन कुछ आसान हुआ है, लेकिन इसके बावजूद बर्फ के सफेद दुश्मन की करवट को परखना सहज नहीं है।

 

पाकिस्तानी सेना फिर चाहती है मौखिक समझौता
बताया गया है कि पाक सेना ने सीजफायर के बाद अनेक बार ऐसे मौखिक समझौतों को फिर से लागू करने का आग्रह भारतीय सेना से कर रही है, जिसमें सर्दियों के मौसम में इस सेक्टर से चौकियों को खाली कर दिया जाए। क्योंकि वह खुद ऐसे ही भीषण हालात में इन चौकियों में पहरेदारी करती है। हालांकि भारतीय सेना की ओर से इसका आग्रह का जवाब ना ही होता है। भारतीय सेना की ओर से कहा जाता है कि पाक सेना लिखित समझौते को नहीं मानती है तो वह मौखिक समझौते को क्या मानेगी। गौरतलब है कि  लद्दाख में चीन सीमा पर भी ऐसे ही हालात हैं, जहां सांस लेने भर की वायु नहीं है, उन परिस्थितियों में भारतीय सेना देश की सीमा की पहरेदारी कर रही है।

 

अब तक कब-कब हुआ हिमस्खलन 
14 जनवरी 2020 - मच्छल में सेना के 4 जवान शहीद।
4 दिसम्बर 2019 - तंगधार में सेना के 4 जवान शहीद।
30 नवंबर, 2019 - सियाचिन ग्लेशियर में भारी हिमस्खलन में सेना की पेट्रोलिंग पार्टी के 2 जवान शहीद।
18 नवंबर, 2019 - सियाचिन में हिमस्खलन से 4 जवान शहीद, 2 पोर्टर भी मारे गए।
10 नवंबर, 2019 - उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में हिमस्खलन की चपेट में आकर सेना के दो पोर्टरों की मौत।
31 मार्च, 2019 - उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में हिमस्खलन में दबकर मथुरा के हवलदार सत्यवीर सिंह शहीद।
3 मार्च, 2019 - कारगिल के बटालिक सेक्टर में ड्यूटी के दौरान हिमस्खलन में पंजाब के नायक कुलदीप सिंह शहीद।
8 फरवरी, 2019 - जवाहर टनल पुलिस पोस्ट हिमस्खलन की चपेट में आई, 10 पुलिसकर्मी लापता, आठ बचाए गए।
5 मई 2017 - कुलगाम में सेना के 3 जवान शहीद।
2017 में ही गुरेज में 4 नागरिक मारे गए तथा सोनामर्ग में सेना का एक जवान शहीद।
3 फरवरी, 2016 - हिमस्खलन से 10 जवान शहीद, बर्फ से निकाले गए लांस नायक हनुमनथप्पा ने छह दिन बाद दम तोड़ा।
16 मार्च, 2012 - सियाचिन में बर्फ में दबकर 6 जवान।