Ambedkar Jayanti 2023 know about the life of Baba Saheb and history significance career

Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहेब की 131वीं जयंती पर जानें उनके जीवन और अनमोल विचारों के बारे में 

Ambedkar Jayanti 2023

Ambedkar Jayanti 2023 know about the life of Baba Saheb and history significance career

Ambedkar Jayanti 2023 : भारतीय संविधान निर्माता के रूप में पहचाने जाने वाले डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर की जयंती 14 अप्रैल को मनाई जाती है। 14 अप्रैल 1891 को जन्में अम्बेडकर की जयंती पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सभी बड़े नेता उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस वर्ष 14 अप्रैल 2023 को डॉ बी.आर अम्बेडकर की 131वीं जयंती मनाई जा रही है। डॉ बी आर अंबेडकर को समर्पित इस दिन को 'भीम जयंती' के रूप में भी जाना जाता है। दलित समाज के उत्थान, जाति व्यवस्था की बुराइयों को दूरे करने और लोगों को जागरूक करने के लिए डॉ अम्बेडकर ने काफी संघर्ष किया। तो आइए जानते है डॉ.भीमराव अम्बेडकर जयंती का महत्व, इतिहास और अम्बेडकर के अनमोल वचन के बारे में।

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अम्बेडकर जयंती का इतिहास 
जनार्दन सदाशिव रणपिसे, अम्बेडकर के एक प्रबल अनुयायी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने 14 अप्रैल, 1928 को पुणे में पहली बार डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती मनाई। उन्होंने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती को मनाने की परंपरा शुरू की और तब से भारत हर साल 14 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश के रूप में अम्बेडकर जयंती मनाई जाती है।

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अम्बेडकर जयंती का महत्व 
अम्बेडकर जयंती का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि यह जाति आधारित कट्टरता की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जो आजादी के 75 साल बाद भी हमारे समाज में कायम है। हम इस दिवस को मनाकर वंचितों के उत्थान में बाबा साहेब के योगदान को याद करते हैं। उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया जो जाति, धर्म, नस्ल या संस्कृति की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है। अंबेडकर ने अछूतों के बुनियादी अधिकारों और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय संस्था बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन किया, साथ ही दलितों को सार्वजनिक पेयजल आपूर्ति और हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार प्रदान करने के लिए भी आंदोलन किया।

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डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्म, परिवार, पत्नी, विवाह
अम्बेडकर जी अपने मां बाप की 14वी संतान थे। उनके पिता इंडियन आर्मी में सूबेदार थे, व उनकी पोस्टिंग इंदौर के पास महू में थी, यही अम्बेडकर जी का जन्म हुआ। 1894 में रिटायरमेंट के बाद उनका पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा में शिफ्ट हो गया। कुछ दिनों के बाद उनकी मां चल बसी, जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, और बॉम्बे शिफ्ट हो गए। 1906 में 15 साल की उम्र में उनका विवाह 9 साल की रमाबाई से हो गया। 

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डॉ भीमराव अम्बेडकर जाति भेदभाव एवं आरंभिक जीवन 
छुआ छूत के बारे में अम्बेडकर जी ने बचपन से देखा था, वे हिन्दू मेहर कास्ट के थे, जिन्हें नीचा समझा जाता था व ऊंची कास्ट के लोग इन्हें छूना भी पाप समझते थे। इसी वजह से अम्बेडकर जी ने समाज में कई जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा। इस भेदभाव व निरादर का शिकार, अम्बेडकर जी को आर्मी स्कूल में भी होना पड़ा जहां वे पढ़ा करते थे, उनकी कास्ट के बच्चों को क्लास के अंदर तक बैठने नहीं दिया जाता था। टीचर तक उन पर ध्यान नहीं देते थे।यहां उनको पानी तक छूने नहीं दिया जाता था, स्कूल का चपरासी उनको उपर से डालकर पानी देता था, जिस दिन चपरासी नहीं आता था, उस दिन उन लोगों को पानी तक नहीं मिलता था। 

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डॉ भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा
उनके परिवार के बॉम्बे में शिफ्ट होने के बाद अम्बेडकर जी की पढाई यही बॉम्बे में हुई। आपको बता दें कि इनकी शादी 15 साला की उम्र में हो गई थी और उसके बाद 1908 में उन्होंने 12 वी की परीक्षा पास की। स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद अम्बेडकर जी को आगे की पढाई के लिए बॉम्बे के एल्फिनस्टोन कॉलेज जाने का मौका मिला, पढाई में वे बहुत अच्छे व तेज दिमाग के थे, उन्होंने सारे एग्जाम अच्छे से पास करे थे, इसलिए उन्हें बरोदा के गायकवाड के राजा सहयाजी से 25 रूपए की स्कॉलरशिप हर महीने मिलने लगी। उन्होंने राजनीती विज्ञान व अर्थशास्त्र में 1912 में ग्रेजुएशन पूरा किया। उन्होंने अपने स्कॉलरशिप के पैसे को आगे की पढाई में लगाने की सोची और आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गए।

डॉ भीमराव अम्बेडकर का करियर
अमेरिका से लौटने के बाद बरोदा के राजा ने उन्हें अपने राज्य में रक्षा मंत्री बना दिया। परन्तु यहां भी छुआछूत की बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, इतने बड़े पद में होते हुए भी उन्हें कई बार निरादर का सामना करना पड़ा। बॉम्बे गवर्नर की मदद से वे बॉम्बे के सिन्ड्रोम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स में राजनैतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए। अम्बेडकर जी आगे और पढ़ना चाहते थे, इसलिए वे एक बार फिर भारत से बाहर इंग्लैंड चले गए, इस बार उन्होंने अपने खर्चो का भार खुद उठाया। यहां लन्दन युनिवर्सिटी ने उन्हें डी.एस.सी के अवार्ड से सम्मानित किया। अम्बेडकर जी ने कुछ समय जर्मनी की बोन यूनीवर्सिटी में गुज़ारा, यहां उन्होंने इकोनोमिक्स में अधिक अध्ययन किया। 8 जून 1927 को कोलंबिया यूनीवर्सिटी में उन्हें Doctrate की बड़ी उपाधि से सम्मानित किया गया।

भीमराव आम्बेडकर - विकिपीडिया

डॉ भीमराव अम्बेडकर का दलित मूवमेंट 
भारत लौटने के बाद अम्बेडकर जी ने छुआछूत व जातिवाद, जो किसी बीमारी से कम नहीं थी, ये देश को कई हिस्सों में तोड़ रही थी और जिसे देश से निकालना बहुत जरुरी हो गया था, इसके खिलाफ अम्बेडकर जी ने मोर्चा छेड़ दिया। अम्बेडकर जी ने कहा नीची जाति व जनजाति एवं दलित के लिए देश में अलग से एक चुनाव प्रणाली होनी चाहिए, उन्हें भी पूरा हक मिलना चाहिए कि वे देश के चुनाव में हिस्सा ले सके। अम्बेडकर जी ने इनके आरक्षण की भी बात सामने रखी।वह देश के कई हिस्सों में गए, वहां लोगों को समझाया कि जो पुरानी प्रथा प्रचलित है वो सामाजिक बुराई है उसे जड़ से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए। उन्होंने एक न्यूज़ पेपर ‘मूक्नायका’ (लीडर ऑफ़ साइलेंट) शुरू किया। एक बार एक रैली में उनके भाषण को सुनने के बाद कोल्हापुर के शासक शाहूकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस बात का पुरे देश में बहुत हल्ला रहा, इस बात ने देश की राजनीती को एक नयी दिशा दे दी थी।  

डॉ भीमराव अम्बेडकर द्वारा संविधान का गठन
भीमराव अम्बेडकर जी को संविधान गठन कमिटी का चेयरमैन बनाया गया। उनको स्कॉलर व प्रख्यात विदिबेत्ता भी कहा गया। अम्बेडकर जी ने देश की भिन्न-भिन्न जातियों को एक दुसरे से जोड़ने के लिए एक पुलिया का काम किया, वे सबके सामान अधिकार की बात पर जोर देते थे। अम्बेडकर जी के अनुसार अगर देश की अलग-अलग जाति एक दुसरे से अपनी लड़ाई ख़त्म नहीं करेंगी, तो देश एकजुट कभी नहीं हो सकता।

Dr. Ambedkar Jayanti 2020 | भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती

अम्बेडकर के सिद्धांत अनमोल विचार 
यदि आप एक सम्मानजनक जीवन जीने में विश्वास करते हैं, तो आप स्वयं सहायता में विश्वास करते हैं, जो सबसे अच्छी मदद है। हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए जितना हो सके लड़ना चाहिए। इसलिए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाएं और अपनी सेनाओं को संगठित करें। शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष के माध्यम से आपके पास आएगी। भारत का इतिहास और कुछ नहीं बल्कि बौद्ध और ब्राह्मणवाद के बीच एक नश्वर संघर्ष का इतिहास है। पुरुष नश्वर है, तो विचार जीवित हैं। एक विचार को प्रसार की आवश्यकता होती है, जितना एक पौधे को पानी की आवश्यकता होती है। नहीं तो दोनों मुरझा जाएंगे और मर जाएंगे। एक महान व्यक्ति, एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है।