सात साल से बंद पड़ा है प्रशासक का जनता दरबार
सात साल से बंद पड़ा है प्रशासक का जनता दरबार
जब तक शिवराज पाटिल रहे यूटी के प्रशासक, तब तक चलता रहा सिस्टम, उन्हीं के जाने से पहले कर दिया गया था सिस्टम
मौके पर ही हो जाता था लोगों की शिकायत का निपटारा, अफसरों की तय कर दी जाती थी जवाबदेही
-वीपी सिंह बदनौर के समय में एडमिनिस्ट्रेटर ओपन फोरम के तहत सचिवालय व प्रशासक के घर पर लैटर बॉक्स लगाया गया था, यह सिस्टम भी अब बंद
चंडीगढ़, 19 जुलाई (साजन शर्मा)
चंडीगढ़ में आम लोगों की शिकायतें सुनने के लिए प्रशासक की ओर से जनता दरबार शुरू किया गया था। इस दरबार में कोई भी जाकर फरियाद लगा सकता था और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर सकता था लेकिन करीब सात-आठ साल से यह जनता दरबार पूरी तरह बंद पड़ा है। इसे दोबारा शुरू करने की लोगों ने मांग शुरू कर दी है। लोगों की दलील है कि अब उनकी सुनवाई किसी भी स्तर पर नहीं हो रही है लिहाजा प्रशासक के सामने शिकायतें सुनने की प्रथा दोबारा शुरू की जानी चाहिए। प्रशासक के पास इसकी लिखित मांग भेजी गई है।
तत्कालीन प्रशासक शिवराज पाटिल के समय में यूटी में ग्रीवेंस मैकेनिज्म रीड्रेसिंग सिस्टम चल रहा था लेकिन एकाएक इसे बंद कर दिया गया। क्यों बंद किया गया, इसका आज तक प्रशासन और न ही प्रशासक ऑफिस की ओर से खुलासा किया गया है। यह सिस्टम इतना बढिय़ा था कि लोग यूटी सेक्रेट्रिएट में प्रशासक के सामने अपनी फरियाद करते थे और उसका तुरंत या कुछ समय बाद ही निदान भी होता था। बाकायदा मौके पर ही अफसरों को प्रशासक की ओर से यह शिकायत थमा दी जाती थी और उनकी सही मांगों का हल भी हो जाता था। सात आठ साल से लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है। अब तो हाल यह है कि प्रशासन के अफसर भी आम लोगों से मिलने से कतराते हैं। हालांकि लोगों के मिलने का समय दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक रखा गया है लेकिन जब से कुछ आला अफसर नए आए तब से मिलने की प्रथा भी बंद हो गई। कुछ चुनिंदा सिफारशी लोग ही अफसरों से मिलते हैं। इस पब्लिक दरबार को दोबारा शुरू करने की मांग कई बार की जा चुकी है लेकिन कोई सुनता नहीं है। चूंकि जवाबदेह कोई नहीं लिहाजा लोगों की भेजी शिकायतों पर भी कोई जवाब नहीं मिल पाता।
वीपी सिंह बदनौर के समय एडमिनिस्ट्रेटर ओपन फोरम के तहत सचिवालय व प्रशासक के घर पर लैटर बॉक्स लगाया गया था लेकिन फिलहाल यह सिस्टम भी बंद पड़ा है। एसआईए के प्रधान आरके गर्ग के अनुसार पब्लिक की शिकायतें सुनने के लिए एक वर्किंग सिस्टम बनाया जाना चाहिए जहां तय समयसीमा के भीतर शिकायतों को निपटारा हो। उन्होंने कहा है कि 2015 से पहले जो भी पब्लिक इश्यू
प्रशासक के पास पहुंचता था तो उस पर सकारात्मक कार्रवाई होती थी। यूटी के अफसर भी इसकी वजह से पब्लिक की बात सुनते थे। इस एडमिनिस्ट्रेटर फोरम में लोग लिखते थे तो उन्हें माह भर के भीतर बुलाया जाता था और शिकायत सुनी जाती थी। यहां अफसर भी मौजूद रहते थे। इसका मौके पर ही हल निकाला जाता था। इस सिस्टम के बेहतरीन नतीजे लोगों को मिले। लेकिन 2015 के बाद से कोई भी प्रशासक सीधे तौर पर जनता से रुबरू नहीं हुआ। आरके गर्ग ने कहा है कि डेमोक्रेटिक सेटअप में पब्लिक पार्टीसिपेशन बहुत जरूरी है। सीधे पब्लिक से बातचीत के जरिये ही इसे हासिल किया जा सकता है। ऐसे में जरूरत है कि दोबारा से एडमिनिस्ट्रेटर ओपन फोरम को शुरू किया जाए ताकि लोगों की शिकायतों पर गौर हो सके।