Action necessary on illegal liquor busines

अवैध शराब के धंधों पर कार्रवाई जरूरी

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Action necessary on illegal liquor busines

Action necessary on illegal liquor busines : देश के कई राज्यों में अवैध शराब बनाने का धंधा जिस हिसाब से बढ़ रहा है, उस पर तुरंत कार्यवाही करने की जरूरत (urgent action needed)  है, चाहे हाल ही में हरियाणा के पानीपत जिले में जहरीली शराब पीने से 4 लोगों की मौत (4 people died due to drinking alcohol) हो गई। इसी प्रकार पंजाब में अवैध शराब बनाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की ओर से कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत बताना यह सुनिश्चित होना है कि राज्य में अवैध शराब के मामले में पुख्ता कार्रवाई नहीं हो रही। हालांकि राज्य में लगातार ऐसे केस सामने आ रहे हैं, जब जहरीली शराब पीकर लोगों की मौतें हो रही हैं। पूर्व कांग्रेस सरकार के वक्त राज्य में हाहाकार मच गया था, जब कई जगह अवैध शराब बनाने की ऐसी भट्टियां (illegal distilleries) पकड़ी गई। यह सब भी तब हुआ था, जब जहरीली शराब पीकर मरने वालों का मामला मीडिया ने उठाया। यह माना ही नहीं जा सकता है कि पुलिस की फौरी कार्रवाई जिसमें कुछ भ_ियों को बंद करवा दिया या फिर कुछ आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने से राज्य में अवैध शराब बननी और बिकनी बंद हो गई है। यह तो उस शराब को पीने वालों की किस्मत हो सकती है कि अब तक वे बचे हुए हैं, वरना अवैध शराब के संबंध में कौन यकीनी तौर पर कह सकता है कि उसके सेवन से स्वास्थ्य को भारी नुकसान नहीं पहुंचेगा।

सर्वोच्च न्यायालय का राज्य में अवैध शराब के कारोबार की जांच पर असंतोष (Dissatisfaction over investigation of illegal liquor business) जताना सरकारी अधिकारियों को यह नसीहत होना चाहिए कि इस मामले को अदालत कितनी गंभीरता से ले रही है। न्यायालय ने राज्य में ऐसे मामलों की जांच को बचकाना करार दिया है, उसका यह भी कहना है कि नकली शराब की घटनाओं से सबसे ज्यादा पीडि़त गरीब और वंचित वर्ग के लोग होते हैं। ऐसे में सरकार अगर लाइसेंस निलंबित करने की कार्रवाई करके अपनी जान छुड़ा लेना चाहती है तो यह बेहद सामान्य कार्रवाई होगी। एक तरफ लोगों की जान जा रही है और दूसरी तरफ सरकार महज लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई करेगी तो यह भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं की रोकथाम नहीं करेगा। यही वजह है कि न्यायालय ने राज्य के आबकारी विभाग को निर्देश दिया है कि उसे दर्ज प्राथमिकियों से जुड़े पहलुओं की जानकारी दी जाए। यानी कुछ भी ऐसा जोकि अभी तक साफ नहीं हो पाया है, के संबंध में न्यायालय अब जानना चाहता है। न्यायालय की यह नाराजगी स्वाभाविक है कि अवैध शराब के उत्पादन और उसके परिवहन के कारोबार में शामिल वास्तविक दोषियों तक पहुंचने के प्रयास नहीं किए गए। नशे, अवैध शराब आदि के मामलों का सच यही होता है कि पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों की राजनीतिक दबाव में अनदेखी करता रहता है, यह तो न्यायपालिका है, जिसके सामने केस पहुंचता है तो पुलिस, प्रशासन और सरकार कुछ सक्रियता दिखाते हैं। हालांकि हाईकोर्ट के स्तर पर भी अनेक मामले नहीं सुलझ पाते। यहां से वे सर्वोच्च न्यायालय की ओर रुख करते हैं।

पंजाब में अवैध शराब (illegal liquor in punjab) बनने और उसकी तस्करी के संबंध में दर्ज मामलों को सीबीआई को सौंपने का अनुरोध हाईकोर्ट (High Court) से किया गया था, लेकिन इस याचिका को खारिज कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख करते हुए तर्क दिया था कि पंजाब में अवैध डिस्टिलरी, बॉलिंग प्लांट और अवैध शराब का कारोबार कई गुना बढ़ गया है। यहां सवाल यह उत्पन्न होता है कि आखिर यह सामूहिक जिम्मेदारी नहीं बनती है कि ऐसे अवैध कारोबार की रीढ़ तोडऩे के लिए आम आदमी, सरकार या अन्य प्रदेशों में जहां इसका धंधा जोरों से फलफूल रहा है उन सरकार के अलावा न्यायपालिका भी संजीदा (Judiciary too serious) हो। ऐसे मामलों को उनके अंतिम सिरे तक पहुंचाने की जिम्मेदारी महज शिकायतकर्ता की ही क्यों होनी चाहिए। दरअसल, यह विषय भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया है, जब साफ-साफ यह कहा गया कि राज्य के आबकारी विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की, उन राजनेताओं या पुलिस अधिकारियों पर जिनकी शह पर ऐसे धंधे संचालित होते हैं। विभाग की ओर से दिखावे के लिए ऐसी फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों पर ही कार्रवाई की गई। यह भी सच है कि अवैध शराब के मामलों में 13 एफआईआर दर्ज हैं, हालांकि इनमें से केवल तीन मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं, बाकी में जांच लंबित है। क्या विभाग यह बता पाएगा कि आखिर कब तक यह जांच पूरी कर ली जाएगी और उसके बाद आरोप पत्र दाखिल होंगे, जिन पर अदालत में सुनवाई शुरू हो पाएगी। ऐसे तो साल दर साल केस सामने आते जाएंगे, न आरोप पत्र दाखिल होंगे और न ही अदालतें कोई निर्णय सुना पाएंगी।

दरअसल, अवैध शराब का बनना आबकारी और पुलिस विभाग (Excise and Police Department) की नाकामी है। अवैध फैक्ट्री आदि बनाकर जहरीली शराब  (denatured alcohol) को बनने से रोकना आबकारी और पुलिस विभाग के लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए, हालांकि यह उनके लिए बेहद मुश्किल कार्य होता है। क्योंकि नशे और जहरीली शराब के अवैध कारोबार के पीछे राजनीतिक हाथ होते हैं, जोकि सत्ता से अपनी जुगलबंदी के बीच इसका संचालन करते रहते हैं। इस मुनाफाखोरी का फायदा तमाम जगह विभाजित होता है। ऐसे में प्रदेशों की सरकारों को इस तरह के मामलों में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी। ईमानदार सरकार का एक आदेश अवैध कारोबारियों, नौकरशाहों, राजनीतिकों के ऐसे गठजोड़ को तोड़ सकता है, जरूरत बस उस आदेश को पारित करने की है। 

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