आप ने सर्वदलीय समिति के गठन और मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति के लिए उचित रूपरेखा की मांग की
आप ने सर्वदलीय समिति के गठन और मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति के लिए उचित रूपरेखा की मांग की
पूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और एमसी पार्षदों को नामित करने के लिए एक सर्वदलीय समिति गठित करने का अनुरोध
यह उपरोक्त संदर्भित मामले पर मेरे पहले के पत्र की निरंतरता में है। चंडीगढ़ में एमसी चुनाव खत्म हो गया है। सदन को कई दिन पहले अधिसूचित किया गया था लेकिन आज तक मनोनीत पार्षदों को मनोनीत नहीं किया गया है। मीडिया से, राजनीतिक लोगों के समायोजन या किसी पार्टी के पराजित या छूटे हुए व्यक्तियों के बारे में सभी प्रकार की खबरें आ रही हैं। पार्टी नेताओं के जीवनसाथी पर भी विचार किया जा रहा है।
नियमों के अनुसार मनोनीत पार्षद हर पेशे से प्रतिष्ठित व्यक्ति होने चाहिए और उन्हें केंद्र शासित प्रदेश के विकास के लिए अपनी विशेषज्ञ सलाह देने के लिए नामित किया जाता है। ऐसे में मनोनीत पार्षद स्पेयर व्हील्स की तरह व्यवहार करने वाले व्यक्ति नहीं होने चाहिए और कोई दलगत राजनीति नहीं होनी चाहिए। या सभी दलों को उनके पास एमसी सीटों या हाल के चुनावों में मिले वोटों के आधार पर उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
वर्ष 2016 में गठित अंतिम नगर निगम में, नौ मनोनीत पार्षदों में से, भाजपा से संबद्धता वाले पांच व्यक्तियों अर्थात् श्रीमती कमला शर्मा, श्री सचिन कुमार लोहटिया, हाजी मोहम्मद खुर्शीद अली, सत प्रकाश अग्रवाल और शिप्रा बंसल को पार्षद के रूप में नामित किया गया था, इसके विपरीत अधिनियम के उद्देश्य।
सभी विवादों को शांत करने के लिए, महामहिम, अब तक प्राप्त आवेदनों में से नामांकित पार्षदों का चयन करने के लिए एक सर्वदलीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन करने का अनुरोध किया जाता है या समाचार पत्रों में विज्ञापन डाला जाना चाहिए और आवेदन आमंत्रित किए जाने चाहिए और उम्मीदवारों का चयन समिति द्वारा ही किया जाना चाहिए। इस तरह प्रशासक के कार्यालय से संबंधित सभी प्रकार की अफ़वाहों को खतम कराया जा सकता है और जो लोग सक्रिय हैं और केंद्र शासित प्रदेश के कल्याण से सम्बंधित हैं, उन्हें राजनीति से ऊपर उठ कर नामित किया जा सकता है।
इसके अलावा, पहले मनोनीत पार्षदों के पास मतदान का अधिकार था, लेकिन इस संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, माननीय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2017 में मनोनीत पार्षदों के वोटिंग अधिकार और उनके मतदान की बहाली से संबंधित मामले को हटा दिया था। 18 जनवरी, 2022 को सुनवाई के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में ये मामला लंबित हैं। मनोनीत पार्षदों को मतदान का अधिकार देने का मतलब जनता द्वारा निर्वाचित पार्षदों के पक्ष में दिए गए जनादेश की उपेक्षा करना है। आम आदमी पार्टी की मांग है कि मनोनीत पार्षदों को मतदान का अधिकार नहीं दिया जाए। बल्कि मनोनीत पार्षदों की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पहले से ही एक राज्यपाल की सलाहकार परिषद अस्तित्व में है, जिसमें प्रमुख नागरिक और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य हैं। विभिन्न विषयों पर उप समितियां भी हैं। मनोनीत पार्षद राजकोष पर एक अनावश्यक बोझ हैं और इससे बचा जा सकता है।