World Thalassemia Day : समय रहते जांच होने पर बच सकती है ज़िन्दगी
- By Kartika --
- Monday, 08 May, 2023
A Special Feature Story on World Thalassemia Day 2023
World Thalassemia Day:
चंडीगढ़ : 8 मई, 2023 : (कार्तिका सिंह/अर्थ प्रकाश):: A Special Feature Story on World Thalassemia Day
कभी किसी चोट लगने के बाद ऐसा एहसास हुआ है कि, अगर हमारा शरीर खुद से खून न बना पाता तो क्या होता? क्या सारी ज़िन्दगी हम बिना खून के ज़िंदा रह पाते? या फिर सारी उम्र हम ब्लड ट्रांसप्लांट पर ही जीवित रहेंगें?
वैसे ये सारे ख़्याल बहुत से लोगों की असल ज़िन्दगी है। वो ऐसी अवस्था में जी रहे हैं, जिस में उनका शरीर खुद से ब्लड नहीं बना पाता और बाहर से ट्रांसप्लांट के ज़रिए ब्लड चढ़ाना पड़ता है। ऐसी अवस्था को थैलेसीमिया के नाम से मेडिकल जगत में जाना जाता है। इस बीमारी के चलते हर 14 से 25 दिनों के अंदर ख़ून बाहर से ब्लड ट्रांसफूसन के ज़रिये चढ़ाना पड़ता है। अब ज़रा गौर कीजिये उन बच्चों के माता-पिता की ज़िन्दगी पर, जिनके दूसरे आम बच्चों की तरह खेल-कूद नहीं कर सकते। जिनके महीने के लगभग 10-12 दिन अस्पताल में बीतते हैं। जिनके महीने का आधे से ज़्यादा खर्च उनके बच्चे की ज़िन्दगी बचाने में खर्च होते हैं। कितने अरमानों के साथ पैदा हुए के जिगर के टुकड़ों को एक ऐसी बीमारी आ घेरती है, जिस का अभी तक कोई भी स्थाई अथवा पक्का इलाज नहीं है। आईये जानते हैं, थैलेसीमिया के बारे में, ताकि इसके परिणामों के प्रति जागरूक हो कर वक़्त इसका पता चल सके।
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक या जेनेटिक रोग है। ये शरीर में हीमोग्लोबिन को बनने नहीं देता। तथा रक्त कोशिकाओं अथवा ब्लड सेल्स को कमज़ोर तथा नष्ट कर देता है। आमतौर पर इसकी पहचान गर्भावस्था के दौरान हो जाती है। परन्तु इसके लिए टेस्ट करवाने बेहद ज़रूरी हैं, ताकि समय रहते इसका इलाज संभव हो सके। अपितु जन्म के तीन महीनों के अंदर ही थैलेसीमिया का पता चल जाता है।
मेजर अथवा माइनर थैलेसीमिया :
अगर माँ या पिता दोनों को या दोनों में से किसी एक को भी माइनर थैलेसीमिया हो तो, बच्चे के भी माइनर थैलेसीमिया के साथ पैदा होने के चान्सेस बढ़ जाते हैं। थैलेसीमिया माइनर वाले केसों में ख़तरा थोड़ा कम होता है, वही मेजर होने की सूरत में ख़तरे ज़्यादा हैं। इस वजह से आपको या आप के पार्टनर को माइनर होने की सूरत में जेनेटिक स्पेशिलिस्ट से कंसल्ट करने और उपयुक्त इलाज की ज़रुरत होती है।
थैलेसीमिया के लक्षण :
1. खून की कमी
2. पिली त्वचा
3. अपर्याप्त भूख
4. बढ़ा हुआ यकृत अथवा लीवर
भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला :
भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। कोलकाता के मशहूर डॉक्टर एम. बोस ने एक 30 महीने के बच्चे में पहली बार थैलेसीमिया रोग को डिटेक्ट किया था। इस जेनेटिक रोग में रेड ब्लड सेल्स काफी तेज़ी से कम होने लगते हैं। जिन सेल्स की उम्र आमतौर पर 120 दिन होती है, वो 20 दिन में ही ख़तम होने लगते हैं। लगभग 4 मिलियन से ज़्यादा भारतीय लोग थैलासीमिया के कैरियर हैं, वहीँ तक़रीबन 1 मिलियन से भी ज़्यादा लोग इस रोग से जूझ रहे हैं। यानी कि हर आठवां भारतीय थैलासीमिया से लड़ रहा है। भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्सों में थैलासीमिया के कई केसेस पाए जाते हैं। इसके साथ ही पंजाब में करीब 2 फीसदी आबादी इस रोग से ग्रसित है।
सिर्फ ये इलाज ही है उपलब्ध :
थैलेसीमिया का इलाज ब्लड ट्रांसफ्यूजन, केलेशन थेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट का विकल्प है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट महंगा है। इसके लिए डोनर का एचएलए मिलना भी जरूरी है। इसलिए अधिकांश मरीज ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर जीवित हैं।
- डॉ. तूलिका सेठ, एम्स, नई दिल्ली
ब्लड ट्रांसफ्यूजन के भी कई नुक़सान:
मेजर थैलेसीमिया जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है, जिससे बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। कई बार इन रोगियों में हैपेटाइटिस या फिर एचआईवी भी मिलता है। यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से भी हो सकता है।
- डॉ. वंशश्री, निदेशक, ब्लड बैंक, इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी
आयरन का कंट्रोल बेहद जरूरी:
थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने लगती है। आयरन बढ़ने से लिवर, हृदय पर दुष्प्रभाव होने लगता है। हालांकि, आयरन की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं।
- डॉ. नितिन गुप्ता, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली
थैलेसीमिया बन सकता है मौत का कारण :
कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है की अगर सही समय पर तथा सही ढंग से इस रोग का इलाज न करवाया जाये तो, ये मौत का कारन भी बन सकता है।
ज़िन्दगी के लिए एक बड़ी रक़म :
नेशनल हेल्थ मिशन की एक दशक पहले की रिपोर्ट का आंकलन करने पर ये पता चलता है, कि अगर थैलेसीमिया से ग्रस्त कोई मरीज़ 50 वर्ष की आयु तक जीवित रहता है तो, सालाना उस मरीज़ पर ब्लड ट्रांसफूजन करवाने पर करीब 2 लाख का खर्चा आएगा, यानी कि 50 वर्ष की आयु तक करीब 1 करोड़ रूपए। बढ़ती महंगाई और महंगे होते इलाज के चलते, 10 वर्षों में ये खर्च कई गुना बढ़ भी गया होगा। इस लिहाज से ज़िंदा रहने के लिए एक बड़ी रक़म चुकानी पड़ती है।
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे :
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे सबसे पहले साल 1994 में मनाया गया। थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन के अध्यक्ष अथवा संस्थापक जॉर्ज एंगल्सास ने थैलेसीमिया से जूझ रहे बच्चों, लोगों, उनके माता-पिता के सम्मान अथवा लोगों को इस रोग के बारे में अवगत करवाने तथा जागरूक करने के लिए इस दिन की शुरुआत की थी। तब से लेकर हर वर्ष ये दिन 8 मई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 के लिए इसकी थीम है : "जागरूक रहें। साझा करें। देखभाल करें।"