पंचकुला के क्लाउड नाइन अस्पताल में समय से पहले जन्मी 620 ग्राम वजन की बच्ची को मिला नया जीवन
Premature Baby Weighing 620 Grams
परिवार का विवरण
• मां का नाम: स्निग्धा
• निवास स्थान: पंचकुला
• शिशु: बच्ची
• बच्चे का जन्म के समय वजन: 620 ग्राम
• गर्भकाल: 27 सप्ताह
• अस्पताल से घर जाते समय वजन: 1.6 किलो
• जन्म तिथि – 17 फरवरी 2023
• एनआईसीयू में प्रवेश की तिथि: 17 फरवरी 2023
• डिस्चार्ज की तारीख: 15 अप्रैल 2023
क्यों असमान्य है यह मामला :
1. इस गर्भकालीन आयु में जन्म लेने वाले शिशुओं के जीवित रहने की दर बहुत कम होती है।
2. केवल 10% अपेक्षित उत्तरजीविता के विपरीत, महत्वपूर्ण सह-रुग्णताओं के बिना बच्चे को छुट्टी देना एक अतिसाधारण काम है।
कृपया ध्यान दें - बच्चे का जन्म 17 फरवरी 2023 को हुआ था। जन्म के 57 दिनों के बाद जब नवजात का वजन 1.6 किलोग्राम या 1600 ग्राम हो गया तो उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
पंचकूला, 11 मई, 2023: Premature Baby Weighing 620 Grams: पंचकुला के क्लाउड नाइन अस्पताल में 57 दिनों के सफल इलाज के बाद 620 ग्राम वजन वाली 27 सप्ताह की प्रीमेच्योर बच्ची को नया जीवन मिला है। एक असमान्य मामले में, चमत्कारिक ढंग से पंचकुला के क्लाउड नाइन अस्पताल के बालरोग विशेषज्ञों और नियोनेटोलॉजिस्ट ने स्नेहा (बदला हुआ नाम) को नया जीवन दिया, जो 17 फरवरी 2023 को समय से पहले पैदा हुई थी। वह बहुत छोटी और बहुत कम वजन की थी, लेकिन बहुत कमजोर नहीं थी। उसे अत्यंत अपरिपक्व फेफड़े, हृदय और आंत के कारण जन्म के समय श्वसन और हृदय संबंधी अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता थी। ऐसे शिशुओं के होने की संभावना 100 शिशुओं में 10 से कम होती है और 100 शिशुओं में से मात्र एक के जीवित रहने की दर होती है।
पंचकुला की स्निग्धा (बदला हुआ नाम- मां) का गर्भाशय डिडेलफिस या दोहरा गर्भाशय था, जो बेहद ही असमान्य स्थिति है, जब एक महिला के शरीर में दो गर्भाशय होते हैं। डबल गर्भाशय एक जन्मजात असामान्यता है, और प्रत्येक गर्भाशय की अपनी फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय होते है। झिल्लियों के समय से पहले फटने के कारण बच्ची का जन्म हुआ था, जिसमें गर्भाशय के अंदर का विकास बहुत कम था और जन्म के समय उसका वजन मात्र 620 ग्राम था। जन्म के एक मिनट के भीतर बच्चे को मैकेनिकल वेंटिलेशन पर रखा गया था और अपरिपक्व हृदय के कारण बच्चे को शॉक लगा था। बच्ची को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया और जन्म से 6 सप्ताह की उम्र तक इनक्यूबेटर में गर्भ जैसी देखभाल प्रदान की गई। शुरू में उसे ट्यूब के माध्यम से मां का दूध दिया गया था और जन्म के एक महीने बाद जब बच्ची का ऑक्सीजन सपोर्ट बंद हुआ, तब उसे मां का स्तनपान शुरू कराया गया। कुछ हफ्तों के बाद बच्ची से मैकेनिज्म टू सपोर्ट स्पॉन्टेनियस ब्रीदिंग सपोर्ट (CPAP ) हटा दिया गया।
वह कमजोर थी, उसकी सांसें थम रही थीं, क्योंकि वह सभी बाधाओं के खिलाफ जिंदा रहने के लिए लड़ रही थी। डॉक्टरों ने उसके विकास को बढ़ावा देने के लिए आंत्रेतर पोषण की आपूर्ति की और साथ ही साथ मां का दूध दिया। उपचार से बच्चे में सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई और 15 अप्रैल, 2023 को 1.6 किलो वजन के साथ बच्ची को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।
पंचकुला के क्लाउड नाइन अस्पताल के सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ गोयल के नेतृत्व में डॉ. साहिल बंसल जो कि सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ हैं के साथ मिलकर डॉक्टरों की एक टीम ने, बच्ची का इलाज शुरू किया था। नर्सों की एक श्रेष्ठ टीम के साथ मिलकर बच्चे के उपचार और देखभाल का प्रबंधन किया गया। 1600 ग्राम वजन के बाद बच्ची को 36 सप्ताह पूरा करने से पहले ही न्यूरोलॉजिकली स्टेट्स के आधार पर घर भेज दिया गया था।
वर्तमान में, बच्ची का वजन 1800 ग्राम से ऊपर है । वह मां के दूध का सेवन कर पा रही है और उसका विकास सही हो रहा है।
पंचकुला के क्लाउड नाइन हॉस्पिटल में कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिशियन डॉक्टर साहिल बंसल, जो बच्ची के इलाज से जुड़े थे, कहते हैं, “भारत में 700 ग्राम से कम वजन के साथ समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की जीवित रहने की दर 2 प्रतिशत से भी कम है।
यह मामला बहुत असाधारण और असामान्य है, क्योंकि सबसे नन्ही और बेहद कम वजन के साथ वह सभी बाधाओं से लड़ी, जैसे इंट्रावेंट्रिकुलर हेमरेज (आईवीएच), श्वसन संकट सिंड्रोम (आरडीएस), नेक्रोटाइज़िंग एंटरोकोलाइटिस (एनईसी)। ये सभी बीमारी या स्थिति जानलेवा हैं, क्योंकि ऐसी परिस्थितियां नवजात के मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक प्रभावित करती हैं।
इस मामले में नवजात बच्ची को सेप्सिस (संक्रमण), रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी) भी था और माता-पिता के सहयोगात्मक व्यवहार के कारण उपचार के लिए अच्छा माहौल मिला”।
जन्म के समय गंभीर रूप से बीमार, जीवित रहने की संभावना एक प्रतिशत से भी कम...इस बच्ची की कहानी प्रेरणादायक है और हमें विश्वास दिलाती है कि सही दिशा में मेहनत हो तो सब कुछ संभव है।
समय पर इलाज और हमारी टीम पर बच्चे के माता-पिता के भरोसे के साथ, हम बच्ची की जान बचाने में सफल रहे। बच्ची को एनआईसीयू में 57 दिनों तक रहने के बाद 1.6 किलोग्राम वजन पर छुट्टी दे दी गई। फॉलो-अप में बच्ची का वजन बढ़ा हुआ पाया गया और उसका सही ढंग से विकास हो रहा है।
प्रीटर्म शिशुओं के चिकित्सा प्रबंधन से संबंधित मामले पहले भी सामने आए हैं, लेकिन इस मामले में सफल परिणाम का पूरा श्रेय अस्पताल की स्त्री रोग, बाल रोग और भ्रूण चिकित्सा में व्यवस्थित नैदानिक विशेषज्ञता और क्लाउड नाइन अस्पताल में उन्नत चिकित्सा देखभाल को हीं जाता है।
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