A new story of relations written between India and Maldives

Editorial: भारत-मालदीव के बीच लिखी गई संबंधों की नई दास्तां

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A new story of relations written between India and Maldives

A new story of relations written between India and Maldives: भारत विरोधी अभियान से मालदीव की सत्ता में आए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अगर पांच दिन की भारत यात्रा पर हैं, तो इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत ने मालदीव को कितना महत्व दिया है, वहीं मालदीव ने भी इस बात को भली भांति समझ लिया है कि एशिया महाद्वीप में अगर कोई उसका सच्चा मित्र हो सकता है तो वह भारत ही है। भारत-मालदीव के संबंधों में इस नए पड़ाव का अभिप्राय बीते कुछ समय के दौरान दोनों देशों के बीच बयानों की तल्खी के बाद पैदा हुए संकट के मद्देनजर समझा जा सकता है। मालदीव के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्ष्यद्वीप यात्रा के दौरान अभद्र टिप्पणियां की थीं, जिनका भारत ने कड़ा प्रतिरोध किया था।

इसके बाद मालदीव ने चीन की ओर कदम बढ़ाए थे और चीन की यात्रा के बाद राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत के संबंध में काफी तीखी बातें कहकर इस मामले को भडक़ाने की कोशिश की थी। हालांकि भारत हमेशा से भटके हुओं को रास्ता दिखाने वाला देश रहा है और भारत की विदेश नीति का लोहा है कि उसने मालदीव के बिगड़े स्वरों को न केवल साधा है, अपितु राष्ट्रपति मोइज्जू को भारत की यात्रा करवा कर उनके साथ विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।  

गौरतलब है कि मालदीव ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता, भारतीय यूपीआई को स्वीकार करने,भारत को नया वाणिज्य दूतावास खोलने की अनुमति देने, भारत की मदद से अपनी रक्षा जरूरतों को और सक्षम बनाने आदि के संबंध में समझौते किए हैं। यह सभी समझौते भारत के लिए चीन से सामरिक महत्व की दृष्टि से अत्यंत अहम हैं। चीन की रणनीति भारत के आसपास के छोटे देशों को अपने कर्ज जाल में फंसा कर उनका भारत के खिलाफ उपयोग करने की रही है। उसकी इस कूटनीति में पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे देश फंसते आ रहे हैं, लेकिन मालदीव ने इससे खुद को बचाते हुए जिस प्रकार भारत के साथ चलने पर सहमति जताई है, वह न केवल मालदीव की जनता अपितु भारत के लोगों के भी हित में है, और इसका दूरगामी फायदा होने वाला है।  

निश्चित रूप से यह घटनाक्रम मालदीव और उन सभी क्षेत्रीय देशों के लिए संदेश है, जोकि चीन की विस्तारवादी नीति से प्रेरित होकर भारत विरोध की नींव को पुख्ता करने में जुटे हैं। हालांकि भारत की विदेश नीति हमेशा से अपने पड़ोसी देशों के प्रति सम्मान और सहयोग की रही है। यह समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि बांग्लादेश में भारत हितैषी प्रधानमंत्री का तख्ता पलटा जा चुका है और नेपाल में भी भारत विरोधी राजनेता को फिर से देश की सत्ता को संभालने का अवसर मिला है। पाकिस्तान वह देश है, जो कि रात-दिन भारत विरोध की आग में जलता रहता है। बीते कुछ समय के दौरान श्रीलंका के स्वर भी भारत के प्रति मंद हुए हैं, लेकिन चीन जिस प्रकार से अपने मंसूबों को आगे बढ़ा रहा है, उसमें यह विश्वास कर लेना बहुत जल्दी होगी कि भारत के प्रति इन देशों में कोई विरोधी विचार या नीति न पनपे। इसके बावजूद मालदीव की ओर से जिस प्रकार खुलकर भारत के साथ अपने संबंधों की वास्तविकता को स्वीकार किया गया है, वह कूटनीतिक लिहाज से बड़ी सफलता है।

जब देशों के आपसी संबंधों की बात होती है तो सब्र और समय की टिक-टिक को महसूस करना ही सबसे चुनौतीपूर्ण होता है। बांग्लादेश की जनता को आजादी भारत ने दिलाई थी, उस समय जिन लोगों ने बांग्लादेश की इस आजादी के लिए काम किया, सोचा तक नहीं था कि एक दिन उन्हें इस प्रकार लज्जित किया जाएगा। हालांकि बांग्लादेश के इन कठिन हालात के बावजूद भारत ने खुद को मर्यादित रखते हुए टिप्पणी की हैं और उसकी संप्रभुता को कायम रखा है। इसे भारतीय कूटनीति का सबसे कठिन दौर कहा जाएगा कि जिस देश के नागरिक भारत विरोध की ज्वाला से ग्रस्त हों और भारत से मित्रता रखने पर ही अपने देश की प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों, राजनेताओं को देश छोड़ने को मजबूर कर रहे हों या फिर उनकी हत्या कर दे रहे हों, तब भी वह देश न केवल उसके राजनयिकों को शरण दे रहा है, अपितु उस अशांत देश के साथ सहानुभूति रखते हुए उसे शांत और स्थिर हो जाने को प्रेरित कर रहा है। बांग्लादेश की स्थिरता भारत के लिए बेहद आवश्यक है और यही वजह है कि जैसे ही यहां कुछ घटता है तो भारत की चिंताएं प्रबल हो जाती हैं।

मालदीव के बदले सुरों की वजह देश के समक्ष खड़ी हुई आर्थिक चुनौतियां हैं। मालदीव में भारत समर्थक बड़ी तादाद में हैं, लेकिन उनकी मुश्किल यही है कि इस समय वहां ऐसी सरकार है जोकि भारत विरोध के नाम पर ही सत्ता में आई थी। पर यह सभी को विदित है कि चीन के साथ दोस्ती का मतलब क्या है और भारत के साथ अगर कोई देश संबंधों को आगे बढ़ाता है तो उसे क्या हासिल हो सकता है। भारत कभी किसी देश की आजादी को छीनने की कोशिश नहीं करता है, हालांकि यह भी सच है कि कुटिलों को उनकी ही भाषा में समझाया जाना आवश्यक होता है और मोदी सरकार ने यही किया है। 

 

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