Why the question on electoral reforms

चुनाव सुधार पर सवाल क्यों

चुनाव सुधार पर सवाल क्यों

Why the question on electoral reforms

देश में सुधारीकरण का अभियान चला रही मोदी सरकार का नया कार्य फिर विवाद की भेंट चढ़ रहा है। आधार से मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने का कानून बनाने जा रही सरकार ने चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक 2021 लोकसभा से तो पारित करा लिया, लेकिन अब राज्यसभा में इसे लेकर हंगामा निश्चित है। सरकार बता रही है कि यह संशोधन क्यों जरूरी है और विपक्ष पूछ रहा है कि आखिर इसकी जरूरत क्या है? सरकार का तर्क है कि ऐसा करके वह फर्जी मतदान और गलत तरीके से मतदाता बनने के रास्ते बंद करना चाहती है।

इस कानून के बाद चुनावों में पारदर्शिता आएगी। इसके अलावा 18 साल की उम्र पूरी करने वालों को मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए अब सालभर में चार मौके मिलेंगे। अभी होता यह है कि अगर कोई युवा 18 साल की उम्र पूरी कर लेता है तो उसे अगले साल यानी एक जनवरी तक का इंतजार करना होता था। इस कानून के बाद अब उनकी उम्र की गणना जनवरी के साथ एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्टूबर से होगी। देखा जाए तो यह निश्चित रूप से सही फैसला है और इससे देश की चुनावी प्रक्रिया में बड़ा सुधार होगा। हालांकि विपक्ष की आशंकाएं क्या हैं, उन्हें भी समझा जाना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि विपक्ष एकबार फिर विरोध के लिए विरोध की राजनीति पर उतारू है। विपक्ष ने जो भूमिका कृषि कानूनों के संबंध में निभाई और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अदा की वही अब वह चुनाव सुधार और युवतियों की शादी की उम्र 18 से 21 करने को लेकर निभा रहा है। आखिर विपक्ष बदलाव से इतना क्यों डरता है, और उसे केंद्र सरकार के हर कार्य में इतना संदेह क्यों दिखता है।

सरकार का तर्क है कि मतदाता सूची के साथ आधार नंबर को अटैच कराने की अनिवार्यता नहीं होगी। बेशक, ऐसा करके सरकार ने एक विकल्प रखा है, संभव है बाद में इसे अनिवार्य भी कर दिया जाए। हालांकि फर्जी मतदान रोकने के लिए ऐसे कदम उठाये जाने आवश्यक हैं। बेशक, आजकल चुनाव काफी कुशलता से और पारदर्शी तरीके से पूर्ण कराए जा रहे हैं, लेकिन एक समय जब बैलेट पेपर से वोटिंग होती थी, चुनावों के नाम पर ऐसी धांधली चलती थी कि लोकतंत्र शर्मसार हो जाता था। चुनावों के वक्त हिंसा आम बात थी और फर्जी मतदान की घटनाएं भी बहुतायत में होती थी। आज का वक्त हर चीज को नई नजर से देखने का है, ऐसे में चुनाव सुधारों की तरफ और ज्यादा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। मालूम हो, विपक्ष ने विधेयक को कानून विरुद्ध और जल्दबाजी में लिया गया फैसला बताया है। उसकी दलील यह भी है कि इसे स्थायी समिति को भेजा जाए। हालांकि सरकार ने सदन को बताया है कि विधेयक को स्थायी समिति के सुझाव के बाद ही लाया गया है। इस दौरान स्थायी समिति के सुझावों को पढक़र सुनाया गया। इसके अलावा सरकार ने चुनाव आयोग और राज्य सरकारों के साथ व्यापक चर्चा की है। सरकार ने यह भी कहा है कि यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ नहीं है।

गौरतलब है कि मतदाता सूची में रजिस्ट्रेशन तभी किया जाता है, जब कोई ऐसा व्यक्ति आवेदन करता है, जोकि वोटर के रूप में रजिस्टर्ड होने के योग्य है। इस विधेयक में एक प्रावधान है, जिसके तहत नया आवेदक पहचान के मकसद से एप्लीकेशन के साथ अपनी इच्छा से आधार नंबर दे सकता है। कोई भी एप्लीकेशन आधार नंबर न होने की वजह खारिज नहीं किया जाएगा। अब सवाल यह है कि आखिर सरकार आधार से मतदाता पहचान पत्र को जोडक़र कैसे फर्जी मतदान को रोकेगी। ऐसे में सरकार का तर्क है कि मतदाता सूची के साथ आधार को जोडऩे से चुनावी डेटाबेस मैनेजमेंट में एक बड़ी समस्या का समाधान होगा, जिसमें अलग-अलग स्थानों पर एक ही व्यक्ति का एक या उससे ज्यादा बार नामांकन है। देशभर में आधार एक ही है, जोकि पूरी आयु एक ही रहेगा। ऐसे मतदाताओं की संभावना को दूर किया जा सकता है, जिनके नाम एक से ज्यादा मतदाता सूची में या एक ही मतदाता सूची में एक से अधिक बार आते हैं। इस कानून के बाद यह भी होगा कि एक बार आधार लिंक हो जाने के बाद मतदाता सूची डेटा सिस्टम में जब भी कोई व्यक्ति नए रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करता है, तो पिछले रजिस्ट्रेशन को तुरंत सतर्क कर देगा। यानी किसी नई जगह पर जाकर भी कोई मतदाता अगर नया चुनाव पहचान पत्र बनवाने की कोशिश करेगा तो सिस्टम अलर्ट करेगा और इस तरह फर्जी मतदाता बनने से रोका जा सकेगा।

विपक्ष का काम सरकार को सचेत करना है, लेकिन देश की जनता को गुमराह करने का तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। बीते कुछ समय से विपक्ष की कुंठा बार-बार बाहर आ रही है। कृषि कानूनों का एक सच यह भी है कि कोई भी सरकार आएगी अगर वह ऐसे सुधार करेगी तो उसकी बुनियाद यही कानून बनेंगे। लेकिन न किसानों से इसे समझा और न ही विपक्ष ने उन्हें समझने दिया। अब फिर यही आलाप हो रहा है। विपक्ष इसे उत्तर प्रदेश चुनाव से जोडक़र देख रहा है। एक समय बैलेट पेपर की बजाय ईवीएम से वोटिंग पर भी विपक्ष ने खूब हायतौबा की थी, लेकिन अब वही ईवीएम बेहतर चुनाव प्रबंधन का आधार बन गई हैं। अब एकदिन पहले हुए मतदान का परिणाम अगले दिन लिया जा सकता है। जाहिर है, आशंकाएं अपनी जगह होती हैं, लेकिन उन आशंकाओं को तार्किक तरीके से खत्म किया जा सकता है। कांग्रेस एवं विपक्ष को अपनी राजनीति के लिए ऐसे कानूनों का विरोध नहीं करना चाहिए जोकि देश के लिए मील का पत्थर साबित होंगे।