राकेश टिकैत के इस बयान से मची खलबली, जानिए चुनाव लड़ने को लेकर क्या कहा

राकेश टिकैत के इस बयान से मची खलबली, जानिए चुनाव लड़ने को लेकर क्या कहा

राकेश टिकैत के इस बयान से मची खलबली

राकेश टिकैत के इस बयान से मची खलबली, जानिए चुनाव लड़ने को लेकर क्या कहा

चंडीगढ़। तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब पंजाब में विधानसभा के चुनाव को देखते हुए किसान संगठनों पर खुद चुनाव लडऩे का दबाव बढ़ गया है, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा 32 किसान संगठन और अन्य संगठनों में चुनाव मैदान में उतरने के मुद्दे पर दुविधा बनी हुई है।

ऐसा इसलिए है, क्योंकि किसान संगठनों में कई गुट ऐसे हैं, जिनके संविधान में चुनाव लडऩा शामिल नहीं है। इनकी रणनीति एक प्रेशर ग्रुप बनाकर राजनीतिक पार्टियों से अपनी बात मनवाने तक ही सीमित है। वहीं, कुछ किसान संगठन ऐसे हैं, जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े हुए हैं। मसलन वामपंथी दलों के अपने-अपने संगठन इसमें शामिल हैं। इसी तरह शिरोमणि अकाली दल को भारतीय किसान यूनियन का लक्खोवाल ग्रुप सपोर्ट करता है, जबकि भारतीय किसान यूनियन का मान गुट कांग्रेस को समर्थन देता है। कई संगठन ऐसे हैं, जिनमें भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) भी शामिल है, जो किसी पार्टी का समर्थन नहीं करता, लेकिन उसका पंजाब में अच्छा खासा आधार है।

चूंकि तीन कृषि कानून विशुद्ध रूप से खेती का मसला था। इसलिए इस लड़ाई में विभिन्न विचारधाराओं के संगठन भी संयुक्त किसान मोर्चा बनाकर एक मंच पर आ गए, लेकिन राजनीति में उतरना अलग विचारधारा की बात है।भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने तो स्पष्ट तौर पर कहा है कि चुनाव लडऩा किसानों का काम नहीं है। हम केवल अपने एजेंडे पर ही कायम रहकर लड़ाई लडऩे के इच्छुक हैं। इसी तरह पंजाब की सबसे बड़ी किसान यूनियन भारतीय किसान यूनियन के प्रधान जोगिंदर सिंह उगराहां ने भी कहा है कि उनके तो संविधान में ही चुनाव लडऩा शामिल नहीं है। वह प्रेशर ग्रुप बनाकर ही अपने मसले हल करवाना चाहते हैं।

इन सभी मुद्दों को लेकर नई पीढ़ी के नेता इस बात पर राजी हैं कि अगर अपनी सरकार हो तो वे मसले हल किए जा सकते हैं, जिनके लिए किसान लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी तो काफी समय से इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि किसानों को चुनाव लडऩा चाहिए। भारतीय किसान यूनियन डकौंदा के नेता कमलजीत सिंह का मानना है कि किसानों को राजनीति में नहीं उतरना चाहिए, बल्कि उन्हें इसी तरह का प्रेशर ग्रुप बनाकर राजनीतिक पार्टियों को अपने एजेंडे पर काम करने को मजबूर किया जाना चाहिए। अभी तक किसान संगठन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत ने 12 दिसंबर को मीडिया से बातचीत में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में योगी सरकार के विरोध के सवाल पर कहा था कि अभी चुनाव अचार संहिता लगने दो और किसानों को घर पहुंच जाने दो, उसके बाद तय करेंगे कि क्या करना है। उत्तर प्रदेश सरकार भी अपना काम करे।

बीते सोमवार को संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव ने करनाल में कहा था उत्तर प्रदेश में भाजपा का विरोध किया जाएगा। पंजाब को लेकर अभी फैसला नहीं किया। हालांकि, वहां किसी भी किसान नेता को संयुक्त किसान मोर्चा के नाम पर चुनाव लड़ाना सही नहीं होगा।

पंजाब यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर मोहम्मद खालिद का कहना सही है कि कृषि कानूनों को लेकर लड़ाई लडऩा एक बात है और पार्टी बनाकर राजनीति में उतरना दूसरी बात है। जब किसान केवल अपने मसलों को लेकर लड़ाई लड़ते हैं, तब बात केवल किसानी की होती है, लेकिन राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में उतरते समय सभी वर्गों का उसी तरह ख्याल रखना होता है, जैसे किसान अपने किसानी मसलों को लेकर लड़ाई लड़ते हैं। यह इतना आसान नहीं होता।