सुप्रीम कोर्ट: अपराध स्थल की वीडियोग्राफी के मोबाइल ऐप का करें परीक्षण, विशेषज्ञों को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट: अपराध स्थल की वीडियोग्राफी के मोबाइल ऐप का करें परीक्षण, विशेषज्ञों को निर्देश
नई दिल्ली। अपराधों की जांच में तकनीक के इस्तेमाल के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने अपराध स्थलों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे मोबाइल एप का विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण कराने का निर्देश दिया है। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने इस बात की जांच करने पर सहमति जताई कि क्या किसी अपराध स्थल की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी कराई जा सकती है और यह अदालत में साक्ष्य के रूप में किस तरह स्वीकार्य बन सकती है।
अदालत ने कहा कि जांच में इस्तेमाल के लिए इन सभी तकनीकी नवाचारों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अपराध स्थल की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी और एप के जरिये उनकी अपलोडिंग पूरी तरह टैंपर-फ्री और पूरी तरह इंक्रिप्टेड हो। पीठ ने कहा कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी और उनकी एप के जरिये अपलोडिंग समसामयिक व जीपीएस लोकेशंस के साथ होनी चाहिए। इन मानकों से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि एकत्रित और अपलोडेड सामग्री आपराधिक मुकदमे में साक्ष्य की तरह स्वाभाविक रूप से विश्वसनीय है।
पीठ ने 18 नवंबर को दिए निर्देश में कहा, 'किसी दृढ़ निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हम चाहते हैं कि दक्षिण दिल्ली जिले के 15 पुलिस थानों में दिल्ली पुलिस द्वारा लागू प्रोटोटाइप का विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण किया जाए। अगर विकसित किया गया मोबाइल एप विशेषज्ञों को फुलप्रूफ और विश्वसनीय लगे तो अदालत को कोई निर्देश जारी करने से पहले उनकी रिपोर्ट से बड़ी मदद मिलेगी।'
कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस में कम से कम तीन उच्च पदस्थ अधिकारी, जो विशेषत: राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से हों, इस तरह के परीक्षण के विशेषज्ञों के रूप में जुड़े। ये विशेषज्ञ किसी भी साइबर अपराध विशेषज्ञों या उन लोगों की सेवाओं को शामिल करने के लिए स्वतंत्र हैं, जो इंटरनेट और वर्चुअल प्लेटफार्मों में अच्छी तरह से वाकिफ हैं।