पंजाब में चुनाव लडऩे वाले किसान नेताओं को झटक, देखें किसने दिखाई आंखें
- By Vinod --
- Saturday, 01 Jan, 2022
Shock to the farmer leaders who contested the elections in Punjab, see who showed their eyes
चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव लडऩे वाले किसान नेताओं को बड़ा झटका लगा है। भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा) और बीके (लक्खोवाल) ने चुनाव लडऩे से इन्कार कर दिया है। उन्होंने चुनाव लडऩे वाले 22 किसान संगठनों के समर्थन से भी इन्कार कर दिया है। वहीं, चुनाव लडऩे के लिए संगठन बनाने वाले बलबीर राजेवाल और गुरनाम चडूनी को एमएसपी कमेटी में भी शामिल नहीं किया जाएगा। स््यरू नेता राकेश टिकैत ने इसकी पुष्टि की है।
वहीं, चुनाव लडऩे वाले 22 किसान संगठनों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा भी 15 जनवरी की मीटिंग में फैसला लेगा। यह किसान नेता अब मोर्चे का हिस्सा नहीं रहेंगे। हालांकि उनकी यूनियन दूसरे प्रतिनिधि के जरिए आंदोलन में रहेगी या नहीं, इस पर भी अंतिम फैसला लिया जाएगा।
दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन में पंजाब के 32 किसान संगठन शामिल थे। इनमें से 22 किसान संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा बनाया है। जिसके जरिए उन्होंने पंजाब विधानसभा की 117 सीटों पर लडऩे का ऐलान कर दिया है। उस वक्त इन नेताओं ने दावा किया था कि भारतीय किसान यूनियन डकौंदा और लक्खोवाल समेत 3 यूनियनों ने उन्हें समर्थन दिया है। वह अपने संविधान में फेरबदल कर खुलकर साथ आएंगी। हालांकि अब इन 2 यूनियनों ने इससे इन्कार कर दिया है।
भाकियू एकता डकौंदा के प्रदेश उपाध्यक्ष गुरदीप सिंह रामपुरा ने कहा कि हम न चुनाव लड़ेंंगे और न ही किसी को समर्थन देंगे। वह संघर्ष के जरिए मुद्दे हल करवाते रहेंगे।
भाकियू लक्खोवाल के नेता अजमेर सिंह लक्खोवाल ने कहा कि उनकी यूनियन न चुनाव लड़ेगी और न किसी को उनकी तरफ से समर्थन दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों की कई मांगें अभी बाकी हैं। ऐसे में राजनीतिक लड़ाई से इसमें परेशानी हो सकती है।
पंजाब में किसान दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन के बड़े चेहरे बलबीर राजेवाल की अगुवाई में चुनाव लड़ रहे हैं। किसान संगठनों ने राजेवाल को सीएम चेहरा घोषित किया है। किसानों की नजर पंजाब में अर्बन और सेमी अर्बन क्षेत्र वाली 77 सीटों पर है। जहां किसानों का वोट बैंक प्रभावी है। हालांकि 32 में से पहले ही 7 संगठनों ने स्पष्ट इन्कार कर दिया है। जिन 3 किसान संगठनों के समर्थन का वह दावा कर रहे थे, वह भी किनारा करने लगे हैं। ऐसे में चुनाव के लिए किसानों की चुनौती बढ़ सकती है।