Poisonous liquor in Bihar

बिहार में जहरीली शराब

Editorial

Poisonous liquor in Bihar

बिहार में जहरीली शराब का कहर एक बार फिर टूटा है। राज्य में बीते विधानसभा चुनाव के दौरान जहरीली और अवैध शराब की रोकथाम के पुरजोर दावे किए गए थे, लेकिन सत्ताधारी जनता दल यू और भाजपा गठबंधन की सरकार के वादे और दावे हवा होते दिख रहे हैं। दिवाली के पर्व की खुशियों पर अनेक घरों में कफन डल गए वहीं अब छठ पूजा पर भी शोक का साया है। राज्य में पिछले 15 दिनों के अंदर 40 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।  गोपालगंज और पश्चिमी चंपारण में पिछले दो दिन में ही जहरीली शराब पीने से 24 लोगों की मौत हो चुकी है। अब देशभर का मीडिया जब इस मामले पर फोकस कर रहा है और राज्य सरकार से जवाबतलबी हो रही है तो मुख्यमंत्री ने कार्रवाई के आदेश दिए हैं। हालांकि कैमरों के सामने उनके बयान अब तक ऐसे थे कि लोग ऐसी शराब पीते ही क्यों हैं। जाहिर है, शराब माफिया जहरीली शराब बनाकर अपनी तिजौरियां भरता है और यह राजनीतिक संरक्षण के बगैर संभव नहीं है। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह बार-बार चैकिंग कराए और उन लोगों पर निगाह रखे जोकि इस धंधे को अंजाम देते हैं। आखिर एक सरकार का प्रमुख दायित्व अपने नागरिकों का कल्याण और उनकी मुश्किलों को दूर करना है। तब राजनीतिक ऐसे बयान देकर कैसे अपनी जिम्मेदारी से दूर हो सकते हैं। जहरीली शराब के मामले में उत्तर भारत में लगभग सभी राज्य बदनाम हैं। बिहार सरकार के एक मंत्री का बयान है कि पंचायत चुनाव के लिए जहरीली शराब बन रही है, अब ऐसे मंत्री से क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि तब सरकार क्यों बैठे-बैठे सब देख रही है।

बिहार में शराबबंदी लागू है, बावजूद इसके इसे पूरी तरह से अमल में नहीं लाया जा सका है। बीते विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन ने जहां शराबबंदी के वादे को पूरा करने का दावा किया था वहीं विपक्ष ने सत्ता पक्ष के लोगों पर ही शराब की अवैध तस्करी कराने के आरोप मढ़े थे। अब मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने के लिए उच्च स्तरीय बैठक की जाएगी। उनका यह भी कहना है कि प्रशासन के जो लोग जहरीली शराब बनाने वाले सिंडिकेट की मदद करते हैं, उन पर भी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि इस दौरान राजनीतिकों का जिक्र उन्होंने नहीं किया। अब राजद नेता तेजस्वी यादव अगर यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार के मंत्रियों के इशारे पर ही यह हो रहा है तो सत्ताधारी गठबंधन इसे हार की कुंठा बता रहा है। राजद नेता का आरोप है कि राज्य में 20 हजार करोड़ की अवैध शराब की तस्करी हो रही है। अब यह आंकड़ा उन्हें कैसे मिला है, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन बिहार की विडम्बना है कि यहां ऐसे अवसरों पर ठोस कार्रवाई के बजाय आरोप-प्रत्यारोप ही ज्यादा चलते हैं। पूर्ण शराबबंदी मौजूदा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में छलावा है। सरकार को चाहिए कि वह शराबबंदी कानून की ही समीक्षा न करे अपितु इसकी भी करे कि शराबबंदी करने से ज्यादा फायदा हो रहा है और अगर शराबबंदी को खत्म कर दिया जाए तो क्या फायदा हो सकता है। कम से कम जहरीली शराब बनना और बिकना तो बंद होगी। शराबबंदी का औचित्य शराब पीने से रोक कर समाज की भलाई करने का है, लेकिन अगर यह मौतों का सबब बन जाए तो फिर इस पर पुनर्विचार जरूरी है।  

बिहार में आंकड़े साक्षी हैं कि शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक यहां एक सौ 28 मौतें हो चुकी हैं, बताया गया है कि इनमें से 93 मौतें इसी वर्ष हुई हैं। बावजूद इसके सरकार का रवैया टरकाऊ है, इसका अभिप्राय यह भी है कि राजनीतिक फायदे के लिए और सुशासक की इमेज बनाने के लिए शराबबंदी तो लागू कर दी गई लेकिन उसका पालन कराने की जिम्मेदारी सरकार नहीं उठा रही। भारत में शराब एक बेहद लग्जरी पदार्थ है, शराब का नाम सामने आते ही इसके शौकीनों की बांछें खिल जाती हैं, हालांकि पर्वतीय देशों और राज्यों में शराब एक पेय पदार्थ है, जिसे मौसम और दूसरी शारीरिक जरूरतों के लिए लेना पड़ता है। ऐसे में भारत में शराब पर पाबंदी लगने के बाद इसके चाहवानों में बेचैनी होना लाजिमी है। बीते वर्ष लॉकडाउन के दौरान जब शराब की दुकानें भी बंद थी तो ऐसे लोगों को भारी तकलीफ से गुजरना पड़ा। हालांकि जब लॉकडाउन में ढील दी गई और शराब की दुकानों को खोल दिया गया तो मीलों लंबी लाइनें इसके खरीदारों की लग गई। ऐसे में अगर शराब पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी जाए तो लोग उन जरियों की तलाश करते ही हैं, जो कि अनुचित हैं।

हरियाणा में बंसीलाल सरकार ने भी पूर्ण शराब बंदी की थी, लेकिन यह असफल प्रयोग था और बाद में सरकार को इस निर्णय को वापस लेना पड़ा था। उस समय विपक्ष का आरोप था कि सरकार के ही मंत्री और विधायक शराब की तस्करी कराते हैं। हालांकि यह भी सच है कि राजनीतिक चाहे वे किसी भी दल से जुड़े रहे हों, ऐसे अवसरों का भली भांति इस्तेमाल करते हैं। बीते वर्ष हरियाणा में लॉकडाउन के दौरान गोदामों से शराब के गायब होने का सच अब भी उजागर नहीं हो सका है। राजस्व विभाग का आरोप है कि पुलिस की शह में ऐसा किया गया वहीं गृह विभाग के मुखिया मंत्री ने दावा किया कि राजस्व विभाग के अधिकारियों ने ऐसा किया। शराब का नशा सिर चढकऱ बोलता है, लेकिन इसका कारोबार खुद बेहद नशीला है, ऐसे में सरकारों को अतिरिक्त रूप से सावधान होकर इसे हैंडिल करने की जरूरत होती है। बिहार सरकार को अपने यहां जहरीली शराब तो बंद करवानी ही चाहिए, उसे शराबबंदी के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए।