झंझारपुर कोर्ट के एडीजे की पिटाई मामले में पटना हाईकार्ट हुआ सख्त
झंझारपुर कोर्ट के एडीजे की पिटाई मामले में पटना हाईकार्ट हुआ सख्त
लोडेड पिस्टल के साथ जज के चैंबर में कैसे घुसे पुलिस अधिकारी ?
मुकेश कुमार सिंह
पटना (बिहार) : बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर कोर्ट के एडीजे अविनाश कुमार के साथ की गयी मारपीट की घटना के मामले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस राजन गुप्ता की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान बंद लिफाफा में रिपोर्ट सौंपी गई। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा कि आखिर पुलिस अधिकारियों ने लोडेड हथियार के साथ एक जज के चैम्बर में प्रवेश कैसे किया ? कोर्ट ने इस मामले में सहयोग के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त करने का निर्णय लिया है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य की पुलिस दोनों पक्षों के मामलों को निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से अनुसंधान करने में सक्षम है। तत्काल प्रभाव से दोनों पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है। एडवोकेट जनरल ने कहा कि यदि चाहे तो कोर्ट सीबीआई समेत किसी भी बड़ी जाँच एजेंसी से इस मामले की जाँच करवा सकता है। गौरतलब है कि मधुबनी के झंझारपुर कोर्ट के एडीजे अविनाश कुमार के द्वारा बीते 18 नवंबर, 2021 को भेजे गए पत्र पर, हाईकोर्ट ने 18 नवंबर को ही स्वतः संज्ञान लिया था। साथ ही, कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव, राज्य के डीजीपी, गृह विभाग के प्रधान सचिव और मधुबनी के पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी किया था। दीगर बात है कि जिला जज, मधुबनी के द्वारा भेजे गए रिपोर्ट के मुताबिक घटना के दिन तकरीबन 2 बजे दिन में, एसएचओ गोपाल कृष्ण और घोघरडीहा के पुलिस सब इंस्पेक्टर अभिमन्यु कुमार शर्मा ने एडीजे अविनाश कुमार के चैम्बर में जबरन घुस कर, पहले तो गाली-गलौज की गई। एडीजे के द्वारा विरोध किये जाने पर, दोनों पुलिस अधिकारियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार और हाथापाई की। इतना ही नहीं, दोनों पुलिस अधिकारियों ने उन पर हमला करते हुए मारपीट की। पुलिस अधिकारियों ने ऊना सर्विस रिवॉल्वर निकाल कर, एडीजे पर आक्रमण करना चाहा। पटना हाईकोर्ट ने 18 नवंबर को कहा था कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि यह प्रकरण न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है। मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के डीजीपी को अगली सुनवाई में भी उपस्थित रहने को कहा गया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 01 दिसम्बर 2021 को होगी। निसन्देह, यह मामला बेहद गम्भीर है। जिस जज के जिम्मे, सच-झूठ को परखने और कानून के दायरे में किसी भी आरोपी को फाँसी की तक की सजा सुनाने और रिहा करने का पावर है, उनकी जान को पुलिस से खतरा है।