पाकिस्तान : जिरगा का फैसला इस्लामिक विधिशास्त्र को दरकिनार नहीं कर सकता
Jirga verdict cannot set aside
Jirga verdict cannot set aside: इस्लामाबाद। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि न तो न्यायपालिका और न ही जिरगा इस्लामिक विरासत कानून का विकल्प हो सकता है और 'दीन-ए-इलाही' (दैवीय धर्म) ने सैंकड़ों वर्ष पहले ही मामले को सुलझा दिया था।
न्यायमूर्ति काज़ी फ़ैज़ ईसा ने कहा कि "इस्लाम में विरासत का कानून अंतिम है और इसे कोई अदालत या कोई जिरगा इसे बदल नहीं सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि 13 जून, 2004 की पंचायत के माध्यम से संपत्ति के वितरण के बारे में वर्तमान मामले को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसमें यह बात कही गई थी कि जिरगा इस्लामी शरिया कानूनों से ऊंचा नहीं है।
उच्चतम न्यायालय का यह टिप्पणी स्वात में संपत्तियों के वितरण पर विवाद के संबंध में आई है। इसके तहत समर बाग में में भी मौजूद कुछ जमीनों के बंटवारे को लेकर कानूनी वारिसों में रंजिश है। इस पर सुनवाई के लिए वारिसों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। मामले पर उच्चतम न्यायालय की पीठ के दो न्यायाधीशों के समक्ष सुनवाई की गई, जिसमें जस्टिस याह्या अफरीदी भी शामिल थे।
गौरतलब है कि हबीब खान की बेटी हयात बीबी की याचिका पर यह फैसला आया है, जिनकी सन् 1986 में मृत्यु हो गई थी। वरिष्ठ वकील दिल मोहम्मद अलीजई ने हबीब खान की तीसरी पत्नी गुल सजा बेगम का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने दावा किया कि उनके मृत पति ने उन्हें समर बाग स्थित पूरी संपत्ति हक मेहर (दहेज राशि) के रूप में भेंट में दी थी।
अदालत ने पेशावर उच्च न्यायालय के 18 जनवरी, 2016 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने 15 जनवरी, 2015 को एक दीवानी न्यायाधीश के दिए फैसले को सुरक्षित रखा था। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि हबीब खान की संपत्ति का समान वितरण उनकी दो पूर्व पत्नियों के बीच समान रूप से करना चाहिए।
नए आदेश के मुताबिक, जायदाद का बंटवारा आठ कानूनी वारिसों के बीच करना होगा, जिनमें से ज्यादातर हबीब खान की दोनों पत्नियों से हुईं बेटियां हैं।