वायु प्रदूषण की वजह से सांस ही नहीं, ब्रेन स्ट्रोक का भी खतरा
वायु प्रदूषण की वजह से सांस ही नहीं, ब्रेन स्ट्रोक का भी खतरा
नई दिल्ली। दिल्ली और आसपास के इलाके में एक बार फिर प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक तरीके से बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण आपके फेफड़ों को बुरी तरह इंफेक्ट कर सकता है। यह धुंआ अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस, क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिस्ऑर्डर, इंटरस्टीशियल लंग डिज़ीज़ (फेफड़ों का रोग), सिस्टिक फाइब्रोसिस, फेफड़ों के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। मेडिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से न सिर्फ आपके फेफड़ों पर असर पड़ता है बल्कि स्ट्रोक का ख़तरा भी बढ़ता है।
स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क के एक हिस्से में खून का बहाव बंद हो जाता है, या फिर एक नलिका के फटने से मस्तिष्क में खून भर जाता है, जिसे hemorrhagic stroke कहा जाता है।
कैसे बढ़ता है स्ट्रोक का ख़तरा?
वायु प्रदूषकों में ऐसे कण शामिल होते हैं, जिनका आकार बहुत छोटा होता है। ये छोटे कण vascular system में जा सकते हैं और उन लोगों में स्ट्रोक का ख़तरा पैदा कर सकते हैं, जो पहले से ही इस बीमारी की चपेट में हैं। रिसर्च में ये भी पाया गया है कि प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से छोटे कण आपके दिमाग़ के अंदर की परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे स्ट्रोक होता है।
इसका मतलब यह हुआ कि प्रदूषण और ब्रेन स्ट्रोक संबंधित हैं। आंकड़ों को देखों तो पिछले 10 सालों में स्ट्रोक के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। इससे पहले स्ट्रोक उन लोोगं को होता था जिनकी उम्र 60-70 के बीच होती थी, हालांकि, अब 40 और उससे कम उम्र के लोगों को भी स्ट्रोक हो रहा है।
क्या हैं स्ट्रोक के लक्षण
प्रदूषित हवा में सांस लेना धूम्रपान करने के ही बराबर है। इन दोनों से ही दिमाग़ के अंदर की परत को नुकसान पहुंचता है और स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ता है। इसलिए डॉक्टर्स स्ट्रोक के बारे में जागरूकता पैदा करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं। स्ट्रोक दुनिया में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। ये धूम्रपान, शारीरिक गतिविधि की कमी और उच्च रक्तचाप की अंदेखी करने से इसका ख़तरा बढ़ जाता है
दुनिया भर में दिल की बीमारी के बाद सबसे ज़्यादा मौतें स्ट्रोक के कारण होती हैं। इसके बावजूद इसके बारे में सार्वजनिक जागरूकता बेहद कम है। स्ट्रोक होने पर अचानक संतुलन खोना, एक या दोनों आंख से न दिखना, चेहरा लटक जाना और धीमे या फिर बोलने में दिक्कत आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं जिससे इस बीमारी को पहचाना जा सकता है।
स्ट्रोक आने के कुछ घंटों में ही मरीज़ का इलाज न हो पाए, तो उसकी जान जा सकती है। समय पर इलाज होने पर इंजेक्शन के ज़रिए ब्लड क्लॉट को हटा दिया जाता है लेकिन ये सिर्फ दो घंटे के अंदर ही मुमकिन है। अगर 6 घंटे हो गए हैं, तो इसे एंजियोग्राफी के ज़रिए निकाला जाता है।
Disclaimer: लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।