नए कृषि कानून आखिर खत्म

Editorial

New agriculture law finally over : बीते 9 महीने से केंद्र सरकार के गले की फांस बने तीन कृषि कानूनों को एक झटके में खत्म करने का ऐलान करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश सहित पूरी दुनिया को चौंका दिया है। दर्जनों दौर की बातचीत के बाद भी जिन कानूनों को केंद्र की भाजपा सरकार ने वापस लेने से इनकार कर दिया था, अब गुरुपर्व के दिन एकाएक उन्हें खत्म करने की घोषणा करके प्रधानमंत्री मोदी ने जो तीर चलाया है, वह कितना निशाने पर लगेगा, यह वक्त बताएगा लेकिन जो विपक्ष कृषि कानूनों के सहारे अपनी नैया पार लगवाने की ललक में था, वह अब खाली हाथ हो गया है।

इन कानूनों को वापस लेने की सुरसुराहट तब से होने लगी थी, जब पंजाब में कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया और कैप्टन ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से अपनी नजदीकियां बढ़ा लीं। उनके भाजपा में शामिल होने के भी चर्चे हुए और भाजपा की रणनीति कि कैप्टन को आगे करके किसानों को साधने के लिए कुछ ऐसा किया जाए जोकि सभी को चौंका दे के भी कयास सामने आए। हालांकि किसी को इसकी भनक तक नहीं थी कि मोदी इसकी तैयारी कर चुके हैं और उन्हें गुरुपर्व का इंतजार है।

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए शब्दों के कारीगर प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे तीर चलाए हैं, जोकि सरकार को आंदोलनकारियों के समक्ष एक मजबूर की तरह पेश करते हैं। उनकी बातों से यह झलकता है और उन्होंने इसे शब्दों में जाहिर भी किया है कि कानून तो अपनी जगह सही थे, लेकिन उन्हें जिन पर लागू किया जाना है, उनमें से कुछ लोग सही नहीं थे। ऐसे में सरकार के समक्ष यह मजबूरी है कि वह इन कानूनों को वापस लेकर यह गतिरोध खत्म करे। प्रधानमंत्री मोदी की छवि एक विकासशील नेता की है, अपने पहले कार्यकाल और इस बार के कार्यकाल में उन्होंने प्रत्येक कार्य और घोषणा प्रगतिशील सोच के साथ की और अंजाम दी है।

इन कानूनों को लाए जाने के पीछे का मकसद भी कृषि क्षेत्र की उन्नति करना था, लेकिन किसान संगठनों और विपक्ष ने इन कानूनों को किसानों का विरोधी साबित करने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। पूरे विश्व में मोदी सरकार की छवि एक दमनकारी सरकार की बन गई। बिहार के विधानसभा चुनाव में इन कानूनों का असर न दिखा हो लेकिन पश्चिम बंगाल और उसके बाद हुए लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के उपचुनावों में भाजपा को जैसी मात मिली है, उसके पीछे कृषि कानूनों का बड़ा हाथ रहा है। जनता महंगाई की वजह बखूबी समझती है, लेकिन कृषि कानूनों के नाम पर जैसा दुष्प्रचार सरकार के खिलाफ हो रहा है, वह भाजपा को परेशान कर रहा है। अगले वर्ष पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव इसका खाका तैयार करेंगे कि आखिर 2024 के लोकसभा चुनाव में कौन जीत हासिल करेगा?  

कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय चौंकाता बेशक है, लेकिन इसका अंदाजा देश लगा चुका था कि भाजपा बदलते परिदृश्य में इन कानूनों के भविष्य पर फिर गौर जरूर करेगी। जिन कानूनों को बलपूर्वक पारित कराने का आरोप लगा और जिनके संबंध में सरकार ने दावा किया कि उन्हें बहुमत से पास कराया गया, उन कानूनों को यूं एकाएक वापस लेने का ऐलान प्रधानमंत्री मोदी की प्रयोगशीलता और दुस्साहसी फैसले लेने के जीवट को भी दर्शाती है। देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जनता के आग्रह पर कोई कानून वापस लिया गया हो, ऐसे में विपक्ष अगर इसे उसके द्वारा बनाए गए दबाव की जीत बताकर खुश हो रहा है तो यह उसकी गलतफहमी है।

हालांकि यह साबित है कि रणनीतिक रूप से किसानों के भारी दबाव के सामने केंद्र सरकार ने कदम पीछे हटाए हैं। यानी विपक्ष नहीं अपितु किसानों के विरोध का सरकार ने सम्मान किया है, यही वजह है कि मोदी ने कहा कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई, जिसकी वजह से दीपक के प्रकाश जैसा सत्य, हम कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। कृषि कानून का स्वरूप देश के लिए नई बात नहीं थी, कृषि विशेषज्ञ इस क्षेत्र में सुधारों की बात करते हुए ऐसे ही प्रावधान किए जाने की जरूरत बताते रहे हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने अगर इन सिफारिशों को कानून की शक्ल दे दी तो विपक्ष को अपने हाथ से मुद्दा खत्म होने का डर सताने लगा। इसके बाद उसने खुद इन कानूनों का विरोध शुरू किया और किसानों को भी आगे कर दिया।

इन कानूनों को वापस लिए जाने को किसान आंदोलनकारी अपनी जीत बता रहे हैं, जाहिर है किसी आंदोलन की शुरुआत का जो मकसद होता है, वह जब पूरा होता है तो इसे जीत ही कहा जाएगा। लेकिन इन कानूनों की वापसी के साथ ही अब यह साबित हो गया है कि भारत में कोई भी सरकार कृषि सेक्टर को छूने से परहेज करेगी। यानी सब्सिडी जोकि बीज,खाद,पानी-बिजली पर जारी है, वह ऐसे ही जारी रहेगी। एमएसपी न पहले हटी थी और अब तो सरकार को इसके लिए कानून बनाने को बाध्य होना पड़ेगा। सब्सिडी और एमएसपी के जरिए बड़े किसानों का मुनाफा और बढ़ेगा और छोटे किसानों की प्रगति वहीं की वहीं ठहरी रहेगी।  संभव है, अब किसान आंदोलनकारी अपने राज्यों को वापस लौट जाएंगे और हरियाणा जैसे राज्य में सत्ताधारी भाजपा-जजपा सरकार के खिलाफ विरोध खत्म होगा। किसानों को राजनीतिक मशवरे पर नहीं अपितु अपनी निजी सोच पर चलना चाहिए कि वह आंदोलन को विराम दे और केंद्र सरकार के अगले कदम का इंतजार करे।