शांतिपूर्ण, ऐतिहासिक व दुनिया भर में चर्चित आंदोलन की जीत के लिये किसानों को बहुत-बहुत बधाई - दीपेंद्र हुड्डा
शांतिपूर्ण, ऐतिहासिक व दुनिया भर में चर्चित आंदोलन की जीत के लिये किसानों को बहुत-बहुत बधाई - दीपेंद
• जिन मांगों पर सहमति बनी है सरकार उन्हें जल्द से जल्द पूरा करे – दीपेन्द्र हुड्डा
• एक बात तो सरकार की समझ में आ गयी है कि देश का किसान जब ठान लेता है तो फिर वो न रुकता है, न झुकता है – दीपेन्द्र हुड्डा
• किसान से टकराना नहीं है भविष्य के लिये भी सबक ले सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा
• अगर पहले ही हमारी बात सुन लेती सरकार तो आज ये दिन नहीं देखना पड़़ता – दीपेन्द्र हुड्डा
चंडीगढ़, 9 दिसंबर। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने देश के अन्नदाताओं को शांतिपूर्ण, ऐतिहासिक और पूरी दुनिया में चर्चित आंदोलन में जीत के लिये बधाई दी। उन्होंने कहा कि जिन मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति बनी है उनको पूरा करने में सरकार कोई भी ढिलाई न बरते और जल्द से जल्द समझौते के अनुसार उन्हें लागू करे। दीपेंद्र हुड्डा ने यह भी कहा कि इस शांतिपूर्ण किसान आंदोलन से एक बात तो सरकार की समझ में आ ही गयी होगी कि देश का किसान जब ठान लेता है तो फिर वो न रुकता है, न झुकता है। किसान की राष्ट्रभक्ति पर उंगली उठाने वाले लोगों को भी आज ये बात समझ में आ गयी होगी कि देश के किसानों ने सर्दी, गर्मी और बरसात में खुले आसमान के नीचे रातें गुजारी, तमाम सरकारी प्रताड़ना और अपमान सहे। धरनों पर उनके साथियों की लाशें एक के बाद एक उठती रहीं, लेकिन वो विचलित नहीं हुए और शांति व अनुशासन के मार्ग को नहीं छोड़ा। देशभक्ति का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है। सरकार भविष्य के लिये भी सबक ले कि देश के किसान से टकराना नहीं है।
उन्होंने किसानों के मैराथन संघर्ष की सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि आज खुशी भी है और आंखे नम भी हैं। उन्होंने कहा कि वे साल भर से लगातार सरकार को चेताते रहे कि किसानों की मांगें जायज हैं उनको मान ले। अगर सरकार पहले ही किसानों की और उनकी बात सुन लेती तो किसानों को एक साल से भी ज्यादा समय तक सड़कों पर संघर्ष नहीं करना पड़ता और न ही करीब 700 किसानों को अपनी जान कुर्बान करनी पड़ती।
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार संवेदनशील होती तो आज कुछ मांगें तो होती ही नहीं। न मुकदमे वापस लेने की मांग आती, क्योंकि तब तक किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज नहीं हुए थे। न ही इस आंदोलन में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले करीब 700 किसानों को आर्थिक मदद और नौकरी देने की मांग होती, क्योंकि उन किसानों के परिवार में अंधेरा नहीं होता, करीब 700 परिवारों के चिराग नहीं बुझते। न लखीमपुर खीरी कांड होता न गृह राज्य मंत्री के इस्तीफा देने की मांग उठती। एक वर्ष से चल रहे इस आंदोलन और किसानों के तप, त्याग और तपस्या की वजह से देश का बच्चा-बच्चा किसानों की बुनियादी समस्या और उनके अहम मुद्दों से अच्छी तरह से परिचित हो गया है।