अगर सेना सीमा तक मिसाइल लॉन्चर नहीं ले जा सकती

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: अगर सेना सीमा तक मिसाइल लॉन्चर नहीं ले जा सकती तो फिर युद्ध कैसे लड़ेगी

अगर सेना सीमा तक मिसाइल लॉन्चर नहीं ले जा सकती

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: अगर सेना सीमा तक मिसाइल लॉन्चर नहीं ले जा सकती तो फिर युद्ध कैसे लड़

नई दिल्ली। केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर सेना अपने मिसाइल लांचर और भारी मशीनरी को भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा सकती तो युद्ध शुरू होने की स्थिति में वह कैसे दुश्मन से लड़कर देश की रक्षा करेगी। चारधाम राजमार्ग परियोजना के निर्माण के कारण हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए, सरकार ने कहा कि आपदा को कम करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं। सरकार ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में भूस्खलन हुआ है। इसके लिए अकेले सड़क निर्माण ही कारण नहीं है।

 जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ एक गैर सरकारी संगठन 'सिटीजन फार ग्रीन दून' के अपने पहले के आदेश और याचिका को संशोधित करने के लिए रक्षा मंत्रालय की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने संबंधित पक्षों से क्षेत्र में भूस्खलन को कम करने के लिए उठाए गए कदमों और उठाए जाने वाले कदमों पर लिखित प्रस्तुतियां देने को कहा है।

केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ये दुर्गम इलाके हैं जहां सेना को भारी वाहन, मशीनरी, हथियार, मिसाइल, टैंक, सैनिकों और खाद्य आपूर्ति को लाने ले जाने की आवश्यकता होती है। हमारी ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है और इसके लांचर को ले जाने के लिए बड़े वाहनों की जरूरत है। अगर सेना अपने मिसाइल लांचर और मशीनरी को चीन की सीमा तक नहीं ले जा सकती है तो युद्ध कैसे लड़ेगी।

उन्होंने कहा, 'भगवान न करे अगर युद्ध छिड़ गया तो सेना इससे कैसे निपटेगी अगर उसके पास हथियार नहीं होंगे। हमें सावधान और सतर्क रहना होगा। हमें तैयार रहना है। हमारे रक्षा मंत्री ने भारतीय सड़क कांग्रेस में भाग लेते हुए कहा था कि सेना को आपदा प्रतिरोधी सड़कों की जरूरत है। वेणुगोपाल ने कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों में भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, आकृति विज्ञान और मानव गतिविधियों सहित उपयुक्त अध्ययन किए गए हैं और ढलान स्थिरीकरण, वनीकरण, वैज्ञानिक तरीके से मल निपटान जैसे कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सड़कों को आपदारोधी बनाने की जरूरत है। संवेदनशील क्षेत्रों जहां बार-बार भूस्खलन होता है और बर्फबारी से रास्ता रुक जाता है वहां विशेष सुरक्षा उपाय किए गए हैं।

भारतीय सड़क कांग्रेस (आइआरसी) के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि ने बर्फीले इलाकों में 1.5 मीटर अतिरिक्त चौड़ाई की सिफारिश की गई है ताकि बर्फबारी में भी उन इलाकों में वाहन चल सकें। उन्होंने कहा कि सीमा पार जिस तरह की तैयारियां और निर्माण किया गया है उससे निपटने के लिए हमें भी अपनी सड़कें दुरुस्त करनी होंगी। 

उन्होंने कहा कि चारधाम परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) ने अपनी रिपोर्ट में सेना की चिंताओं का ध्यान नहीं रखा। एचपीसी की रिपोर्ट सेना की जरूरतों से कोसों दूर है। उन्होंने कहा कि आज ऐसी स्थिति है जहां देश की रक्षा करने की जरूरत है और देश की रक्षा के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों और बलों को मिलाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, 'हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सेना को सभी जरूरी संसाधन मुहैया कराए जाएं। हम हाथ नहीं खड़े कर सकते कि हमारी सड़कें 5.5 मीटर चौड़ी हैं इसलिए हमारे ब्रह्मोस लांचर पहाड़ पर नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि विशालकाय टेट्रा ट्रक, टैंक और स्मर्च मल्टीपल राकेट लांचर को पहाड़ों पर ले जाने की सुविधा देने की जरूरत है। वेणुगोपाल ने कहा कि चाहे भूस्खलन हो या बर्फबारी सेना को चीन की सीमा तक पहाड़ी दर्रो के माध्यम से पहुंचने के लिए बहादुरी दिखानी होगी।

उन्होंने सवाल किया कि क्या सेना कह सकती है कि वह इन पहाड़ी सड़कों पर नहीं चलेगी क्योंकि भूस्खलन होता है और इसलिए वह सीमाओं की रक्षा नहीं कर सकती है। कोई विकल्प नहीं है। हमें भूस्खलन के साथ रहना होगा। हमें इसे कम करने वाले कदमों के माध्यम से निपटना होगा। कर्नाटक, उत्तर पूर्वी राज्यों, बंगाल और देश के अन्य हिस्सों में भी भूस्खलन हुआ है। इसने किसी को नहीं बख्शा। यह स्वीकार करना होगा कि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अधिक भूस्खलन हो रहा है।

एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंजाल्विस ने कहा कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना को रोकना होगा। यह सैनिकों और लोगों के जीवन को खतरे में डालेगा क्योंकि हिमालय को ऐसा कुछ होने की आवश्यकता नहीं है। इन गतिविधियों को हिमालय द्वारा अनुमति नहीं दी जा सकती है। ये ईश्वर प्रदत्त प्रतिबंध हैं। यदि आप इसे जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं, तो पहाड़ इसे पुन: प्राप्त कर लेंगे। शमन के लिए कुछ कदम उठाए गए लेकिन वे व्यर्थ रहे।

उल्लेखनीय है बुधवार को, शीर्ष अदालत ने केंद्र और एनजीओ से अतिरिक्त सुरक्षा उपायों का सुझाव देने के लिए कहा था जिन्हें चारधाम परियोजना को मंजूरी देने की स्थिति में कार्यान्वयन एजेंसियों पर लागू किया जा सके। अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन की मांग करने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र में निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने के लिए कहा गया था।  अपने आवेदन में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वह आदेश और निर्देशों में संशोधन चाहता है ताकि ऋषिकेश से माणा तक, ऋषिकेश से गंगोत्री तक और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्गो को टू-लेन में विकसित किया जा सके।