वीर सावरकर पर हो सार्थक बहस
Have a meaningful debate on Veer Savarkar
आखिर वीर सावरकर के संबंध में यह सोच किसने पनपा दी है कि वे अंग्रेजों से डर गए थे और अपनी जान की सलामती के लिए उन्होंने क्षमा प्रार्थना की। दरअसल, आजादी की लड़ाई और आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक सावरकर को लेकर ऐसी बात नहीं कही गई, जिसमें यह आरोप लगाया जाए कि उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। ऐसी राय है कि उस समय के सभी स्वतंत्रता सेनानियों की यह आंतरिक समझ थी कि सावरकर ने अगर माफी मांगने का उपक्रम किया भी तो यह सिर्फ एक रणनीति के तहत किया। यह रणनीति जेल की दीवारों से बाहर आकर फिर से अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेडऩे की थी, क्योंकि अंग्रेजों ने तो उन्हें 25-25 साल की दो सजाएं साथ-साथ सुनाई थी। वैसे भी, ब्रिटेन में इंडिया हाउस में बैठकर अंग्रेजों के खिलाफ योजना बनाने वाले सावरकर के संबंध में यह सोच बेहद घटिया जान पड़ती है कि वे जान बचाने के लिए माफी मांग रहे थे। अगर वे ऐसा ही चाह रहे होते तो फ्रांस से प्रत्यर्पण के दौरान जहाज से समंदर में कूद कर नहीं निकलते। जाहिर है, उनकी सोच क्रांतिकारी की थी, वे महात्मा गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं की भांति सविनय अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन नहीं चला रहे थे। वीर सावरकर को अगर अपना बचाव ही करना होता तो वे आजादी की जंग से दूर ही रहते और बाद में अंग्रेजों के जोर-जुल्म को देखते हुए कभी का मैदान छोड़ चुके होते।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के वीर सावरकर पर पुस्तक के लोकार्पण के दौरान कही गई बातों से यह बहस जन्मी है। उन्होंने दावा किया कि सावरकर के दया याचिका दायर करने को एक खास वर्ग ने गलत तरीके से फैलाया और सावरकर ने जेल में सजा काटते हुए अंग्रेजों के सामने दया याचिका महात्मा गांधी के कहने पर दाखिल की थी। राजनाथ के यह कहने का क्या औचित्य है, क्या वे इसकी तोहमत गांधी पर लगाना चाहते हैं कि जो हुआ, उनकी वजह से हुआ। अगर भाजपा और राष्ट्रवादी लोग इस सोच को आगे बढ़ा रहे हैं कि वीर सावरकर ने छह बार अंग्रेजों से माफी मांगी तो यह सिवाय उनकी रणनीति के और कुछ नहीं था। यह अपने आप में बड़ी बात है, बजाय इसके कि गांधी के कहने पर उन्होंने माफी मांगी। राजनाथ सिंह ने कहा, सावरकर के खिलाफ झूठ फैलाया गया, कहा गया कि उन्होंने अंग्रेजों के सामने बार-बार माफीनामा दिया, लेकिन सच्चाई ये है कि क्षमा याचिका उन्होंने खुद को माफ किए जाने के लिए नहीं दी थी, उनसे महात्मा गांधी ने कहा था कि दया याचिका दायर कीजिए। महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने याचिका दी थी। हालांकि राजनाथ के इस बयान पर कांग्रेस का तिलमिलाना स्वाभाविक है।
राजनाथ ने कहा कि हम आजादी हासिल करने के लिए आंदोलन चला रहे हैं, वैसे ही सावरकर भी आंदोलन चलाएंगे, लेकिन उन्हें बदनाम करने के लिए कहा जाता है कि उन्होंने माफी मांगी थी, अपने रिहाई की बात की थी जो बिल्कुल बेबुनियाद है। गौरतलब है कि विपक्ष ने इसे भाजपा के द्वारा नया इतिहास लिखने की संज्ञा दी है। हालांकि इसी कार्यक्रम में मौजूद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, स्वतंत्रता के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली। अब इसके बाद स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद को बदनाम करने का नंबर लगेगा, क्योंकि सावरकर इन तीनों के विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने यह भी कहा कि सावरकर का हिंदुत्व, विवेकानंद का हिन्दुत्व ऐसा बोलने का फैशन हो गया, हिंदुत्व एक ही है, वो पहले से है और आखिर तक वही रहेगा। पिछले दिनों भागवत के अनेक बयान चर्चित रहे हैं, इनमें उन्होंने भारत में रहने वाले सभी लोगों को जहां हिंदू बताया था।
हालांकि महात्मा गांधी ने वीर सावरकर के संबंध में ऐसी कोई पेशकश की थी, के प्रमाण सामने नहीं आ रहे। उस पत्र जिसमें गांधी जी से माफीनामे की मांग के संबंध में सलाह मांगी गई है, में भी ऐसा विचार पेश नहीं किया गया है। इसमें सिर्फ यही कहा गया है कि आप खुद इस पर विचार करें। यही वजह है कि राजनाथ सिंह के बयान को नए नजरिए से देखा जा रहा है। कांग्रेस के तिलमिलाने की भी यह वजह है, वहीं ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी इस मसले में अपनी राय पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा है, ये लोग (भाजपा) इतिहास को तोडकऱ पेश कर रहे हैं। एक दिन ये लोग महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के दर्जे से हटाकर सावरकर को ये दर्जा दे देंगे।
गौरतलब है कि शिवसेना ने वीर सावरकर के संबंध में माफीनामे की बात को खारिज किया है, हालांकि उसका कहना है कि वीर सावरकर ने ऐसा एक रणनीति के तहत किया। बेशक यह बात पार्टी पहले भी कह चुकी है, लेकिन इस बार रक्षा मंत्री की ओर से महात्मा गांधी के आग्रह के बाद वीर सावरकर की ओर से ऐसा पत्र लिखे जाने की बात ने बहस को गंभीर कर दिया है। जाहिर है, यह बहस अभी यूं ही सुलगती रहेगी। हालांकि राजनाथ सिंह को अपने कथन की पुष्टि में आवश्यक सबूत अवश्य पेश करने चाहिएं। आखिर गांधी ने क्यों सावरकर को माफीनामे की सलाह दी, यह भी स्पष्ट होना चाहिए। गांधी ने सावरकर की प्रशंसा की थी, लेकिन इससे ज्यादा अनुराग सावरकर के प्रति उनकी ओर से नहीं देखा गया। यह वैचारिक विभिन्नता की बात थी कि गांधी जी अहिंसा के जरिए आजादी चाहते थे और वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों को सीधी चुनौती देकर इसे पाना चाहते थे। दोनों के अपने रास्ते थे, फिर गांधी जी क्यों सावरकर को माफी मांगने के लिए कहेंगे। वास्तव में सही तथ्य ही देश के समक्ष रखे जाने चाहिए, वीर सावरकर के संबंध में किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है, वे वास्तव में वीर थे और उनका बलिदान देश सदैव बाकी स्वतंत्रता सेनानियों की भांति याद रखेगा।